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मार्च 31, 2014

सदैव तो चुप ही रही-

जीवन की आपा धापी में नारी
अपना ही जीवन जीना भूल गयी |

कभी बेटी-बहन, पत्नी-माँ बनकर जिया
अपने ही जीवन को तूल देना भूल गयी |

मानव जीवन में नारी की कोई कद्र नहीं
अग्रणी समाज में भी नारी स्वतन्त्र नहीं |

वसूलों की जंजीरों में हुई जकड़ी
दुखित हुई जो तनिक भी अकड़ी |

खुशियाँ सारी दूजो पर लुटाती फिरती
गम को अपने सीने से लगा दफ़न करती |

सुख-सम्पदा सब दूजों में ही बाँट देती
दुसरे की कमियों को अपना बता लेती |

ऐसे ही तो नारी जीवन यापन कर रही
जीवन के झंझावतों को सहती जी रही |

सब कुछ सह-सुनकर भी
सदैव तो चुप ही रह रही|
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
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3 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

नारी मन की व्यथा को चित्रित करती सुन्दर अभिव्यक्ति...

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

कैलाश भैया नमस्ते .......आभार आपका दिल से

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

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