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फ़रवरी 02, 2021

26 जनवरी का वह काला दिन


सबसे दुखद वाकया इस दंगे में 350/400 के करीब खाकी वाले घायल हुए।

लेकिन  किसानी का पताका फहराने वाले पोस्टकर्ता जिनके पास सिर्फ गमलों में खेती उगती है वो अपने को किसान कहते हुए तथाकथित किसानों के आवभगत में लगें हैं।जो व्यक्ति भौकार फाड़कर संवेदना का कार्ड खेल रहा। जिसे खुद खेती नहीं व्यापार से प्यार है, उसके लिए मार-काट, गाली-गलौज पर उतर आ रहे हैं। सिर्फ और इसलिए कि विरोध करने का धर्म निभाना है।

कमाल है!! नहीं क्या!!

सबकी ही संवेदना खाकी के प्रति सोई रहती हैं, क्यों वो मानुष नहीं हैं क्या!! अब कील या तार के द्वारा अपनी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर रहें हैं तो सबको मिर्ची लग रही!! ये दोगली नीति अच्छी नहीं है भई! जागो बन्धु जागो सिर्फ किसी की बुराई करने हेतु उन्मादी भीड़ के संग मत भागो वरना कहावत एक बार फिर चरितार्थ होने लगेगी कि कान न टौवे कव्वा खदेड़े।

ये तथाकथित किसान बन्धु सड़क छेंककर सुख सुविधा भोगने वाले तो बोले थे कि पुलिस वाले हमारे भाई हैं, हम पर वार नहीं करेंगे। खाकी ने बखूबी भैय्पन्न निभाया  लेकिन आप किसानों ने पीठ में छुरा घोंप दिया। इतना दबदबा दिखाया कि बेचारे अपनी जान बचाने के लिए दनादन खाई में कूदने लगे। आप सब खालिस्तानियों और तथाकथित किसानों ने तो जलियांवाला बाग हत्याकांड की यादें ताजा करवा दीं बन्धुओं! तब भी आप सब शोशल मीडिया धारी बन्धुओं उन तथाकथित किसान के इस कार्ड-प्ले पर घोर चुप्पी साधे बैठे रहें। क्यों!! क्योंकि आपको सरकार का येनकेन प्रकारेण सरकार का विरोध करना है और खाकी से तो आप सबकी जलन जग जाहिर है। आप लूटमार मचाओ तो ठीक और खाकी वाले ड्यूटी देते भी दिखे तो आपकी भाषा होती हैं कि साला घूस खाने के लिए मुस्तैदी से डटा है। अपनी पूर्वाग्रही मानसिकता आप त्याग भी नहीं सकते क्योंकि ये मानसिकता आपको घुट्टी के साथ ही पिलाई गयी होती है। उन ख़ाकीधरियों के साथ इतनी अमानवीयता हुई फिर भी वो अगन्द पांव से जमे रहे। उन लोगों ने न लट्ठ बजाया क्योंकि उनका बस वही अस्त्र-शस्त्र है भले उस अस्त्र के सामने कोई शस्त्र लेकर आ जाए। न ही अपनी अटकी जान को बचाने के लिए रिवॉल्वर चलाई । वैसे भी अक्सर रिवॉल्वर चलाने के लिए नहीं बल्कि सिर्फ लटकाने के लिए दी जाती है। उनकी जान पर भी बन आए वो उसका प्रयोग तब तक नहीं कर सकते जब तक सामने वाला पहुँचा हुआ क्रिमिनल न हो। वो भी उतना ही प्रयोग कर सकते जितना कि एक गृहणी नमक का करती है किसी व्यंजन में। यानी सीधे गोली नहीं मार सकते जिससे कि उनकी अपनी जान बचे बल्कि अपराधी के पैर में मारने का अधिकार है। तो उसकी इस मजबूरी का भरपूर फायदा भाई कहने वाली उन्मादी भीड़ ने बखूबी उठाया। क्योंकि वो सब भले उन्मादी थे लेकिन थे तो सबकी नजरों में बेचारे किसान, देशप्रेमी किसान। जो देश की संपत्ति को भले तहस नहस ही क्यों न कर डालें। ख़ाकीधरियों को पीटना ,उनसे तू तड़ाक करना, मोबाईल का वीडियो बटन दबा कर खुले आम उनकी इज्जत की धज्जियां उड़ाना तो आजकल युवाओं का खेल तमाशा सा हो गया है। उस

के प्रति इन सभी नकारात्मक अफवाहों का संज्ञान लेते हुए ही शायद किसानों ने ताबड़तोड़ उनपर हमला किया और बाद में अपने को दूध का धुला साबित करने के लिए हास्य के साथ विवादित वीडियो बनाई और उन ख़ाकीधरियों के खिलाफ  शोशल मीडिया में फैलाकर बेखौफ इस्तेमाल किया।

 किसी की भी सहनशीलता की इतनी बार परीक्षा!! असहनीय होनी चाहिए  भई ये सभी व्यक्ति के लिए। लेकिन नहीं, ज्यादातर ने अपनी भड़ास निकाली और खाकी पर दे मारी जिससे खाकी और बदरंग हो गयी।

नेता न बनो बन्धुओं,न किसी के पिछलग्गू। गलत को गलत बोलो। यदि सरकार गलत है , आपकी नजर में पुलिस वाले भी गलत हैं तो तथाकथित किसान भी दूध के धुले नहीं हैं। तलवार भांजना, तिरंगे का अपमान करना, लाल किला जो ऐतिहासिक और देशभक्ति का परिचयक है उसको हानि पहुंचाना, ये सब किसानी के लक्षण तो नहीं!

अपनी ड्यूटी करने वाले ख़ाकीधरियों को पीटकर किला जीत लिए तो हाँ भई, आप सब किला तो जीती लिए। क्योंकि समाचार चैनलों के मुताबिक आपने 350 से 400 ख़ाकीधरियों को अस्पताल पहुंचा दिए।

 दंगे में लाल किला  तबाह हुआ, उसपर धार्मिक झंडे लगाए गए। जैसे कि देश का लाल किला न हो किसी की बपौती हो। रेलगाड़ी के एसी कम्पार्टमेंट से तौलिया या चादर चुराने वाले, होटल से चीजें गायब कर देने वाले हम भारतीयों की नीयत अपने देश से भी घात करने से बाज़ नहीं आयी। वहां भी ये उठाईगीर मानसिकता के लोगों ने लाल किले का ताजपोशी-सा किए उन दो कलशों पर हाथ फेर दिया। उनकी धार्मिकता के पीछे छुपी उनकी उठाईगिरी फितरत ने अपना रंग दिखाया। 

और फिर मेन सड़क पर धरना देने बैठ गए पूरी सुख-सुविधा इकट्ठी करके। सुख सुविधाएं खत्म होते ही तथाकथित नेता का बयान को आप सब सरकार के खिलाफ लिखने वालें शोशल मीडिया वालों ने नजरअंदाज कर दिया कि "न बिजली न पानी, बिना सुख सुविधा के अब आंदोलन कैसे हो पायेगा"। जबकि सबसे बड़ा प्वाइंट यही था जिसे नोटिस किया जाना चाहिए था।

अच्छा सबको मारिए गोली, बस एक बार सोचिए कि अभी ये सभी तथाकथित किसान आपके घर के सामने धरना देने बैठ जाएं तो!! वहीं आपके घर के पास बहती सरकारी नाली में लोटा लेकर बैठे तो !! शराब के दौर न भी चले तो भी आप 100 नम्बर डायल कर-करके नाक में दम कर देंगे। जबकि वो सरकारी सम्पत्ति को ही अधिकार से प्रयोग कर रहें होंगे लेकिन वह आपके घर का सामना है अतः आप फट पड़ेंगे । एड़ी चोटी का जोर लगाएंगे उन्हें वहां से बेदखल करने के लिए। फिर ये किसान जिस बीच सड़क पर धरना दिए बैठे हैं उसके आसपास रहने वालों के विषय में सोचिए जरा!! खुद को उनकी जगह रखेंगे तो आप सबको उनकी भी तकलीफें पता चलेगी! सबको भक्तों, चमचा, अंधभक्त और न जाने क्या क्या कहने वाले लोगों जरा अपनी ओर भी निहारिए प्लीज। आप क्या अंधभक्त चमचे नहीं नज़र आ रहें! आप करो तो सच का साथ और जो दूसरें लोग करें वो निराधर्म! भई मानना पड़ेगा कि आप किसी खास चक्की का आटा खाते हैं।

कोई परिचित  या बच्चे जब नोयडा गाजियाबाद जाते हैं तो जान हलक में अटकी रहती है। लेकिन हे दिल्ली वाले समर्थकों! आप क्योंकर समझेंगे! रोड बंद होने से भी इंसान को कितना घूमकर अपने गंतव्य तक पहुँचना पड़ रहा, शायद ही आप सब समझेंगे। वो कहावत है न, जाके फटे न बिवाई, उ क्या जाने पीर पराई।

थोड़ी इंसानियत बरतिए और दिखाइए भी। और हां इस शगूफे को अब गोली मारियेगा। क्योंकि पोस्ट पढ़-पढ़कर कोफ्त होने लगी है। बबूल का पेड़ न बनिए बन्धुओं!

हमें भी लिखना न था, लेकिन इन दिनों इतनी अधिक पोस्ट दिखी किन्तु एक भी पोस्ट ने खाकी वालों की चिंता नहीं की...केजरी साहब भी मोफलर पहनकर किसानों को पानी पिला आएं, जबकि उनकी तरफ से साफ साफ बयान आया था कि भाजपा और आप पार्टी वाले शामिल हैं लाल किले पर हंगामा करने के लिए। हम किसान उस घटना से खुद को अलग करते हैं और अब देखिए उन्हीं को जेल से छुड़ाने की शर्त रख रहें। लेकिन ख़ाकीधरियों से तो केजरीवाल भाई जी का छतीस का आंकड़ा है।  खाकी को भी पानी चाहिए, जरा उन्हें भी पानी पिलाइए और हर कदम पर उनकी पानी- पानी करने से गुरेज करिए।

सब मजे में रहिए लेकिन व्यक्ति या पार्टी के खिलाफ ही बस न रहिए । कभी-कभी खिलाफत करते हुए अच्छाइयां भी पोस्ट करके अपने अंदर की कड़वाहट हटाते रहिए। सबके संग रहना है तो मैल क्यों रखना भई, नेता तो नहीं हैं न फिर क्योंकर किसी से भी अंधभक्ति!  एक तरफा पोस्ट जब करते ही रहते हैं तो ...खैर !!बकिया सब ठीकी-ठाक है! 

'अक्षजा'

2/2/2021

भवनाएं में बहकर बहुत बड़ा सा लेख टाइप हो जाएगा या कहिए हो ही गया। इसलिए अब द एंड😁

हम कुछ कहे का!! कछु तो नाही!इसलिए टेक इट इजी😃

एक भारीभरकम किसान

सविता मिश्रा 'अक्षजा'

🙈🙊

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