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नवंबर 20, 2017

कुछ यूँ ही-

जिंदगी हमारी इधर इक खुली किताब भले ही हो 
मगर उसको पढ़ने के सलीके बेहतर रखिये। #सविता मिश्रा #अक्षजा
बस अभी अभी दिल कह गया।
#सोच को रोक सका क्या कोई
--००--
 मेरी जिंदगी की शाम हो तो ऐसी हो
कि अभी अभी हुआ भोर हो की जैसी हो। #sm

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बेनकाब हो जाने का जुनून है सर पर

शर्त यह है आइना सा कोई हो सामने |..सविता यूँ ही

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खुद की उलझनों में उलझ कर प्रभु को
भूल जाना इंसानी फितरत तो ना थी
जब जब उलझता है सुलझने के बाद
उसी को याद कर करके शिकवा करता |

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जन्म लेते ही पेट के लिए जद्दोजहद शुरू हो जाती है और मरने तक कायम रहती है 😂 पापी पेट का सवाल है। Savita Mishra 👩

1 टिप्पणी:

'एकलव्य' ने कहा…

महिला रचनाकारों का योगदान हिंदी ब्लॉगिंग जगत में कितना महत्वपूर्ण है ? यह आपको तय करना है ! आपके विचार इन सशक्त रचनाकारों के लिए उतना ही महत्व रखते हैं जितना देश के लिए लोकतंत्रात्मक प्रणाली। आप सब का हृदय से स्वागत है इन महिला रचनाकारों के सृजनात्मक मेले में। सोमवार २७ नवंबर २०१७ को ''पांच लिंकों का आनंद'' परिवार आपको आमंत्रित करता है। ................. http://halchalwith5links.blogspot.com आपके प्रतीक्षा में ! "एकलव्य"