श्री मुख से
दो शब्द
निकले नहीं कि
मैंने कैद कर लिया
अपने हृदय उपवन में !!
अब हर रोज
दिल से निकाल
दिमाग तक लाऊँगी
फिर कंठ तक
फिर मुस्कराऊँगी
मेरे चेहरे पर
एक अलग सी
चमक बिखर जाएँगी
इसी क्रिया को
दुहराती रहूंगी
क्योंकि
अच्छी यादों को
बार-बार खाद-पानी
चाहिए ही होता है!
और तब जाके
एक दिन
तैर जायेंगी
सरसराहट सी
पूरे तनबदन में
फिर
बेकाबू हो
उड़ चलेगा
पूरा शरीर ही
हल्का-फुल्का हो
आकाश के उस पार!
फिर तुम्हारें ही
महज दो बोल
भारी कर जाएंगे
मन को
और तत्क्षण
ला पटकेंगे मुझे
धरती पर !
क्यों !
होता है न
ऐसा
कभी कभी !
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
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1 टिप्पणी:
एक शब्द ही कितना प्रभाव डालते हैं हमारे जीवन पर...बहुत सार्थक प्रस्तुति...
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