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नवंबर 16, 2014

माँ तुम कहीं नहीं जाती हो


एक उम्र ढलने के बाद अपने आप अपनी बेटी के लिए अपनी ही माँ की आदतें आ जाती हैं।...... :)

माँ तुम कहीं नहीं जाती हो
बेटी के अस्तित्व में ही बस जाती हो |

माँ तुम
तब तो बिल्कुल नहीं भाती हो
जब मेरी बेटी किशोरावस्था की
दहलीज को लाँघती है
मुझमें बसी तुम तब उसको
उलजुलूल नसीहतें देने लग जाती हो।

जब नातिन जवान हो जाती है
तुम्हारा अस्तित्व जाग जाता है
जो छुपा बैठा होता है
अपनी बेटी के ही अन्दर !

कितनी भी नसीहतें दूँ
नये जमाने की दूँ मैं दुहाई
समझाऊं कितना भी मन को
पर तुम विद्रोह कर देती हो
दोष तुम्हारा भी नहीं
तुम माँ जो ठहरी |

माँ तुम कहीं नहीं जाती हो
यहीं मेरे अस्तित्व में
अपनी बेटी के भीतर
बसी रह जाती हो |

चिता भले जला दी गयी हो तुम्हारी
पर अपनों की चिंता
सताती रहती है तुमको
सुलगती हुई चिंगारी सी तुम
मेरे ही अन्दर सोयी पड़ी हो!

यौवन की दहलीज पर
रखते ही कदम नातिन के
तुम भड़क जाती हो
अस्तित्व में जो सोयी पड़ी थी
एकबारगी जाग जाती हो !

मेरी बिटिया कहती है
कि माँ तुम बदल गई हो
किस्से जो नानी के सुनाती थी कभी
खुद ही तुम उसी में ढल गयी हो।

सविता मिश्रा 'अक्षजा'

5 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मन को छूते हुए ... कभी कभी तो भेदते हुए शब्द ...
माँ कहीं नहीं जाती ...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

https://www.facebook.com/photo.php?fbid=812577772113813&set=a.375494125822182.83461.100000847946357&type=3&permPage=1

Nirupama Mishra ने कहा…

लाजवाब,,

Nirupama Mishra ने कहा…

लाजवाब,,

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

आभार दिल से