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मार्च 25, 2014

कुछ मन की भड़ास

न डर डर
न थर थर
डरा डरा
थरथरा रहा
हो गया जब थेथर
तो हर हर का
मुद्दा उठा लिया
खुद के हार का
डर लेकर .
..कैसी रही .....वैसे क्यों हम सब इन चक्करों में पड रहे है क्या देगें हमें सिर्फ महगाई बढाने के सिवा ......एक बार देखने का मन है मोदी जी को पर होगा वही जो होता आया है कोई बदलाव नहीं होने वाला ...हमारा मानना है कोहू नृप होए हमें तो हानि ही हानि |

वोट की चोट
करारी और भारी
एक ही बारी| savita


सब के सब कुर्सी की दौड़ में है नहीं मिले तो कोई आंसू बहा रहा कोई बगावत कर रहा कोई दल बदल अपनी कुर्सी पक्की कर रहा ..फेवीकाल के  जोड़ जैसा है कुर्सी और नेता का नाता सभी को कुर्सी ही तो है भाता ..भाये भी क्यों ना यह कुर्सी सात पुश्तों तक ठाठ बाट जो बना देती है ..भैये किसी को भी मिले कुर्सी का मोह कोई क्यों कर छोड़े ...हमें मिलती तो क्या छोड़ते :P

दलबदलू
खूब मौज इनकी
चुनाव मध्य ..सविता


मन तो है बसपा सपा को भी देखने का ....:D
पर वही धाक के तीन पात इनकी कोई नहीं है जात ..थाली का बैगन है सब जिधर भार देखेगे पलट जायेगें अपना और अपनो के लिए ही फायदा उठायेगें हमें बेसहारा यूँ अपनी गलियों में छोड़ जायेगें बनने के बाद पांच साल फिर नजर नहीं आयेगें |


दीपक लेके ढूढने से भी नहीं मिलते
सच्चे लोग अब कही भी नहीं मिलते
खोजते रह जाओ सूरज के भी उजाले में
 किसी भी चोले में
भले लोग नहीं मिलते| सविता :) :D

बिकते लोग
जैसे चाहा हुआ क्या
निराश मन| savita

6 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

भले लोग न मिलेंगे इसलिए खोज बंद तो नहीं कर देनी चाहिए ... अच्छा लिखा है आपने ...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

digamber भैया नमस्ते ....सही कहें आप खोजना बंद नहीं करना चाहिए भले आप जैसे भी तो है ....दिल से कहें मजाक नहीं .....पर नेतागिरी में भला भी बुरा बन जाता है शायद उसकी भी मज़बूरी है अकेले पड़ने के डर जो सताता है शायद .......आभार भैया आपने समय दे पढ़ा

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

आभार आपका ब्लॉग बुलेटिन जी दिल से

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

वाह...सुन्दर और सामयिक पोस्ट...
नयी पोस्ट@चुनाव का मौसम

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

prasnna bhai dhanyvaad apka

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

सुशील भैया आभार आपका दिल से