मन का गुबार
ऐसा कुछ लिखने की चाहत जो किसी की जिंदगी बदल पाए ...मन के अनछुए उस कोने को छू पाए जो इक कवि अक्सर छूना चाहता है ...काश अपनी लेखनी को कवि-काव्य के उस भाव को लिखने की कला आ जाये ....फिलहाल आपको हमारे मन का गुबार खूब मिलेगा यहाँ ...जो समाज में यत्र तत्र बिखरा है ..| दिल में कुछ तो है, जो सिसकता है, कराहता है ....दिल को झकझोर जाता है और बस कलम चल पड़ती है |
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मार्च 02, 2022
फ़रवरी 24, 2022
मन की बात
फ़रवरी 14, 2022
भेलेन्टाइन (कविता)
फ़रवरी 08, 2022
अक्षजा
अक्तूबर 22, 2021
पत्रिकाओं के ईमेल- जनहित में जारी
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1. हंस, संजय सहाय (संपादक), editorhans@gmail.com
अप्रैल 26, 2021
कमजोर दिल वालों को सलाह
आज हमने यू ट्यूब पर लल्लनटॉप और भी कइयों के कई वीडियो एक एक करके इकट्ठे ही देख लिए। पहले भी देखते आए हैं लेकिन हफ्ते में एक दो या नहीं भी। देखकर लगा सरकार, सिस्टम, अस्पताल और शमशान सब जगह त्राहिमाम मचा हुआ है। सब जगह मानवता शर्मशार हुई पड़ी है। आकड़ो से अधिक संख्या में लोग ऑक्सीजन, बेड की कमी से मर रहे हैं। कई जगह तो डॉक्टर अपनी जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं हैं (ये वीडियो शायद किसी मरीज के तीमारदार ने बनाया था)। इतनी भयावह स्थिति देखकर थोड़ी देर लगा हर सम्बंधित व्यक्ति को खूब कोसे! लगा मानवता का ह्रास हो गया है, आदमी तकनीकों को इस्तेमाल करते-करते भावनाहीन हो गया है। उसे रुपए की महक समझ पड़ती है। वह रुपए के पीछे दीवाना हुआ पड़ा है। आखिर कहां ले जाएगा रुपया पैसा! मदद के नाम से भी कई लोग मजबूरों का गला काट दे रहे हैं। क्या उनका ये दोगलापन-बाजारवाद उन्हें कभी कचोटेगा!
क्या मनई जात अपनी जाति का भरोसा करना छोड़ दे! क्या जानवरों पर ही भरोसा करके सिर्फ उससे ही मिले-जुले और उसके साथ ही रहने लगे! उत्तर होगा, नहीं, अभी भी भरोसेमंद इंसान दुनिया में हैं, बस आपकी मुलाकात नहीं हुई। जिस समय हो जाएगी, आपका मानव जाति पर भरोसा पुनः जाग जाएगा। आखिर इसी भरोसे के बलपर तो आदमी जीवन को जिंदादिली से जीता है क्योंकि उसे भरोसा होता है कि उसके पीछे तमाम भरोसेमंद लोग हैं। कलयुग अवश्य है बन्धु, पर अभी भी घोर कलयुग नहीं आया कि मानव दूसरे मानव को देखते ही गला काट दें। मुट्ठी भर लोगों को देखकर मानव जाति से अपना भरोसा नहीं उठने दीजिए।
हमने देखे कई-कई वीडियो एक दिन में और झेल गए। आप सबसे विनती है, फेसबुक और यूट्यूब की ऐसी तथाकथित सच उजागर करने वाली वीडियो से दूरी बनाकर रखें। वरना बड़ी जल्दी डिप्रेशन में आ जाएंगे।
आप कहेंगे, आप नहीं आये! तो हम बता दे कि थोड़ी देर तो सकते में आ गए थे। लगा ये दुनिया किधर जा रही है! लेकिन हमारी चर्बी जरा मोटी है, ऐसे वीडियो को देखकर डिप्रेशन में आकर डॉक्टरों की जेब नहीं भरेंगे। लेकिन आप सबसे जरूर विनती है कि कुछ महीने ऐसी वीडियो से दूरी बनाए रखें, ठीक है।
हिम्मत रखिए, जीतेंगे। इस कोरोना काल में मौत को मात देकर जो लौट आए हैं, उनके अनुभव साझा करिए, और सकारात्मक रहिए, ठीक है। ऊपर वाले पर भरोसा रखिए जब तक आपका पत्ता वह साफ नहीं करता तब तक आप यही अटके रहेंगे और इन व्यवस्थाओं को कोसने का सुनहरा अवसर मिलेगा। फिर कोसियेगा जरूर। हो सके तो अपने स्तर से सुधार भी करिएगा। लेकिन अभी नकारात्मक बातों से दूरी बना लीजिए। वरना पागलखाने में भी बाढ़ आ जायेगी, पक्का मान लीजिए।
हम तो पतिदेव से जब कहते है ऐसी अव्यवस्था के बारे में तो वो कहते हैं कि तुम क्यों चिंता करती हो, खाओ, पीओ और आराम से रहो। हम भी वही डायलॉग आप सबसे कह रहे हैं। चिंता न करिए, वरना चिता की ओर बढ़ने लगेंगे। हो सके तो शोशल मीडिया से दूरी ही बना लीजिए।
भावनाए खत्म ही नहीं हो रही, लिखते ही जा रहे हम। जबर्दस्ती खत्म करते हैं अपनी बात। ध्यान से रहिए, पॉजिटिव होते ही एम्बुलेंस, सिलेंडर और बेड की जानकारी जरूर इकट्ठा कर लीजिए। जैसे जरूरत के समय आपका कीमती समय नष्ट न हो। किसी एक डॉक्टर का नम्बर जरूर रखिए।
ख्याल रखिए और कोरोना को पास मत फटकने दीजिए। विजयी अवश्य होंगे। तथास्तु
अक्षजा
अप्रैल 07, 2021
जाई बिआहे मा (अवधी)
कपड़य नाही बा, ये हो कईसे जाई बिआहे मा
लै आई दा दुई चार ठे साड़ी, तब्बय त जाई बिआहे मा
साल दुई साल से नाय खरीदे बीता भर भी कपड़ा
दई दा न पांच हजार रुपिया, ये हो तब्बे त जाई बिआहे मा
खरच होई ग सगरा रुपिया पैसा ये ही घरे मा ही
हमरे खरचा बरचा बरे दई दा न, तब्बे त जाई बिआहे मा
अहिऐ बम्बई से ननदि और जेठानी करकत्ता से
बघारब तोहरै बखान तब्बई त ना, ये हो जाई बिआहे मा
सुघ्घड़ लागे तोहार मेहरारू चहतै त तुहू एहि न
गोटा पट्टी वारी चमकवनी साड़ी लाय द न, जाई बिआहे मा
काकी माई ताई देखिन कै हमके प्रहसन करिहै
लेय आई द न बड़के मारकेट तै साड़ी तब्बे त जाई बिआहे मा।
होई सके त एक ठू हरवा भी गढ़ाए द कड़वा कै साथे
देखाय देखाय मायके मा गदराइब हम जाई बिआहे मा।
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
7/4/2021 को लिखी गयी।
😆😁
मार्च 16, 2021
दिल की खिड़की को खोलती कहानियां😊
दिल की खिड़की को खोलती कहानियां😊
कुछ दिन पहले ही मंगाई गई 'चबूतरे का सच' लेखिका श्रीमती आशा पांडेय की किताब पढ़ी।
अपने आस पास बिखरी विसंगतियों को लेकर सरल-सहज भाषा में बुनी कहानियां प्रभावित करती हैं। #चबूतरे_का_सच जैसी कहानियां सोचने को मजबूर करती हैं कि गांवों में क्या कल जो स्त्री की हालत और हालात थे आज वो बदले हैं क्या! जवाब में दिमाग में चिंतन चलने लगता है लेकिन हाथ खाली के खाली रह जाते हैं।
कुल मिलाकर शब्दों के टांके वाक्य में ऐसे फीट किए हैं, पढ़ने के बाद लगता है जैसे दिलोदिमाग में फिट हो गए हों।
लेखिका को भरपूर बधाइयां एवं शुभकामनाएं। लिखिए और मन को जीतिए, सादर।
आपकी किताब की एक पाठिका- #अक्षजा
फ़रवरी 04, 2021
सविता उवाच
अपने को साहित्य में प्रायोजित नहीं करिए, बल्कि साहित्य आपको प्रायोजित करे, इतना उसे समय दीजिए। 'अक्षजा' का घनघोर उवाच 4/2/2021
सुप्रभात
फ़रवरी 03, 2021
सविता उवाच
शब्द तीर है, कोई भी किसी के खिलाफ चला सकता है। लेकिन यह भी ध्यान रहें, कि हवा में न चलाइए , वरना अपने ऊपर ही आ गिरेगा! अक्षजा
शब्द निष्ठा ग्रुप में 3/2/2021 को
फ़रवरी 02, 2021
26 जनवरी का वह काला दिन
सबसे दुखद वाकया इस दंगे में 350/400 के करीब खाकी वाले घायल हुए।
लेकिन किसानी का पताका फहराने वाले पोस्टकर्ता जिनके पास सिर्फ गमलों में खेती उगती है वो अपने को किसान कहते हुए तथाकथित किसानों के आवभगत में लगें हैं।जो व्यक्ति भौकार फाड़कर संवेदना का कार्ड खेल रहा। जिसे खुद खेती नहीं व्यापार से प्यार है, उसके लिए मार-काट, गाली-गलौज पर उतर आ रहे हैं। सिर्फ और इसलिए कि विरोध करने का धर्म निभाना है।
कमाल है!! नहीं क्या!!
सबकी ही संवेदना खाकी के प्रति सोई रहती हैं, क्यों वो मानुष नहीं हैं क्या!! अब कील या तार के द्वारा अपनी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर रहें हैं तो सबको मिर्ची लग रही!! ये दोगली नीति अच्छी नहीं है भई! जागो बन्धु जागो सिर्फ किसी की बुराई करने हेतु उन्मादी भीड़ के संग मत भागो वरना कहावत एक बार फिर चरितार्थ होने लगेगी कि कान न टौवे कव्वा खदेड़े।
ये तथाकथित किसान बन्धु सड़क छेंककर सुख सुविधा भोगने वाले तो बोले थे कि पुलिस वाले हमारे भाई हैं, हम पर वार नहीं करेंगे। खाकी ने बखूबी भैय्पन्न निभाया लेकिन आप किसानों ने पीठ में छुरा घोंप दिया। इतना दबदबा दिखाया कि बेचारे अपनी जान बचाने के लिए दनादन खाई में कूदने लगे। आप सब खालिस्तानियों और तथाकथित किसानों ने तो जलियांवाला बाग हत्याकांड की यादें ताजा करवा दीं बन्धुओं! तब भी आप सब शोशल मीडिया धारी बन्धुओं उन तथाकथित किसान के इस कार्ड-प्ले पर घोर चुप्पी साधे बैठे रहें। क्यों!! क्योंकि आपको सरकार का येनकेन प्रकारेण सरकार का विरोध करना है और खाकी से तो आप सबकी जलन जग जाहिर है। आप लूटमार मचाओ तो ठीक और खाकी वाले ड्यूटी देते भी दिखे तो आपकी भाषा होती हैं कि साला घूस खाने के लिए मुस्तैदी से डटा है। अपनी पूर्वाग्रही मानसिकता आप त्याग भी नहीं सकते क्योंकि ये मानसिकता आपको घुट्टी के साथ ही पिलाई गयी होती है। उन ख़ाकीधरियों के साथ इतनी अमानवीयता हुई फिर भी वो अगन्द पांव से जमे रहे। उन लोगों ने न लट्ठ बजाया क्योंकि उनका बस वही अस्त्र-शस्त्र है भले उस अस्त्र के सामने कोई शस्त्र लेकर आ जाए। न ही अपनी अटकी जान को बचाने के लिए रिवॉल्वर चलाई । वैसे भी अक्सर रिवॉल्वर चलाने के लिए नहीं बल्कि सिर्फ लटकाने के लिए दी जाती है। उनकी जान पर भी बन आए वो उसका प्रयोग तब तक नहीं कर सकते जब तक सामने वाला पहुँचा हुआ क्रिमिनल न हो। वो भी उतना ही प्रयोग कर सकते जितना कि एक गृहणी नमक का करती है किसी व्यंजन में। यानी सीधे गोली नहीं मार सकते जिससे कि उनकी अपनी जान बचे बल्कि अपराधी के पैर में मारने का अधिकार है। तो उसकी इस मजबूरी का भरपूर फायदा भाई कहने वाली उन्मादी भीड़ ने बखूबी उठाया। क्योंकि वो सब भले उन्मादी थे लेकिन थे तो सबकी नजरों में बेचारे किसान, देशप्रेमी किसान। जो देश की संपत्ति को भले तहस नहस ही क्यों न कर डालें। ख़ाकीधरियों को पीटना ,उनसे तू तड़ाक करना, मोबाईल का वीडियो बटन दबा कर खुले आम उनकी इज्जत की धज्जियां उड़ाना तो आजकल युवाओं का खेल तमाशा सा हो गया है। उस
के प्रति इन सभी नकारात्मक अफवाहों का संज्ञान लेते हुए ही शायद किसानों ने ताबड़तोड़ उनपर हमला किया और बाद में अपने को दूध का धुला साबित करने के लिए हास्य के साथ विवादित वीडियो बनाई और उन ख़ाकीधरियों के खिलाफ शोशल मीडिया में फैलाकर बेखौफ इस्तेमाल किया।
किसी की भी सहनशीलता की इतनी बार परीक्षा!! असहनीय होनी चाहिए भई ये सभी व्यक्ति के लिए। लेकिन नहीं, ज्यादातर ने अपनी भड़ास निकाली और खाकी पर दे मारी जिससे खाकी और बदरंग हो गयी।
नेता न बनो बन्धुओं,न किसी के पिछलग्गू। गलत को गलत बोलो। यदि सरकार गलत है , आपकी नजर में पुलिस वाले भी गलत हैं तो तथाकथित किसान भी दूध के धुले नहीं हैं। तलवार भांजना, तिरंगे का अपमान करना, लाल किला जो ऐतिहासिक और देशभक्ति का परिचयक है उसको हानि पहुंचाना, ये सब किसानी के लक्षण तो नहीं!
अपनी ड्यूटी करने वाले ख़ाकीधरियों को पीटकर किला जीत लिए तो हाँ भई, आप सब किला तो जीती लिए। क्योंकि समाचार चैनलों के मुताबिक आपने 350 से 400 ख़ाकीधरियों को अस्पताल पहुंचा दिए।
दंगे में लाल किला तबाह हुआ, उसपर धार्मिक झंडे लगाए गए। जैसे कि देश का लाल किला न हो किसी की बपौती हो। रेलगाड़ी के एसी कम्पार्टमेंट से तौलिया या चादर चुराने वाले, होटल से चीजें गायब कर देने वाले हम भारतीयों की नीयत अपने देश से भी घात करने से बाज़ नहीं आयी। वहां भी ये उठाईगीर मानसिकता के लोगों ने लाल किले का ताजपोशी-सा किए उन दो कलशों पर हाथ फेर दिया। उनकी धार्मिकता के पीछे छुपी उनकी उठाईगिरी फितरत ने अपना रंग दिखाया।
और फिर मेन सड़क पर धरना देने बैठ गए पूरी सुख-सुविधा इकट्ठी करके। सुख सुविधाएं खत्म होते ही तथाकथित नेता का बयान को आप सब सरकार के खिलाफ लिखने वालें शोशल मीडिया वालों ने नजरअंदाज कर दिया कि "न बिजली न पानी, बिना सुख सुविधा के अब आंदोलन कैसे हो पायेगा"। जबकि सबसे बड़ा प्वाइंट यही था जिसे नोटिस किया जाना चाहिए था।
अच्छा सबको मारिए गोली, बस एक बार सोचिए कि अभी ये सभी तथाकथित किसान आपके घर के सामने धरना देने बैठ जाएं तो!! वहीं आपके घर के पास बहती सरकारी नाली में लोटा लेकर बैठे तो !! शराब के दौर न भी चले तो भी आप 100 नम्बर डायल कर-करके नाक में दम कर देंगे। जबकि वो सरकारी सम्पत्ति को ही अधिकार से प्रयोग कर रहें होंगे लेकिन वह आपके घर का सामना है अतः आप फट पड़ेंगे । एड़ी चोटी का जोर लगाएंगे उन्हें वहां से बेदखल करने के लिए। फिर ये किसान जिस बीच सड़क पर धरना दिए बैठे हैं उसके आसपास रहने वालों के विषय में सोचिए जरा!! खुद को उनकी जगह रखेंगे तो आप सबको उनकी भी तकलीफें पता चलेगी! सबको भक्तों, चमचा, अंधभक्त और न जाने क्या क्या कहने वाले लोगों जरा अपनी ओर भी निहारिए प्लीज। आप क्या अंधभक्त चमचे नहीं नज़र आ रहें! आप करो तो सच का साथ और जो दूसरें लोग करें वो निराधर्म! भई मानना पड़ेगा कि आप किसी खास चक्की का आटा खाते हैं।
कोई परिचित या बच्चे जब नोयडा गाजियाबाद जाते हैं तो जान हलक में अटकी रहती है। लेकिन हे दिल्ली वाले समर्थकों! आप क्योंकर समझेंगे! रोड बंद होने से भी इंसान को कितना घूमकर अपने गंतव्य तक पहुँचना पड़ रहा, शायद ही आप सब समझेंगे। वो कहावत है न, जाके फटे न बिवाई, उ क्या जाने पीर पराई।
थोड़ी इंसानियत बरतिए और दिखाइए भी। और हां इस शगूफे को अब गोली मारियेगा। क्योंकि पोस्ट पढ़-पढ़कर कोफ्त होने लगी है। बबूल का पेड़ न बनिए बन्धुओं!
हमें भी लिखना न था, लेकिन इन दिनों इतनी अधिक पोस्ट दिखी किन्तु एक भी पोस्ट ने खाकी वालों की चिंता नहीं की...केजरी साहब भी मोफलर पहनकर किसानों को पानी पिला आएं, जबकि उनकी तरफ से साफ साफ बयान आया था कि भाजपा और आप पार्टी वाले शामिल हैं लाल किले पर हंगामा करने के लिए। हम किसान उस घटना से खुद को अलग करते हैं और अब देखिए उन्हीं को जेल से छुड़ाने की शर्त रख रहें। लेकिन ख़ाकीधरियों से तो केजरीवाल भाई जी का छतीस का आंकड़ा है। खाकी को भी पानी चाहिए, जरा उन्हें भी पानी पिलाइए और हर कदम पर उनकी पानी- पानी करने से गुरेज करिए।
सब मजे में रहिए लेकिन व्यक्ति या पार्टी के खिलाफ ही बस न रहिए । कभी-कभी खिलाफत करते हुए अच्छाइयां भी पोस्ट करके अपने अंदर की कड़वाहट हटाते रहिए। सबके संग रहना है तो मैल क्यों रखना भई, नेता तो नहीं हैं न फिर क्योंकर किसी से भी अंधभक्ति! एक तरफा पोस्ट जब करते ही रहते हैं तो ...खैर !!बकिया सब ठीकी-ठाक है!
'अक्षजा'
2/2/2021
भवनाएं में बहकर बहुत बड़ा सा लेख टाइप हो जाएगा या कहिए हो ही गया। इसलिए अब द एंड😁
हम कुछ कहे का!! कछु तो नाही!इसलिए टेक इट इजी😃
एक भारीभरकम किसान
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
🙈🙊
मार्च 29, 2019
आसपास के लोग (कहानी संग्रह) समीक्षा
लेखक : कृष्ण मनु
आसपास के लोग (कहानी संग्रह)
सम्पर्क नम्बर : ९९३९३१५९२५
प्रकाशक : विश्व साहित्य परिषद
मेरे मन की बात कहानी पढ़ते हुए...😊
पढ़ी कहानी भी एक दो फिर उसे धर दी हमने ताक |
‘आसपास के लोग’ की कहानियां बहुत ही भायीं
‘गफूर भाई’ ने तो दिल में ज्यादा ही जगह बनायी |
‘जंग’ का ‘राकेश’ ‘करमा के करम’ का क्या कहें
मेरे ही तो आसपास के ये सभी किरदार लगें |
पढ़ते हुए 'पुराना चश्मा' हमें लगा लेखक होना है भार |
'अव्यक्त संवेदना' में व्यक्त दर्द घायल मेरे दिल को कर गया
'सरिता मंइयां साब' की किरदार ने अंत में संवेदना भर गया |
फिर बढ़ी आगे, ‘पथराई आंखों की भाषा’ बहुत कुछ कह गई
कुछ पढ़ कहानी मनन करने लगी, कुछ ने आंखों में लगाई झड़ी |
'एक बार फिर' में मजदूर की मज़बूरी
तो 'शिनाख्त' में मधुर गृहस्थी की गुंथन
एक में दारु में सब दर्द पी जाना
तो दूजे में सूरत से ज्यादा सीरत की जतन |
ज्यादातर कहानी के किरदार के हाथों में
घातक सिगरेट मुई जलवाई गयी
'कोहरा छटने के बाद' भी मजदूरों के
शोषण पर हमारी सुई अटक ही गयी |
'ताले पर ताला' शीर्षक ने हमें उलझाया
और अंदर क्या लिखा जानने को भी उकसाया
पढ़ते हुए कमरा आवंटन का भ्रष्टाचार समझ आया
और साथ ही चौथे ताले ने खूब हंसाया |
'भुगतान' में कर्तव्य-परायणता को दिलाया लेखक ने सम्मान
दुआ हमारी, ऐसी कहानी करें साहित्य में स्थापित कीर्तिमान |
मजहब के खातिर मैं अपनी ज़िन्दगी को तबाह नहीं करूँगा
'भविष्य की झलक' में इस कथन ने विद्रोह का भान कराया |
सहज सरल भाषा में लिखी कहानी संग्रह की हमें भेंट
मनु भैया आप करना क्षमा जो मेरी प्रतिक्रिया हुई लेट |
लिखकर आपने किया मुकाम हासिल, और भी आगे बढ़ें
व्यक्त करते हैं आभार, जो आप अपनी कहानी पढ़ने लायक हमें समझे
फ़रवरी 14, 2019
शहीदों को नमन
उनके परिजनो को अब धीरज धराये कौन
उनकी माँ के आँसूओं को अब सुखाए कौन । sm 😢😢
14/2/2019
फ़रवरी 07, 2019
खूबसूरत सा गुलाब
आज 7/2/2019 को रोज डे पर एक कविता
मचलता गुलाब डे भी देखो आज आ गया इधर
न शरमाओं तुम दे दो मुझे भी एक प्यारा गुलाब
हूँ मिज़ाज से गर्म लेकिन ये दिल है कोमल बड़ा
दिल मचलता है मेरा भी लेने को सुनहरा गुलाब
लाल हो या हो पिंक सा फिर चाहे काला ही दे दो
मुझे भी रोज डे पर दो तुम आज ढेर सारा गुलाब
पचास की ही होने को हूँ सठियाई नहीं हूँ जनाब
मचल जाऊँ देखकर मैं भी खूबसूरत सा गुलाब |