हाँ अहिल्या ही तो हूँप्रस्तर सरीखी
पर हमें नहीं किसी
राम की तलाश
खुद ही हरिवाली पाने की
भरपूर कर रही हूँ चेष्टा !
या खोज रही हूँ
घर बाहर
अपनी निष्ठां लगन से एक सुन्दर बगिया
बसाने की जद्दोजहद करती
कोई मेहनत कस महिला |
वह आकर अपने
खून पसीने से
भर जाएगी नया जीवन
और मैं प्रस्तर से
हरीभरी कन्दरा हो जाऊंगी |
राम नहीं सीता
की हैं आज हमें
तलाश जो चुपचाप
बिना किसी शोर शाराबे के
कर जाती है
ना जाने कितने नेक काम | सविता
9 टिप्पणियां:
बहुत खूब...
namste bhaiya ......abhar apka dil se
आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (20-04-2014) को ''शब्दों के बहाव में'' (चर्चा मंच-1588) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर
राम नहीं सीता कि तलाश ... अलग अंदाज़ कि रचना .. बहुत प्रभावी ...
सुशील भैया सादर नमस्ते ............शब्द ही नहीं आपका आभार व्यक्त करने के लिए भैया ..आप व्यस्तता के बावजूद आ यहाँ पढ़ते है हम नाचीज को ....बहुत बहुत शुक्रिया दिल से
अभिषेक भाई बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने चर्चा में शामिल करने के लायक समझा
दिगम्बर भैया सादर नमस्ते ............शब्द ही नहीं आपका आभार व्यक्त करने के लिए भैया ..आप व्यस्तता के बावजूद आ यहाँ पढ़ते है हम नाचीज को .और सराहते है हमारी लेखनी ...बहुत बहुत शुक्रिया दिल से
यथार्थ का बयान करती कविता। बधाई
संजय भाई आभार आपका बहुत बहुत तहेदिल से
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