दरवाजे पर कितने भी
ताले लगा बंद कर दो
पर अतीत आ ही जाता है
ना जाने कैसे
दरवाजे की दस्तक
कितनी भी अनसुनी करो
पर अतीत की दस्तक
झकझोर देती है पट
एक-एक कर यादों के जरिये
आती जाती है
मन मस्तिक पर पुनः
वही अकुलाहट, हंसी
एक क्षण में आंसू
दूसरे ही क्षण ख़ुशी
बिखेर जाती है
हमारे आसपास
देखने वाला
पागल समझता है
उसे क्या मालुम
हम अतीत के
विशाल समुन्दर में
गोते लगा रहे है
वर्तमान की
छिछली नदी को छोड़|..सविता
ताले लगा बंद कर दो
पर अतीत आ ही जाता है
ना जाने कैसे
दरवाजे की दस्तक
कितनी भी अनसुनी करो
पर अतीत की दस्तक
झकझोर देती है पट
एक-एक कर यादों के जरिये
आती जाती है
मन मस्तिक पर पुनः
वही अकुलाहट, हंसी
एक क्षण में आंसू
दूसरे ही क्षण ख़ुशी
बिखेर जाती है
हमारे आसपास
देखने वाला
पागल समझता है
उसे क्या मालुम
हम अतीत के
विशाल समुन्दर में
गोते लगा रहे है
वर्तमान की
छिछली नदी को छोड़|..सविता
9 टिप्पणियां:
वाह बहुत सुन्दर
शायद सबके ही मन की बात कह दी आपने।
jee bilkul aapne sahi mahsus kiya hai, sundar rachana.
बहुत सुन्दर...
अभी भाई आभार आपका दिल से ..:)
Naveen Kr Chourasia भाई दिल से शुक्रिया
कैलाश भाई आभार आपका दिल से
अतीत की यादें सुहानी होती हैं ... वर्तमान कठोर ...
उम्दा भाव ,,,,
madhu sis abhar dil se aaapka
दिगम्बर भैया सादर नमस्ते ....आभार आपका तहेदिल से!
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