११
साल के बच्चे को ५० साल की सजा... बेवकूफ था
किसी की हत्या करने का पाकिस्तान में गुनाह किया हमारे देश में करता बाइज्जत बरी होता ..कई समाज सेवी
उसके पक्ष में आ जाते पुलिस पर कसीदे पढ़ते ..पुलिस वाले भी उसका केस कमजोर
करते ....पत्रकार लोग महीनो उसके फुटेज लेते ...जज के आँखों के सामने हुआ
यह अतः भारत में जज और वकील अपनी सेटिंग करते फिर दसियों साल केस चलता तब
तक वह जवान हो जाता.... खून से सने हाथ ले जिन्दगी के कुछ मजे ले ही लेता
फिर सजा होती तो नाबालिक ..नासमझी में हुआ क़त्ल कह एक दो साल की सजा हो
जाती फिर रहता ऐश से और अपने बच्चो को नैतिकता का पाठ पढाता आखिर अपना भारत
महान जो हैं सब को जीने का मौका देता हैं भारत वासी जिसका नमक खाते हैं
उसका कर्ज भी चुकाते हैं ....शुभ दोपहर आप सभी को
ऐसा कुछ लिखने की चाहत जो किसी की जिंदगी बदल पाए ...मन के अनछुए उस कोने को छू पाए जो इक कवि अक्सर छूना चाहता है ...काश अपनी लेखनी को कवि-काव्य के उस भाव को लिखने की कला आ जाये ....फिलहाल आपको हमारे मन का गुबार खूब मिलेगा यहाँ ...जो समाज में यत्र तत्र बिखरा है ..| दिल में कुछ तो है, जो सिसकता है, कराहता है ....दिल को झकझोर जाता है और बस कलम चल पड़ती है |
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दिसंबर 16, 2013
दिसंबर 11, 2013
ढोल की पोल
जबान संभाल बोल कहें कि
झट दिखा दिए औकात
वह गज भर लम्बी रखे जुबान
जिसकी दो पैसे की नहीं औकात|
लुपछुप करते अक्सर जब
जब खुद का काम हो अटका
भीगी बिल्ली बन फिरते
थूक भी गले में रहे अटका
शेर के बेस में छुपे होते सियार
पकड़ें जाये तो लगते मिमियाने
छूटते ही देखो अपना रूप दिखाते
खरी खोटी कह रहते अक्सर खिसियाने|
गिरेबान झांकते खुद का तो
मिलते अवगुण उनमें हजार
ढोल की पोल रखने के चक्कर में
यूँ फिर कीचड़ नहीं उछालते भरे बजार| सविता मिश्रा
झट दिखा दिए औकात
वह गज भर लम्बी रखे जुबान
जिसकी दो पैसे की नहीं औकात|
लुपछुप करते अक्सर जब
जब खुद का काम हो अटका
भीगी बिल्ली बन फिरते
थूक भी गले में रहे अटका
शेर के बेस में छुपे होते सियार
पकड़ें जाये तो लगते मिमियाने
छूटते ही देखो अपना रूप दिखाते
खरी खोटी कह रहते अक्सर खिसियाने|
गिरेबान झांकते खुद का तो
मिलते अवगुण उनमें हजार
ढोल की पोल रखने के चक्कर में
यूँ फिर कीचड़ नहीं उछालते भरे बजार| सविता मिश्रा
दिसंबर 09, 2013
बोलने की स्वतंत्रता का फायदा ना उठाइए~अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ~
बोलने की स्वतंत्रता का फायदा ना उठाइए ......
अरे यह सब क्या बकवास लिखती हैं| आप को समझ नहीं आता,न सर, न पैर| बकवास लिखकर आप अपने को कवियत्री समझने की भूल कर बैठती हैं| दो-चार लोग वाह-वाह कापी पेस्ट कर डाल गए तो आप तो हवा में ही उड़ने लगी| आप निहायत ही बकवास लिखती हैं| जो तारीफों के पुल बाँध रहे है, वह तारीफ़ झूठी है| वह आपके लेखनी को नहीं आपको देख बोल रहे है| हम दंग थे यह सब पढ़कर ...|
फिर नारी पर क्या लिख दिए, पुरुष के अहम् को ठेस पहुँचा दिए | शुरू चौतरफा आक्रमण| कुछ नारी की हमदर्द बता गए| कुछ हम पर ही कीचड़ उछाल गए| कुछ बोल गए कि लगता हैं बेचारी बहुत दुखी हैं, पति बहुत सताता हैं, बहुत प्रताड़ित की हुई महिला है, तभी तो ऐसा लिखती हैं| कई तो अभिव्यक्ति का फायदा उठा धमकी तक दे गए कि पुरुष के खिलाफ लिखोगी तो यहाँ टिकना मुश्किल हो जायेगा|
अब लो, कर लो बात| यही बात यदि सामने कहते, तो हम भी बताते कि धमकी का जबाब क्या होता हैं| सभी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भरपूर फायदा उठाया| हमने भी उनका जबाब इसी अधिकार के तहत दिया| बीच में यह ख्याल आया कि.....
हमें अब कुछ बोलना ही नहीं,
किसी की भी पोल खोलना ही नहीं,
अभिव्यक्ति का घोट गला चुप रहना हैं
इन्साफ के तराजू में तोलना ही नहीं|
पर कुछ अनुचित शब्दो को भी बोल गए| शायद इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत वह मर्यादा भी भूल गए| हमने भी अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का फायदा उठाया| खूब उल्टा सीधा सुनाया, हाथ पैर चला ना पाये, अतः ब्लाक कर सफ़ेद कफ़न ओढा दिए|
यही आमने-सामने होते अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करते तो तू-तू--मैं-मैं होते होते, पता नहीं कब लाठी-डंडे चल जाते| ना लाठी डंडे तो दो-चार हाथ मारा-मारी तो हो ही जाती|
संवैधानिक रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जो हैं, जो मन में आया वह बोलेगे| पर इस तरह से हमें सामाजिक या व्यावहारिक रूप से बोलने की स्वतंत्रता नहीं हैं| समाज में लोग इस तरह बोलें, तो एक दूजे का मुहं तोड़ देते है, और हमारी संवैधानिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता धरी की धरी रह जाएगी| लो लड़ो एक स्वतंत्रता का प्रयोग करने के बाद दुसरे अधिकार यानि क़ानूनी अधिकार के लिए|
अतः सभी से अनुरोध हैं अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग भी बड़ा सोच समझ कर करें| अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का फायदा ना उठाये|
अपनी ही चार लाइनें कहना चाहेंगे .....
लोग दूसरों पर कीचड़ उछालने से बाज क्यों नहीं आते
पहले अपना ही गिरेबान झाँक क्यों नहीं आते
यकीं हैं हमें खुद को दूसरों से बुरा ही पायेंगे
भूलें से फिर किसी पर टिप्पड़ी करके नहीं आयेंगे|...सविता मिश्रा
अरे यह सब क्या बकवास लिखती हैं| आप को समझ नहीं आता,न सर, न पैर| बकवास लिखकर आप अपने को कवियत्री समझने की भूल कर बैठती हैं| दो-चार लोग वाह-वाह कापी पेस्ट कर डाल गए तो आप तो हवा में ही उड़ने लगी| आप निहायत ही बकवास लिखती हैं| जो तारीफों के पुल बाँध रहे है, वह तारीफ़ झूठी है| वह आपके लेखनी को नहीं आपको देख बोल रहे है| हम दंग थे यह सब पढ़कर ...|
फिर नारी पर क्या लिख दिए, पुरुष के अहम् को ठेस पहुँचा दिए | शुरू चौतरफा आक्रमण| कुछ नारी की हमदर्द बता गए| कुछ हम पर ही कीचड़ उछाल गए| कुछ बोल गए कि लगता हैं बेचारी बहुत दुखी हैं, पति बहुत सताता हैं, बहुत प्रताड़ित की हुई महिला है, तभी तो ऐसा लिखती हैं| कई तो अभिव्यक्ति का फायदा उठा धमकी तक दे गए कि पुरुष के खिलाफ लिखोगी तो यहाँ टिकना मुश्किल हो जायेगा|
अब लो, कर लो बात| यही बात यदि सामने कहते, तो हम भी बताते कि धमकी का जबाब क्या होता हैं| सभी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भरपूर फायदा उठाया| हमने भी उनका जबाब इसी अधिकार के तहत दिया| बीच में यह ख्याल आया कि.....
हमें अब कुछ बोलना ही नहीं,
किसी की भी पोल खोलना ही नहीं,
अभिव्यक्ति का घोट गला चुप रहना हैं
इन्साफ के तराजू में तोलना ही नहीं|
पर कुछ अनुचित शब्दो को भी बोल गए| शायद इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत वह मर्यादा भी भूल गए| हमने भी अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का फायदा उठाया| खूब उल्टा सीधा सुनाया, हाथ पैर चला ना पाये, अतः ब्लाक कर सफ़ेद कफ़न ओढा दिए|
यही आमने-सामने होते अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करते तो तू-तू--मैं-मैं होते होते, पता नहीं कब लाठी-डंडे चल जाते| ना लाठी डंडे तो दो-चार हाथ मारा-मारी तो हो ही जाती|
संवैधानिक रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जो हैं, जो मन में आया वह बोलेगे| पर इस तरह से हमें सामाजिक या व्यावहारिक रूप से बोलने की स्वतंत्रता नहीं हैं| समाज में लोग इस तरह बोलें, तो एक दूजे का मुहं तोड़ देते है, और हमारी संवैधानिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता धरी की धरी रह जाएगी| लो लड़ो एक स्वतंत्रता का प्रयोग करने के बाद दुसरे अधिकार यानि क़ानूनी अधिकार के लिए|
अतः सभी से अनुरोध हैं अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग भी बड़ा सोच समझ कर करें| अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का फायदा ना उठाये|
अपनी ही चार लाइनें कहना चाहेंगे .....
लोग दूसरों पर कीचड़ उछालने से बाज क्यों नहीं आते
पहले अपना ही गिरेबान झाँक क्यों नहीं आते
यकीं हैं हमें खुद को दूसरों से बुरा ही पायेंगे
भूलें से फिर किसी पर टिप्पड़ी करके नहीं आयेंगे|...सविता मिश्रा
दिसंबर 06, 2013
आत्मशक्ति ~
लड़कियां कपड़ें
पहनती है छोटे-छोटे
पुरुष अपने अहम को
संतुष्ट करते यह कह के|
बच्चियों का क्या कसूर
क्या उनके तन भी कपड़े नहीं होते
ऐसे दरिंदें तो शिशु को भी
कहीं का नहीं छोड़ते|
भेड़ियों की उपाधि तो
फालतू का ही दिए जा रहे
भेड़ियें भी शर्मशार हो
आजकल नजर नहीं आ रहे|
जानवर भी डरे सहमे है
इन बहशी दरिंदो से
किसी के छज्जें पर
नहीं बैठने वाले
पूछों उन उड़ते परिंदों से|
बिना आराम किये वह
आसमान की बुलंदिया छूता है
क्योंकि आदमी नामक
बला से वह भी बहुत डरता है|
उड़ जा री ओ गौरिया
अब नहीं है तेरा ठौर !
तेरी माँ हो गयी है
बहुत ही कमजोर |
नहीं चाहती तेरा हस्र भी
कुछ ऐसा हो !
नज़र ना पड़े तुझ पर
जो बहशी दरिंदा हो |
तुझे ताकत हिम्मत दे रहे हैं
जानती है किस लिए
विपरीत परिस्थितियों में तू
लड़ सकें हिम्मत से इस लिए|
गिद्ध सी जो तुझ पर
कभी कहीं नजर गड़ाये
तू चंडी है यह कह
अपनी आत्मशक्ति को जगाये |
देखना तेरी आत्मशक्ति जब जाग जाएगी
मन में बसी कमजोरी कहीं दूर भाग जाएगी |
नन्ही गौरया तू थोड़ा जब हिम्मत जुटाएगी
तो गिद्ध जैसे को भी परास्त कर जाएगी...|| ..सविता मिश्रा
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पहनती है छोटे-छोटे
पुरुष अपने अहम को
संतुष्ट करते यह कह के|
बच्चियों का क्या कसूर
क्या उनके तन भी कपड़े नहीं होते
ऐसे दरिंदें तो शिशु को भी
कहीं का नहीं छोड़ते|
भेड़ियों की उपाधि तो
फालतू का ही दिए जा रहे
भेड़ियें भी शर्मशार हो
आजकल नजर नहीं आ रहे|
जानवर भी डरे सहमे है
इन बहशी दरिंदो से
किसी के छज्जें पर
नहीं बैठने वाले
पूछों उन उड़ते परिंदों से|
बिना आराम किये वह
आसमान की बुलंदिया छूता है
क्योंकि आदमी नामक
बला से वह भी बहुत डरता है|
उड़ जा री ओ गौरिया
अब नहीं है तेरा ठौर !
तेरी माँ हो गयी है
बहुत ही कमजोर |
नहीं चाहती तेरा हस्र भी
कुछ ऐसा हो !
नज़र ना पड़े तुझ पर
जो बहशी दरिंदा हो |
तुझे ताकत हिम्मत दे रहे हैं
जानती है किस लिए
विपरीत परिस्थितियों में तू
लड़ सकें हिम्मत से इस लिए|
गिद्ध सी जो तुझ पर
कभी कहीं नजर गड़ाये
तू चंडी है यह कह
अपनी आत्मशक्ति को जगाये |
देखना तेरी आत्मशक्ति जब जाग जाएगी
मन में बसी कमजोरी कहीं दूर भाग जाएगी |
नन्ही गौरया तू थोड़ा जब हिम्मत जुटाएगी
तो गिद्ध जैसे को भी परास्त कर जाएगी...|| ..सविता मिश्रा
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दिसंबर 04, 2013
भ्रष्टाचार की जड़ शायद
सोचे और बताएं जरा तो सहीं ..
वोट उन्ही को देना चाहिए जो इनकी कीमत समझे और सही व्यक्ति हो ..वैसे जैसे हल्के से जनता के विरोध पर सरकारी कर्मचारी का ट्रांसफर या निलम्बित कर दिया जाता हैं यह जानते हुए कि वह गलत नहीं हैं, वैसे ही नेताओं को भी जब हम चुनते हैं तो हम ही बीच में उनके काम सही ढंग से ना करने पर हटा क्यों नहीं सकते, जबकि सरकारी कर्मचारी हम नहीं चुनते वह अपनी मेहनत के बलबूते आते हैं यह भी नियम होना चाहिए हैं न कि नेता को भी हम हटा सकें| .यदि हटा सकते तो भ्रष्टाचार की जड़ शायद समाप्त करने में सबसे बड़ा योगदान होता|....आप सब की क्या सोच हैं ......सविता मिश्रा
वोट उन्ही को देना चाहिए जो इनकी कीमत समझे और सही व्यक्ति हो ..वैसे जैसे हल्के से जनता के विरोध पर सरकारी कर्मचारी का ट्रांसफर या निलम्बित कर दिया जाता हैं यह जानते हुए कि वह गलत नहीं हैं, वैसे ही नेताओं को भी जब हम चुनते हैं तो हम ही बीच में उनके काम सही ढंग से ना करने पर हटा क्यों नहीं सकते, जबकि सरकारी कर्मचारी हम नहीं चुनते वह अपनी मेहनत के बलबूते आते हैं यह भी नियम होना चाहिए हैं न कि नेता को भी हम हटा सकें| .यदि हटा सकते तो भ्रष्टाचार की जड़ शायद समाप्त करने में सबसे बड़ा योगदान होता|....आप सब की क्या सोच हैं ......सविता मिश्रा
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