दरवाजे पर कितने भी
ताले लगा बंद कर दो
पर अतीत आ ही जाता है
ना जाने कैसे
दरवाजे की दस्तक
कितनी भी अनसुनी करो
पर अतीत की दस्तक
झकझोर देती है पट
एक-एक करके
यादों के जरिये
आती जाती है
मन मस्तिक पर पुनः
वही अकुलाहट, हँसीएक क्षण में आंसू
दूसरे ही क्षण ख़ुशी
बिखेर जाती है
हमारे आसपास
देखने वाला
पागल समझता है
उसे क्या मालूम
हम अतीत के
विशाल समुन्दर में
गोते लगा रहे हैं
वर्तमान की
छिछली नदी को छोड़कर |
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
---------------------०० ---------------------
ताले लगा बंद कर दो
पर अतीत आ ही जाता है
ना जाने कैसे
दरवाजे की दस्तक
कितनी भी अनसुनी करो
पर अतीत की दस्तक
झकझोर देती है पट
एक-एक करके
यादों के जरिये
आती जाती है
मन मस्तिक पर पुनः
वही अकुलाहट, हँसीएक क्षण में आंसू
दूसरे ही क्षण ख़ुशी
बिखेर जाती है
हमारे आसपास
देखने वाला
पागल समझता है
उसे क्या मालूम
हम अतीत के
विशाल समुन्दर में
गोते लगा रहे हैं
वर्तमान की
छिछली नदी को छोड़कर |
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
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2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर...कितना भी चाहो अतीत की यादें कहाँ पीछा छोड़ती हैं...
बहुत बहुत धन्यवाद आपका कैलाश भैया
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