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जुलाई 27, 2018

दोमुँहे-

"मन की"

दोमुँहों से रहना सदा बच के
चलो जरा संभल-संभल के

निंदक तक तो सब ठीक हैं
दुरी उनसे ,जो करते पीक हैं

दोमुँहें  होते हैं घातक बेहद
बचना उनसे मुश्किल है शायद

सामने मुँह पर लल्लो-चप्पो करते हैं
पीठ पीछे वही जहर उगलते फिरते हैं

सांप- छुछुंदर तो हैं आपस में दुश्मन
दोमुँहें तो आपके अपने बन छलते हैं

अतः चलना जरा उनसे संभल-संभल के
वर्ना हाथ मलते रहोगें खड़े हक्के-बक्के । 
सविता मिश्रा
 यूँ ही फालतू बकवास
हो कुछ हास-परिहास😊
:)

पुरानी कविता कमेंट में पड़ी हुई आज किसी के लाइक करने पर मिला💁
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1150622668309320&id=100000847946357

गुरु नमन

हर तरफ तो हैं गुरु बिखरें
किसको-किसको नमन करें
सीख देने वाले  मिलें जहां बहुत
ओ फेसबुक हम नमन तुझे  करें! #सवितामिश्रा

जुलाई 24, 2018

लुटेरे-


समाज में और फेसबुक पर भी कई लुटेरे बैठें हैं।
पैसा हो या आपकी रचना, फटाफट से लूट लेतें हैं।
सब्ज़बाग सपनों का दिखा, करके मीठी-मीठी बात
आपकी मेहनत का फल लेकें धीरे से फूट लेतें हैं। #अक्षजा
24/7/2018