माँ तुम यूँ शांत हो कैसे बैठी हो
गीदड़ देखो दहाड़ रहें हैं
अचानक पीछे से वार कर जवानो की
शरीर से गर्दन ही उड़ा रहें हैं
शेरो का देश हैं फिर भी मौन कैसे हो
सब ऐसे ही जब मौन धरे रहेगें तो गीदड़ तो हम पर राज ही करेगें
एक बार बस सहनशीलता दिखाएँ तो
उसने हमारी भावनाओं का फायदा उठाया
मार भगा सकने की शक्ति हैं
फिर भी हम हाथ बांधे खड़े हैं
माँ हम क्यों ऐसे मौन पड़े हैं
शर्म से हम ऐसे क्यों गड़े है
माँ तू इशारा बस जरा कर दे
या थोड़ी छुट हमको भी दे दे
खून खौल खौल कर उफान ले रहा
कलम पकड़ बस जबान दे रहा
हाथों में अपने भी तलवार दे दो माँ
एक के बदले दस सर ना ला दू तो कहना माँ
माँ तू यूँ क्यूँ मौन पड़ी हो
कितने दरिंदो से तो अब तक लड़ी हो
अपनों के करनी पर शर्मसार हो
या कुछ नयी तरकीब सोच रही हो
अपने बच्चों के सर देख भी खड़ी हो
खून में उबाल नहीं हो रहा क्या माँ
गरजो तुम दहाड़ो तनिक तो जरा
देखो कैसे ना दुश्मन थर्रा दूम दबाये हो भाग खड़ा ...सविता मिश्रा
गीदड़ देखो दहाड़ रहें हैं
अचानक पीछे से वार कर जवानो की
शरीर से गर्दन ही उड़ा रहें हैं
शेरो का देश हैं फिर भी मौन कैसे हो
सब ऐसे ही जब मौन धरे रहेगें तो गीदड़ तो हम पर राज ही करेगें
एक बार बस सहनशीलता दिखाएँ तो
उसने हमारी भावनाओं का फायदा उठाया
मार भगा सकने की शक्ति हैं
फिर भी हम हाथ बांधे खड़े हैं
माँ हम क्यों ऐसे मौन पड़े हैं
शर्म से हम ऐसे क्यों गड़े है
माँ तू इशारा बस जरा कर दे
या थोड़ी छुट हमको भी दे दे
खून खौल खौल कर उफान ले रहा
कलम पकड़ बस जबान दे रहा
हाथों में अपने भी तलवार दे दो माँ
एक के बदले दस सर ना ला दू तो कहना माँ
माँ तू यूँ क्यूँ मौन पड़ी हो
कितने दरिंदो से तो अब तक लड़ी हो
अपनों के करनी पर शर्मसार हो
या कुछ नयी तरकीब सोच रही हो
अपने बच्चों के सर देख भी खड़ी हो
खून में उबाल नहीं हो रहा क्या माँ
गरजो तुम दहाड़ो तनिक तो जरा
देखो कैसे ना दुश्मन थर्रा दूम दबाये हो भाग खड़ा ...सविता मिश्रा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें