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जून 23, 2015

तुम वो, जो मैं चाहूँ

तुम लिख दो वो ख़त
जो मैं बांच ही न पाऊँ !
फिर भी पढ़ूँ हर दिन
 
इतराऊँ, बलखाऊँ खुद पर
कि लिखा तुमने ..
उसमें कुछ तो ख़ास
सिर्फ मेरे लिए !

तुम बोल दो वो वचन
जो गुदगुदा जाए
मेरे हृदय तक को...!
मनन कर उन शब्दों को
मुस्कराती रहूँ मैं
हर पलहर घड़ी
क्यों बोलोगे न..
शहद से वो मीठे बोल !


ख्यालो में बादल सा घुमड़ो तुम
जहाँ चाहूँ बरसो
जहाँ चाहूँ ठहर जाओ
जब कहूँ मैं
नवयौवना के लटों सा
काले घने हो जाओ तुम
और कभी बुढ़िया के बालों सा
झक सफ़ेद हो जाओ
बस कहने भर से मेरे !
पल दो पल ...
देख तुझे इतराऊँ मैं
अपनी ही किस्मत पर !
दिल की धड़कन बन तुम धड़को ...
महसूस करुँ मैं तुम्हें
 
हर धक धक में

जब एकांत में होऊँ
गर्व से इठराऊँ  कि ..
कोई तो इतना अपना है
हर पल रहता साथ मेरे
बनकर परछाई मेरी !

खड़ी होऊँ जब-जब
आईने के समक्ष
मुझमेँ तुम ही दिखो !
सँवारु मैं खुद को तो ...
सँवर तुम जाओ
तुममें मैंमुझमें तुम बसो
और एकाकार हो मैं इठलाऊँ !

बन्द करूँ जब-जब आँखे
तुम ही तुम दिखो ..
बसो ऐसे मेरे मन मंदिर में कि
भगवान की मूरत में भी मैं
तुमको ही निहार पाऊँ....

बताओ न !
होवोगे ऐसे ही न
देखना चाहती हूँ मैं तुम्हें जैसा !

यूँ ही बेख्याली में--
सविता मिश्रा 'अक्षजा'

4 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, जीना सब को नहीं आता - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Sumit Gupta ने कहा…

बेख्याली में अच्छा लिखा है। :)

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

बहुत खूब