"मन की"
दोमुँहों से रहना सदा बच के
चलो जरा संभल-संभल के
निंदक तक तो सब ठीक हैं
दुरी उनसे ,जो करते पीक हैं
दोमुँहें होते हैं घातक बेहद
बचना उनसे मुश्किल है शायद
सामने मुँह पर लल्लो-चप्पो करते हैं
पीठ पीछे वही जहर उगलते फिरते हैं
सांप- छुछुंदर तो हैं आपस में दुश्मन
दोमुँहें तो आपके अपने बन छलते हैं
अतः चलना जरा उनसे संभल-संभल के
वर्ना हाथ मलते रहोगें खड़े हक्के-बक्के ।
सविता मिश्रा
यूँ ही फालतू बकवास
हो कुछ हास-परिहास😊
:)
पुरानी कविता कमेंट में पड़ी हुई आज किसी के लाइक करने पर मिला💁
https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1150622668309320&id=100000847946357
दोमुँहों से रहना सदा बच के
चलो जरा संभल-संभल के
निंदक तक तो सब ठीक हैं
दुरी उनसे ,जो करते पीक हैं
दोमुँहें होते हैं घातक बेहद
बचना उनसे मुश्किल है शायद
सामने मुँह पर लल्लो-चप्पो करते हैं
पीठ पीछे वही जहर उगलते फिरते हैं
सांप- छुछुंदर तो हैं आपस में दुश्मन
दोमुँहें तो आपके अपने बन छलते हैं
अतः चलना जरा उनसे संभल-संभल के
वर्ना हाथ मलते रहोगें खड़े हक्के-बक्के ।
सविता मिश्रा
यूँ ही फालतू बकवास
हो कुछ हास-परिहास😊
:)
पुरानी कविता कमेंट में पड़ी हुई आज किसी के लाइक करने पर मिला💁
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