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गिर रहा है!रुपया !
गिर रहा हैं !
क्यों सब चीख रहे हैं
हमें तो याद हैं
रुपया तो कुछ सालों में
४० से बढ़ ६५ हो रहा!
फिर भला कैसे गिर रहा हैं
यह तो हर पल ऊपर उठ रहा हैं |
यह सुन
हमारे ही सामने
बैठे हुए लोग
माथा पिट लिए!
हमारी बुद्धि को भी
जरा सा कोस लिए!
पढ़ी लिखी हैं या
ठहरी मंदबुद्धी!
हम बोले पड़े
फिर बन ज्ञानी
रुपया तो ज्यादा
गिनती का हो रहा हैं
फिर कैसे यह घट रहा!
चीख-चीख हम सब कोक्यों मुरख बना रहे
अर्थशास्त्री बैठे हैं
कुछ तो कमा रहे
अपना नुकसान होता देख तो
गुंगा भी बोल पड़ता हैं
उन्हें भी बढ़ने में ही
फायदा नजर आ रहा
तभी तो वो कुछ भी
नहीं है बोल रहें|
तुम सब मुरख हो
चिल्ला चिल्ला फाड़ो गला
कोई फर्क नहीं पड़ने वाला
और ना ही हैं उन्हें कोई गिला|
उठने को गिरना हमको समझा रहें
सभी हमें मुरख कहतें हो
वस्तुएं सब विदेशी खरीदते हो
हम तो देशी हैं देशी में ही मस्त हैं
समझ नहीं आती हमें यह
उठने गिरने की गणित !
रुपया हो या फिर हो इंसानियत
कम होती जा रही मालकियत | ..सविता मिश्रा
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