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जनवरी 04, 2014

=अजीब दास्तान् =

बड़ी अजीब दास्तान् है
कविता हमारी नाम किसी और का
देख अचम्भित हुए

थोड़ा सा दुखित हुए
क्यों लोग दुसरे की कविता को
अपनी कह देते है
क्या वह चोरी करते करते
कवि-कवियत्री बन लेते हैं
कभी कभी कुछ कहते भी नहीं बनता
पर चुपचाप रह कर सहते भी नही बनता
क्यों कर कर्म है यह अनवरत जारी
कभी कविता हमारी होती है तो कभी तुम्हारी
कविता हमारी हमारे दिल का उदगार होती है
मत चुरा कर पोस्ट करो बंधू यह निंध होती है
तुम रुधे जाओ ना कही इस कारण आगाह करते है
मत करो कापी पेस्ट बारम्बार यही निवेदन करते है
करना ही है तो नाम को मिटाए बिना ही करो
अपना नाम दे हमारे भवनाओं का अपमान मत करो
क्या कविता को चुराकर हमारे अहसासों को चुरा पाओगे
उसके अंदर छुपे हमारे जीवन के निचोड़ को समझ पाओगे
अतः करते है आप सभी से विनम्र विनती
चोरी कर कविता चोरों में नहीं करो अपनी गिनती|
...सविता मिश्रा

2 टिप्‍पणियां:

Satish Saxena ने कहा…

खूब करते हैं लोग चोरी , और बेशर्मी से करते हैं ! कुछ जानबूझ कर , कुछ नासमझी में !

और कुछ भी हो न हो, सम्मान मिलना चाहिए
बिना मेहनत हमें भी कुछ माल मिलना चाहिए !

यही चरित्र बन रहा है लोगों का !!

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

satish bhaiya abhar apka ..sahi kaha aapne