लड़कियां कपड़ें
पहनती है छोटे-छोटे
पुरुष अपने अहम को
संतुष्ट करते यह कह के|
बच्चियों का क्या कसूर
क्या उनके तन भी कपड़े नहीं होते
ऐसे दरिंदें तो शिशु को भी
कहीं का नहीं छोड़ते|
भेड़ियों की उपाधि तो
फालतू का ही दिए जा रहे
भेड़ियें भी शर्मशार हो
आजकल नजर नहीं आ रहे|
जानवर भी डरे सहमे है
इन बहशी दरिंदो से
किसी के छज्जें पर
नहीं बैठने वाले
पूछों उन उड़ते परिंदों से|
बिना आराम किये वह
आसमान की बुलंदिया छूता है
क्योंकि आदमी नामक
बला से वह भी बहुत डरता है|
उड़ जा री ओ गौरिया
अब नहीं है तेरा ठौर !
तेरी माँ हो गयी है
बहुत ही कमजोर |
नहीं चाहती तेरा हस्र भी
कुछ ऐसा हो !
नज़र ना पड़े तुझ पर
जो बहशी दरिंदा हो |
तुझे ताकत हिम्मत दे रहे हैं
जानती है किस लिए
विपरीत परिस्थितियों में तू
लड़ सकें हिम्मत से इस लिए|
गिद्ध सी जो तुझ पर
कभी कहीं नजर गड़ाये
तू चंडी है यह कह
अपनी आत्मशक्ति को जगाये |
देखना तेरी आत्मशक्ति जब जाग जाएगी
मन में बसी कमजोरी कहीं दूर भाग जाएगी |
नन्ही गौरया तू थोड़ा जब हिम्मत जुटाएगी
तो गिद्ध जैसे को भी परास्त कर जाएगी...|| ..सविता मिश्रा
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पहनती है छोटे-छोटे
पुरुष अपने अहम को
संतुष्ट करते यह कह के|
बच्चियों का क्या कसूर
क्या उनके तन भी कपड़े नहीं होते
ऐसे दरिंदें तो शिशु को भी
कहीं का नहीं छोड़ते|
भेड़ियों की उपाधि तो
फालतू का ही दिए जा रहे
भेड़ियें भी शर्मशार हो
आजकल नजर नहीं आ रहे|
जानवर भी डरे सहमे है
इन बहशी दरिंदो से
किसी के छज्जें पर
नहीं बैठने वाले
पूछों उन उड़ते परिंदों से|
बिना आराम किये वह
आसमान की बुलंदिया छूता है
क्योंकि आदमी नामक
बला से वह भी बहुत डरता है|
उड़ जा री ओ गौरिया
अब नहीं है तेरा ठौर !
तेरी माँ हो गयी है
बहुत ही कमजोर |
नहीं चाहती तेरा हस्र भी
कुछ ऐसा हो !
नज़र ना पड़े तुझ पर
जो बहशी दरिंदा हो |
तुझे ताकत हिम्मत दे रहे हैं
जानती है किस लिए
विपरीत परिस्थितियों में तू
लड़ सकें हिम्मत से इस लिए|
गिद्ध सी जो तुझ पर
कभी कहीं नजर गड़ाये
तू चंडी है यह कह
अपनी आत्मशक्ति को जगाये |
देखना तेरी आत्मशक्ति जब जाग जाएगी
मन में बसी कमजोरी कहीं दूर भाग जाएगी |
नन्ही गौरया तू थोड़ा जब हिम्मत जुटाएगी
तो गिद्ध जैसे को भी परास्त कर जाएगी...|| ..सविता मिश्रा
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