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दिसंबर 11, 2013

ढोल की पोल

जबान संभाल बोल कहें कि
झट दिखा दिए औकात
वह गज भर लम्बी रखे जुबान
जिसकी दो पैसे की नहीं औकात|

लुपछुप करते अक्सर जब
जब खुद का काम हो अटका
भीगी बिल्ली बन फिरते
थूक भी गले में रहे अटका
शेर के बेस में छुपे होते सियार
पकड़ें जाये तो लगते मिमियाने
छूटते ही देखो अपना रूप दिखाते
खरी खोटी कह रहते अक्सर खिसियाने|

गिरेबान झांकते खुद का तो
मिलते अवगुण उनमें हजार
ढोल की पोल रखने के चक्कर में
यूँ फिर कीचड़ नहीं उछालते भरे बजार
| सविता मिश्रा

6 टिप्‍पणियां:

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

https://www.facebook.com/422061857833776/photos/a.703495969690362.1073741828.422061857833776/697922373581055/?type=1&relevant_count=1

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर और सटीक..

बेनामी ने कहा…

अति सुन्दर रचना

बेनामी ने कहा…

अति सुन्दर रचना

शिव राज शर्मा ने कहा…

बहुत सुन्दर

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

बहुत बहुत शुक्रिया कैलाश भैया,संजय भाई,और राज भाई आपका