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नवंबर 25, 2013

~हर बार नया ~

एक चेहरे पर दसियों चेहरे निकले
देखा गौर से तो ना जाने कितने निकले
परत दर परत
हटती रही चेहरों से उसके
जितनी बार देखा हमने उसे पलट के
हर बार एक नया शक्स नजर आया
पल पल भरमाया भटकाया उसने हमें
सोचते थे उड़ती चिड़िया के पर गिन लेते हैं
पर इंसानो ने ही ज्यादा भरमाया है हमें
अपना ही दावा खोखला निकला यहाँ
इंसानों को पहचानने में धोखा खाया
इंसानी दिमाक इतना शातिर हुआ
आँख में धूल झोंकने में माहिर हुआ||...सविता

4 टिप्‍पणियां:

Rajput ने कहा…

अपना ही दावा खोखला निकला यहाँ
इन्सानो को पहचानने मे धोखा खाया....
बहुत सुंदर रचना।

Jyoti khare ने कहा…

सोचते थे उड़ती चिड़िया के पर गिन लेतें हैं
पर इंसानो ने ही ज्यादा भरमाया है हमें-------

वाह !!! बहुत सुंदर और प्रभावशाली रचना
सादर

आग्रह है-- मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
आशाओं की डिभरी ----------

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

गज़ब
उम्दा अभिव्यक्ति

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत अच्छी और प्रभावी रचना...

अनु