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नवंबर 14, 2012

~~हुनर की कीमत~~

 झुग्गी झोपड़ियो की जगह
काश हम झुग्गीवासियों के लिए
एक कमरे का ही सही
घर बना पातें |
काश सभी  बेसहारों के जीवन में
हम  सहारा बन पातें

  हरदम मुस्करातें हुए चेहरे को
अपने कैमरे में उतार पातें |
पर अफ़सोस!!
ह तो कुछ पल की हंसी थी
जो हमें अपने सामने पा चेहरे पर जगी थी|
वरना अँधेरे में तो जीने की आदत 
है न्हें
छोटी-छोटी खुशियों में ख़ुशी ढूढ़ ही लेते
हैं|

हुनर बाज हैं  !!
अपना हुनर बेचते
हैं!
पर हुनर का
खरीदार कहाँ  है यहाँ
सड़को पर हुनर बेचने वाला तो
दो जून की रोटी
को भी तरसता है
और
हुनर शोरूमों में  अनमोल हो बिकता है|

हुनर की कीमत यदि नकी भी लगने लगे
तो हम न्हें दया दृष्टि से नहीं बल्कि
वो हमें देखते नजर आयेंगे और
एक कमरे का घर छोड़ों
महलों में हम न्हें पायेंगे |
पर अफ़सोस उनकी कलाकृतियाँ
सड़को पर धूल चाटती हैं
या फिर  कौड़ियों के दाम बिकती  हैं
और वहीं,  उन्ही की ही कलाकृतियाँ
शोरूमों  या माँल  में अनमोल हो
हाथोंहाथ बिक जाती हैं
|

अपने ही हुनर को अनमोल बिकते देख
खुद को  ठगा हुआ सा पातें हैं
फिर भी हुनर बाज हैं जो
अपने हुनर और मेहनत का खाते हैं |
|
......सविता मिश्रा

4 टिप्‍पणियां:

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  2. बेनामी19/11/12, 7:22 pm

    Aachary Kashyap ------
    ********************
    छोटी छोटी खुशियों में ख़ुशी ढूढ़ ही लेते है
    हुनर बाज है अपना हुनर बेचते है

    bahut sundar bahin,,
    sadhuvaad aapko,

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