जिद थी अपनी कि जिद छोड़ देगे,
जिद्दी मन कों अपने मोड़ देगे|
पर यह हो ना सका कभी ,
जिद से ही "जिद" कर बैठी|
खुद कों बदलते-बदलते,
अपना ही वजूद खो बैठी |
अब जिद है कि "जिद"को,
अपने अंदर कैद कर लू |
जिद से ही "जिद"कों भूल जाऊ,
पर "जिद" है जिद्दी बहुत ही कैसे भुलाऊ |
||सविता मिश्रा ||
१५ /२/२०१२
जिद्दी मन कों अपने मोड़ देगे|
पर यह हो ना सका कभी ,
जिद से ही "जिद" कर बैठी|
खुद कों बदलते-बदलते,
अपना ही वजूद खो बैठी |
अब जिद है कि "जिद"को,
अपने अंदर कैद कर लू |
जिद से ही "जिद"कों भूल जाऊ,
पर "जिद" है जिद्दी बहुत ही कैसे भुलाऊ |
||सविता मिश्रा ||
१५ /२/२०१२
2 टिप्पणियां:
ज़िद भी जिद्दी है ...
ज़िद भी जिद्दी है ...
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