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अक्टूबर 13, 2013

~घर उनके जाना छोड़ दिया~



जो खटखट करने पर भी पट नहीं खोलतें

हमने उनके घर जाना छोड़ दिया
बात करनी तो दूर, नजर उठा भी नहीं देखतें
हमने अब से घर
उनके जाना छोड़ दिया |

स्वाभिमान हमारा जहाँ चोटिल होता
दिल भी बहुत ही ज्यादा दुखता हैं
मन का मिलना नहीं होता जहाँ 

ऐसे घर को जाना  कब का हमने छोड़ दिया|
जो खटखट......
जिसको देखो मार जाता है
ताने
तेरा
अपना कोई कैसे नहीं  होता हैं
क्या करें ! कैसे दिल को समझाए
फिलहाल दिल को बरगलाना
हमने सीख लिया हैं|जो खटखट......
अब दिल पर जब कोई दस्तक भी देता है
दिल कपाट अपना भी
अब नहीं खुलता है
यह भी पराया होने से अब तो डरता है
दिल में अब सब को जगह देना
हमने छोड़ दिया हैं |जो खटखट......
कभी सभी दिल में रहतें थे
हमारेहम अपने पराएँ का भेद ना करतें थे
नन्हें-मुन्हे, बूढ़े-जवान सब को
खूब
देंते थे हम मान सम्मानपर अब हमने भी दिखावा करना सीख लिया|जो खटखट......
अब हमने भी मन को मारना सीख लिया हैं|

जिस ने दिल दुखाया उनके घर जाना छोड़ दिया हैं|| सविता मिश्रा

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