रिश्तों
में अब गुड की मिठास कम करेले की कड़वाहट ज्यादा हो रही हैं वैसे करेला भी
अब उतना कड़वा नहीं हैं जितना कि रिश्ते में मिल जायेगा ..मुहं पर मिठास
घोलने वाले पीठ पीछे ना जाने क्या क्या कह जाते हैं बल्कि यह कहिये कि
रिश्ता भी नहीं मानते बस लोकलाज में निभा रहे हैं ...ऐसे रिश्तों को तो
ख़त्म कर देना चाहिए पर जान कर भी मज़बूरी में निभाया जा रहा हैं महज लोकलाज
बस ...सच में कितनी कडवाहट है यह देख अचंभित हैं हम ..ना जाने समाज घर देश
कहा किस ओर जा रहा हैं|...सविता मिश्रा
मिलना बिछड़ना नियति का हैं यह खेल
खून के रिश्तों में भी जमने लगी अब मैल |
सविता मिश्रा
मिलना बिछड़ना नियति का हैं यह खेल
खून के रिश्तों में भी जमने लगी अब मैल |
सविता मिश्रा
2 टिप्पणियां:
अब सहनशीलता, त्याग और समर्पण घट रहा है. इसी वजह से रिश्तों की मधुरता गायब हो रही है.
सच कहा है .... जब से खून पानी होने लगा है रिश्तों में मैल जमने लगा है ...
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