फ़ॉलोअर

नवंबर 14, 2013

++बस यूँ ही ++

1...प्यार से समझाती है डांटती है ,
भला हो हमारा जिसमें हर वह काम करती है |
दुनिया के दिए जख्म भी ह्रदय में छुपा ,
बच्चे को उस ताप से दूर ही रखती है |
सविता मिश्रा



2...सो जाये जमीर को अपने सुला कर

या खो जाये नींद में खुद को भुला कर
सभी अपने एक एक कर बेगाने हुए
सोचने पर हुए मजबूर हम
क्या
हम में ही है कांटे लगे हुए| ...सविता मिश्रा



3...माँ तो माँ ही होती है ...

सपने में भी खरोंच ना लगने दे ....
मौत भले आ जाएँ पर .
...
अपने ममत्व को ना झुकने दे| ....सविता




4....दुःख के बाद जो सुख आता हैं
वह पिपरमेंट सा होता हैं
उड़ जाएँ भले ही नामो निशाँ न रहे
पर बड़ी ठंडक हमें दे जाता हैं| ..सविता मिश्रा



5....बादल भी अब अटखेलिया करता हैं
घेरता कही और कही बरसता हैं
बदलिया बहा ले जाती हैं मुई हवाए
चल यहाँ क्यों बरसे यहाँ रहती हैं बेवफाये| ...............सविता .बस यूँ ही

5 टिप्‍पणियां:

संतोष पाण्डेय ने कहा…

छोटी-छोटी पंक्तियों में बड़े और गहरे अर्थ वाली कविताएं।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सभी छंद लाजवाब ... और दुख के बाद सुख .... सच में बड़ा आनंद देता है ...

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सारगर्भित प्रस्तुति...

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

भावनाओं की अद्धभुत अभिव्यक्ति है

Rama ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति की प्रस्तुति...