पुरुष खड़ा है
विरोध में
पुरुष के ही !
फैला रहा भरम जाल
और
फंसी रही स्त्री।
स्त्री के आस-पास
हर अनजान पुरुष
दुश्मन होता क्यों ?
स्त्री के अपने
जाने पहचाने
पुरुष का ही !!
सोचो तो एक बार
दिख जायेंगी
सच्चाई भी
जो छुपाई गयी है
स्त्री ही स्त्री की दुश्मन
सगूफ़े की आड़ में !
हे पुरुष !
अब तो जागो
मकड़जाल में फांस
स्त्रियों को यूँ
अब तो न उलझाओ !
तुम्हारी ही बनाई
परिधि से निकल रही है
स्त्री भी अब जग रही है !!!
विरोध में
पुरुष के ही !
फैला रहा भरम जाल
और
फंसी रही स्त्री।
स्त्री के आस-पास
हर अनजान पुरुष
दुश्मन होता क्यों ?
स्त्री के अपने
जाने पहचाने
पुरुष का ही !!
सोचो तो एक बार
दिख जायेंगी
सच्चाई भी
जो छुपाई गयी है
स्त्री ही स्त्री की दुश्मन
सगूफ़े की आड़ में !
हे पुरुष !
अब तो जागो
मकड़जाल में फांस
स्त्रियों को यूँ
अब तो न उलझाओ !
तुम्हारी ही बनाई
परिधि से निकल रही है
स्त्री भी अब जग रही है !!!
3 टिप्पणियां:
प्रेरक - शुभकामनाएं
प्रभावी रचना
बहुत खूब
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
सादर
बहुत अच्छा लिखती हैं आप । जी हाँ स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है । बढ़िया रचना ।
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