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सितंबर 01, 2013

हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया



हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया
कैसे लिख गये कोई महान कवि
हमें तो आज नहीं कल की फ़िक्र पड़ी
कल की छोड़िये जनाब सालो-साल की है पड़ी |

छ: सिलेंडर में साल भर कैसे निभायेंगे
साग -सब्जी, दाल-रोटी, नमक को महंगा कर
क्या कलेजे को ठंडक नहीं मिली
अब सिलेंडर-केरोसिन में भी आग लगी|

सोच रहे हैं -
बच्चों को और ज्यादा संस्कारवान बनायें
खुद के साथ-साथ उनकी भी पूजा-पाठ में रूचि बढ़ायें |

सोम-शिव, मंगल-हनुमान , बुध को बस खाए-खिलायें
बुहस्पति-बृहस्पति गुरु ,शुक्र-संतोषी,
शनि को शनि भगवान का व्रत रखवायें
रविवार को सब मिल थोड़े में ही पिकनिक मनायें |

घर बनवाने की हिम्मत न जुटे तो
कही सड़क किनारे ही कुटी छवायें
आते-जाते लोगो को इस महंगाई से परिचित करवायें
बस भोजन कम, भजन ही करते हुए जिन्दगी बितायें |

जिस तरह महंगाई की रफ़्तार बढ़ रही है
जनाब उसी तरह तनख्वाह भी तो बढ़वाइयें
हर फिक्र को धुएं में भला कैसे उड़ायें
जब खुद को ही धुयें में हम खोता पायें|....सविता मिश्रा

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