ककहरा था कभी सभी की जुबान
अलजेब्रा हो गयी अब अपनी आन
ककहरा के थे कभी हम सभी पुजेरी
अलजेब्रा के हो गये अब तो नशेणी |
अम्मा बाबू आज
मम्मी पापा हो गये
भैया-बहिनी को तो
ब्रदर-सिस्टर कह गये
इतना ही नहीं और भी
फैन्शी अंग्रेजी आ गयी
अब तो बच्चे मम्मी को माम
डैडी को पाप्स कहने लग गये |
आंटी झट से आंट बन गयी
अंकल तो शुक्र है अंकल ही रहे
बहन सिस्टर फिर सिस हो गयी
ब्रदर तो अचानक ही ब्रो हो गये
हिंदी भाषा भाषी को गंवार कह गये
अंग्रेजी फर्राटे से बोले तो स्मार्ट कह गये
मातृभाषा को अपनी मदरटंग कह गये
दफ्तर में भी हम अंग्रेजियत सह गये |
कैसा ये जमाना गया नया आ
अंग्रेजियत का नशा सा गया छा
उदण्ड लोग सड़को पर डोल रहे
गलती करके सॉरी बेफिक्री से बोल रहे
अंग्रेजियत का ही फूहड़पन रहे झेल
अपनी मातृभाषा को पीछे रहे ढकेल|
ककहरा को छोड़ सब अलजेब्रा के हो गये
हम भी इसी रंग में रगने को विवश हो गये
जब से हम अंग्रेजियत के रंग में रंग गये हैं
यकीन मानिये शर्म से पानी-पानी हो गये हैं || सविता मिश्रा
3 टिप्पणियां:
बहुत सटीक प्रस्तुति...हम विकास के नाम पर अपनी सभ्यता और संस्कृति को भूलते जा रहे हैं...
अब काम बड़े और दर्शन छोटे हो गए हैं
बिल्कुल सही
लेकिन आज आपको एक बात बताऊँ
मेरा बेटा जब से बोलना शुरू किया मम्मी ही बोला
दिल को छूता था
देवर का बेटा अम्मा बोलता है
कुछ साल पहले से माँ बोलने लगा पहले अगरा कर बोलता
फिर दुलार-प्यार से अब हमेशा माँ ही बोलता है
उसकी होने वाली पत्नी भी माँ बोलती है तो अब मैं अगरा जाती हूँ
हार्दिक शुभकामनायें
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