करना है तो कर्म करना
घमंड कभी न करना
आया है मुट्ठी बाँधकर
खुले हाथ ही है जाना |
फर्श से अर्श पर चढ़ा है
तू मेहनत से जैसे
विनम्रता से रख उसको
कायम तू कुछ ऐसे
क्यूँ घमंड में चूर होकर
करता है अपमान किसी का
पाप की हांड़ी को क्यों भरना
करना है तो कर्म करना
घमंड न करना |
वरना देर नहीं लगती है
अर्श से फर्श पर आने में
राजा कब रंक बन जाए
बना रह जाए कब वह राजा
उस विधाता के पास लिखा है
इसका लेखा-जोखा ताज़ा-ताज़ा |
किसी की नजरों में नहीं चढ़ना
करना है तो कर्म करना
घमंड न करना |
तेरे कर्म ही तो करते हैं
ये सब कुछ निर्धारित
चल अब सबसे ही
गले मिल तू त्वरित
प्यार से बाँहों की माला
गले में उसके डालना
करना है तो कर्म करना
घमंड न करना |
मान देकर ही दूजे को
इस जग को तू जीत लेगा
अपमान किया किसी का तो
बद्दुआ ही तुझको मिलेगा
कभी किसी का दिल नहीं दुखाना
करना है तो कर्म करना
घमंड न करना |
सम्मान देकर तू और भी
ज्यादा निखर जायेगा
किस्मत चमकेगी और
तेरा परलोक भी सुधर जायेगा
उड़ती हुई पतंग की डोर
कसकर हाथ में पकड़े रहना
करना है तो कर्म करना
घमंड कभी न करना ||...
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
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