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अप्रैल 09, 2014

हाँ अहिल्या तो हूँ -


हाँ अहिल्या
ही तो हूँ
प्रस्तर सरीखी
पर हमें नहीं किसी
राम की तलाश
खुद ही हरिवाली पाने की
भरपूर कर रही हूँ चेष्टा !
या खोज रही हूँ
घर बाहर

अपनी निष्ठां लगन से एक सुन्दर बगिया
बसाने की जद्दोजहद करती
कोई मेहनत कस महिला |
वह आकर अपने
खून पसीने से
भर जाएगी नया जीवन
और मैं प्रस्तर से
हरीभरी कन्दरा हो जाऊंगी |
राम नहीं सीता
की हैं आज हमें
तलाश जो चुपचाप
बिना किसी शोर शाराबे के
कर जाती है
ना जाने
कितने नेक काम | सविता

9 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत खूब...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

namste bhaiya ......abhar apka dil se

Unknown ने कहा…

आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (20-04-2014) को ''शब्दों के बहाव में'' (चर्चा मंच-1588) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर

दिगम्बर नासवा ने कहा…

राम नहीं सीता कि तलाश ... अलग अंदाज़ कि रचना .. बहुत प्रभावी ...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

सुशील भैया सादर नमस्ते ............शब्द ही नहीं आपका आभार व्यक्त करने के लिए भैया ..आप व्यस्तता के बावजूद आ यहाँ पढ़ते है हम नाचीज को ....बहुत बहुत शुक्रिया दिल से

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

अभिषेक भाई बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने चर्चा में शामिल करने के लायक समझा

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

दिगम्बर भैया सादर नमस्ते ............शब्द ही नहीं आपका आभार व्यक्त करने के लिए भैया ..आप व्यस्तता के बावजूद आ यहाँ पढ़ते है हम नाचीज को .और सराहते है हमारी लेखनी ...बहुत बहुत शुक्रिया दिल से

संजय भास्‍कर ने कहा…

यथार्थ का बयान करती कविता। बधाई

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

संजय भाई आभार आपका बहुत बहुत तहेदिल से