ऐसा कुछ लिखने की चाहत जो किसी की जिंदगी बदल पाए ...मन के अनछुए उस कोने को छू पाए जो इक कवि अक्सर छूना चाहता है ...काश अपनी लेखनी को कवि-काव्य के उस भाव को लिखने की कला आ जाये ....फिलहाल आपको हमारे मन का गुबार खूब मिलेगा यहाँ ...जो समाज में यत्र तत्र बिखरा है ..| दिल में कुछ तो है, जो सिसकता है, कराहता है ....दिल को झकझोर जाता है और बस कलम चल पड़ती है |
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नवंबर 28, 2012
नवंबर 26, 2012
संस्कार-
पुरानी पीढ़ी ने हमें कंधो पर बैठाया
सच्चे-बुरे का सभी फर्क समझाया|
पर हम तो भागती दुनिया के पीछे ही भागे
कब अपने बच्चों को कंधो पर बैठा बढ़े आगे|
सच्चे-बुरे का सभी फर्क समझाया|
पर हम तो भागती दुनिया के पीछे ही भागे
कब अपने बच्चों को कंधो पर बैठा बढ़े आगे|
उन में संस्कार नहीं है अब चीख -चिल्ला रहें हैं
क्या हम अपनी पीढ़ी से मिले संस्कार
सच्ची में अपनी नयी पीढ़ी को दे पा रहें हैं ?
फिर भी गनीमत है
वह अभी भी हमारी कद्र करते हैं
शायद कन्धा नहीं, हमारी ऊँगली
पकड़कर चलने का मान करते हैं |
पर आज की पीढ़ी तो
कुछ इस तरह मार्डन हो गयी है
कन्धा -उंगली दोनों छोड़
नवजात शिशु को
टोकरी में रखकर चल रही हैं |
क्या टोकरी-ट्राली में पलने वाले वे शिशु
हमारे संस्कार पा रहे हैं ?
अपनी माँ-बाप के छुवन के अहसास को भी
सही से महसूस नहीं वो कर पा रहे हैं |
आगे चलकर यह शिकायत ना करना कभी
अपनी अगली पीढ़ी से आप सभी
कि तुम संस्कार विहीन और
मार्डन हुए जा रहे हों |
जब वह तुम्हें ट्राली में बैठाकर कहीं घूमाएँ
गनीमत समझना की निर्जन रास्ते पर
तुन्हें वह लावारिस नहीं छोड़ आ रहें हैं |
छोड़ भी आयें
यदि वृद्धाश्रमों में तो भी
आश्चर्य नहीं करना तनिक भी
क्योंकि
तुम भी तो कमाने की होड़ में
छोड़ जाते थे आया की गोद में |....सविता मिश्रा
क्या हम अपनी पीढ़ी से मिले संस्कार
सच्ची में अपनी नयी पीढ़ी को दे पा रहें हैं ?
फिर भी गनीमत है
वह अभी भी हमारी कद्र करते हैं
शायद कन्धा नहीं, हमारी ऊँगली
पकड़कर चलने का मान करते हैं |
पर आज की पीढ़ी तो
कुछ इस तरह मार्डन हो गयी है
कन्धा -उंगली दोनों छोड़
नवजात शिशु को
टोकरी में रखकर चल रही हैं |
क्या टोकरी-ट्राली में पलने वाले वे शिशु
हमारे संस्कार पा रहे हैं ?
अपनी माँ-बाप के छुवन के अहसास को भी
सही से महसूस नहीं वो कर पा रहे हैं |
आगे चलकर यह शिकायत ना करना कभी
अपनी अगली पीढ़ी से आप सभी
कि तुम संस्कार विहीन और
मार्डन हुए जा रहे हों |
जब वह तुम्हें ट्राली में बैठाकर कहीं घूमाएँ
गनीमत समझना की निर्जन रास्ते पर
तुन्हें वह लावारिस नहीं छोड़ आ रहें हैं |
छोड़ भी आयें
यदि वृद्धाश्रमों में तो भी
आश्चर्य नहीं करना तनिक भी
क्योंकि
तुम भी तो कमाने की होड़ में
छोड़ जाते थे आया की गोद में |....सविता मिश्रा
नवंबर 25, 2012
फायकु =======
१.चाहत है हमारी लेखनी
गीत बन बहू
तुम्हारें लिए
२.नहाना धोना भूल गयी
इतंजार बस तेरा
तुम्हारें लिए
३.उकता गयी जिन्दंगी से
जीतीं फिर भी
तुम्हारें लिए
४.रात दिन जागें हम
भर नैन नीर
तुम्हारें लिए
५.करना चाहा था बहुत
कर ना पाए
तुम्हारें लिए
६.गद्दारों को मार गिराएँ
ये मेरे वतन
तुम्हारें लिए
7.नारियों को दोषी ठहरातें
चुप है हम
तुम्हारें लिए
8.जीने को है तैयार
दर्द में सही
तुम्हारें लिए
9.बोलने को कहतें है
बोलें नहीं बस
तुम्हारें लिए
10.गहन सोच में थे
कुछ कर गुजरेगें
तुम्हारें लिए
सविता मिश्रा
१.चाहत है हमारी लेखनी
गीत बन बहू
तुम्हारें लिए
२.नहाना धोना भूल गयी
इतंजार बस तेरा
तुम्हारें लिए
३.उकता गयी जिन्दंगी से
जीतीं फिर भी
तुम्हारें लिए
४.रात दिन जागें हम
भर नैन नीर
तुम्हारें लिए
५.करना चाहा था बहुत
कर ना पाए
तुम्हारें लिए
६.गद्दारों को मार गिराएँ
ये मेरे वतन
तुम्हारें लिए
7.नारियों को दोषी ठहरातें
चुप है हम
तुम्हारें लिए
8.जीने को है तैयार
दर्द में सही
तुम्हारें लिए
9.बोलने को कहतें है
बोलें नहीं बस
तुम्हारें लिए
10.गहन सोच में थे
कुछ कर गुजरेगें
तुम्हारें लिए
सविता मिश्रा
नवंबर 21, 2012
~ हम रहे न हम ~
चित भी उसकी पट भी उसकी
हमारा क्या था कुछ भी तो नहीं
वह जिधर कहता उधर चल पड़ते
जिधर कहता उधर ही बैठते
कठपुतली से बन गये थे
उसका हर इशारा ही शिरोधार्य था
अपना क्या था कुछ भी तो नहीं !
अस्तित्व भी अपना ना था
तन-मन सब तो उसका ही हो गया था
उसके बगैर खुद को बेजान पाते थे
उसकी आवाज भी सुन ले
तो जान में जान आती थी
वह भी जानता था हमारी कमजोरी
पर अहसान उसका कि
उसने फायदा ना उठाया
अपने अस्तित्व में भी उसने
हमारा ही होना बताया | ...सविता मिश्रा
हमारा क्या था कुछ भी तो नहीं
वह जिधर कहता उधर चल पड़ते
जिधर कहता उधर ही बैठते
कठपुतली से बन गये थे
उसका हर इशारा ही शिरोधार्य था
अपना क्या था कुछ भी तो नहीं !
अस्तित्व भी अपना ना था
तन-मन सब तो उसका ही हो गया था
उसके बगैर खुद को बेजान पाते थे
उसकी आवाज भी सुन ले
तो जान में जान आती थी
वह भी जानता था हमारी कमजोरी
पर अहसान उसका कि
उसने फायदा ना उठाया
अपने अस्तित्व में भी उसने
हमारा ही होना बताया | ...सविता मिश्रा
= कुछ अच्छा हुआ तो सही =
बाहरी राक्षस का अंत| ना जाने क्यों यह सोच सुखद अनुभूति हुयी कि उसके हाथों मरने वाले लोगों की आत्मा को शांति पहुंची| पर फिर भी दिल की गहराइयों में एक हलचल मची है ,कि आखिर हम खुश है या बस एक खुश होने का महज दिखावा है मात्र, क्योकि अभी तो बहुत सारेअपने ही देश के अन्दर बैठे है |अपनी ही जननी (भारत माता) को नोंच खसोंट रहे हैं |उनका अंत हो तो शायद ख़ुशी की पराकाष्ठा हो| परन्तु ऐसा तो होने से रहा अतः एक मच्छर के मरने से ही खुश होले, खटमलों को खून चूसने दे उनका भी अंत होगा ही कभी ना कभी इस आशा में ....सविता मिश्रा

नवंबर 20, 2012
~ निःसंतान भारत अपना ~
अरबों की जनसंख्या है फिर भी
भारत है निःसंतान हमारा
क्या संतानें ऐसी होती हैं
अपने ही माता को नोंच-खसोट लेती हैं |
हैं दुर्भाग्य बहुत बड़ा
अरबों पुत्रों वाला असहाय खड़ा
सब भारत के बच्चें खुद को कहते हैं
पर मौका मिलते ही लूट-खसोट लेते हैं
वोट पाकर पदवीं पर जो बैठ जाते हैं
अपनी माता को ही वो
विदेशों में गिरबी रख आते हैं
खुद करोड़पति बन जातें हैं कुर्सी पाते ही
अपने भारत को कंगाल बता
विदेशों से भीख तक मांग ले आते हैं |
हैं कितना दुर्दिन बड़ा भारत का अभी
सोने की चिड़ियाँ कहलाता था ये कभी
पर अपनें ही पुत्रों ने क्या हाल कर डाला
कटोरा हाथ में दें भीख तक मँगवा डाला |
ऐसे अरबों-खरबों औलादों से क्या फायदा
जो अपनी ही माता का सर नीचा करे ज्यादा से ज्यादा |
अरबों की जनसंख्या है फिर भी
उम्मीद नहीं हैं भारतमाता को किसी से भी ज्यादा | सविता मिश्रा
नवंबर 19, 2012
~जमीर को खत्म कर हम जी सकेंगे ~

बात दिल पर लगी थी
बिन घाव के ही
व्यंग वाणों से
घायल हुए थे !
सत्य है देर तक सोते थे
पर अब नींद
गायब सी होने लग गयी है
चिंतामग्न रहते
अपनों के साथ-साथ
जो जुड़े थे दिल से वह भी
आखिर क्या हुआ
जो दूरी बना लिए.....!
होती है तकलीफ
जब बिना बात के ही
कोई ठहराता है गलत
आखिर इंसान है हम !
पूछा अपने आप से बहुत देर तक
कि आखिर क्या गलती की हमने
महसूस किया अन्दर से एक आवाज
कि नहीं !
तुम नहीं गलत हो
जमाना ही ख़राब है
भलाई का जमाना कहाँ रहा
और तुम भलाई करने चली हो !
सोचो खूब सोचो पर
दूसरे नहीं !
अपने विषय में
और करो भी सिर्फ
खुद के लिए ही
गैरों के लिए कितना भी करो पर
एक गलतफहमी
सारे किये करायें पर
पानी फेर देंगी
तब सिर्फ अपयश मिलेगा...
सच भी बोलो पर
जरा संभल के !
क्योकि सच कड़वा ही नहीं
बल्कि खतरनाक होता है
सच बोलने पर तुम्हारा
कौन होगा सोचो जरा
झूठ बोलना भी सीखो
जरा मक्खन भी लगाना आना चाहिए
चमचागिरी तो आनी ही आनी चाहिए
वर्ना जिन्दगी का सफ़र मुश्किल ही है
यह गुण आ गए तो देखना
आगे-पीछे भीड़ ही भीड़ होगी
लोग तुम्हे हँसाने की जुगत लगायेंगे
अकेले बैठ यू नहीं तलासोगी खुद को
बस थोड़ा हुनर सीख लो
भीड़ में शामिल होने का
उनके साथ घुल-मिल रहने का
जाहिर है इसके लिए
अपनी सच्चाई आत्मसम्मान को छोड़ना होगा
चापलूसी, मक्कारी, चमचागिरी,
बातो को लागलपेट कर बोलना सीखना होगा
क्या उम्र के इस पड़ाव पर अब सीख सकोगी
यदि हाँ तब तो स्वागत है
और यदि नहीं तो फिर
यूँ ही अकेले रहने की आदत डालो
और खुश रहो अपने आप में ही !
सुन अन्दर की आवाज चिंतित है
करें तो आखिर क्यां करें
शान से खुद मरे या
अपना जमीर ही मार डाले
पर क्या जमीर को खत्म कर हम जी सकेंगे ????????सविता मिश्रा
नवंबर 14, 2012
न बनेगें पांचाली न ही सीता~
सहा बहुत है अब न सहेंगे ,
आँसू बनकर अब न बहेंगे |
किवाड़ की ओट ले अब न सुबकेंगे ,
दीवारों की ओट में अब न दुबकेंगे |
आँसू बनकर अब न बहेंगे |
किवाड़ की ओट ले अब न सुबकेंगे ,
दीवारों की ओट में अब न दुबकेंगे |
न बनेंगे पांचाली न ही सीता ,
ढालेंगे स्वंय में अब हम गीता |
कष्टों की धारा अपनी ओर न बहने देंगे ,
नारी अबला है पुरुषों को यह नकहने देंगे|
ढालेंगे स्वंय में अब हम गीता |
कष्टों की धारा अपनी ओर न बहने देंगे ,
नारी अबला है पुरुषों को यह नकहने देंगे|
शासित रहे हमेशा लेकिन अब न होंगे,
ईट का जवाब अब हम पत्थर से देंगे|
भूल किया है बहुत मग़र अब न करेंगे,
झुक कर देखा बहुत किन्तु अब न झुकेंगे |
ईट का जवाब अब हम पत्थर से देंगे|
भूल किया है बहुत मग़र अब न करेंगे,
झुक कर देखा बहुत किन्तु अब न झुकेंगे |
हमारी कमजोरी का कोई न उठाये फायदा ,
हमारी कमजोरी को ताकत बना दे ओ मेरे खुदा |
हमारी कमजोरी को ताकत बना दे ओ मेरे खुदा |
शादी तो आबाद करती है जीवन
शादी बर्बादी होती है
मूरख हैं जो यह कहते है
शादी से तो घर घर होता है
वर्ना चिड़िया घर सा होता है
मूरख हैं जो यह कहते है
शादी से तो घर घर होता है
वर्ना चिड़िया घर सा होता है
बच्चों को माँ जैसे संभालती हैं
पत्निया पतियों को संभालती हैं
माँ प्यार से घर को
एक मंदिर बनाती है
पत्निया उस मंदिर को
अपनी जतन से आगे बढाती हैं
पत्निया पतियों को संभालती हैं
माँ प्यार से घर को
एक मंदिर बनाती है
पत्निया उस मंदिर को
अपनी जतन से आगे बढाती हैं
माँ बेटे का ब्याह रचा
बहुएँ घर लाती हैं
बहुएँ फिर माँ बनती हैं
यही क्रम चलता जाता है
घर प्यार से स्वर्ग सा रहता है
बहुएँ घर लाती हैं
बहुएँ फिर माँ बनती हैं
यही क्रम चलता जाता है
घर प्यार से स्वर्ग सा रहता है
वर्ना शादी बिन तो
उजड़ा सा होता है जीवन
चारदिवारी में लगता नहीं है मन
उजड़ा सा होता है जीवन
चारदिवारी में लगता नहीं है मन
ना जाने क्यों
मर्द शादी बर्बादी होती है कहते हैं
शादी तो
आबाद करती है उनका जीवन |
================================
मर्द शादी बर्बादी होती है कहते हैं
शादी तो
आबाद करती है उनका जीवन |
================================
मेरा नाता
जिधर देखती हूँ
गम की परछाइयाँ है
मुहब्बत की डगर में
बस नफरत की खाइयाँ है !!
दुःख को ही बना लिया है
हमने अपना
खुशी तो लगती है
अब भयानक कोई सपना
दुःख से ही है अब
मेरा नाता
खुशी के बदले
गम ही है हमें भाता
दुखी मिलता है
जब कोई अदना
रिश्ता है कोई
लगता है अपना
गम को कहो
कैसे छोड़ दूँ !
किस्मत को भला
कैसे मोड़ दूँ!
किस्मत व गम
जब दोनों ही है पर्याय
तो फिर क्यों करुँ
मैं हाय -हाय
सुख ने तो कुछ पल ही
पकड़ा था हाथ
गम ही ने तो निभाया है
सदा मेरा साथ |
+++सविता मिश्रा 'अक्षजा' +++
गम की परछाइयाँ है
मुहब्बत की डगर में
बस नफरत की खाइयाँ है !!
दुःख को ही बना लिया है
हमने अपना
खुशी तो लगती है
अब भयानक कोई सपना
दुःख से ही है अब
मेरा नाता
खुशी के बदले
गम ही है हमें भाता
दुखी मिलता है
जब कोई अदना
रिश्ता है कोई
लगता है अपना
गम को कहो
कैसे छोड़ दूँ !
किस्मत को भला
कैसे मोड़ दूँ!
किस्मत व गम
जब दोनों ही है पर्याय
तो फिर क्यों करुँ
मैं हाय -हाय
सुख ने तो कुछ पल ही
पकड़ा था हाथ
गम ही ने तो निभाया है
सदा मेरा साथ |
+++सविता मिश्रा 'अक्षजा' +++
~~हुनर की कीमत~~
झुग्गी झोपड़ियो की जगह
काश हम झुग्गीवासियों के लिए
एक कमरे का ही सही
घर बना पातें |
काश सभी बेसहारों के जीवन में
हम सहारा बन पातें
हरदम मुस्करातें हुए चेहरे को
अपने कैमरे में उतार पातें |
पर अफ़सोस!!
वह तो कुछ पल की हंसी थी
जो हमें अपने सामने पा चेहरे पर जगी थी|
वरना अँधेरे में तो जीने की आदत है उन्हें
छोटी-छोटी खुशियों में ख़ुशी ढूढ़ ही लेते हैं|
हुनर बाज हैं !!
अपना हुनर बेचते हैं!
पर हुनर का
खरीदार कहाँ है यहाँ
सड़को पर हुनर बेचने वाला तो
दो जून की रोटी
को भी तरसता है
और हुनर शोरूमों में अनमोल हो बिकता है|
हुनर की कीमत यदि उनकी भी लगने लगे
तो हम उन्हें दया दृष्टि से नहीं बल्कि
वो हमें देखते नजर आयेंगे और एक कमरे का घर छोड़ों
महलों में हम उन्हें पायेंगे |
पर अफ़सोस उनकी कलाकृतियाँ
सड़को पर धूल चाटती हैं
या फिर कौड़ियों के दाम बिकती हैं
और वहीं, उन्ही की ही कलाकृतियाँ शोरूमों या माँल में अनमोल हो
हाथोंहाथ बिक जाती हैं |
अपने ही हुनर को अनमोल बिकते देख
खुद को ठगा हुआ सा पातें हैं
फिर भी हुनर बाज हैं जो
अपने हुनर और मेहनत का खाते हैं ||......सविता मिश्रा
काश हम झुग्गीवासियों के लिए
एक कमरे का ही सही
घर बना पातें |
काश सभी बेसहारों के जीवन में
हम सहारा बन पातें
हरदम मुस्करातें हुए चेहरे को
अपने कैमरे में उतार पातें |
पर अफ़सोस!!
वह तो कुछ पल की हंसी थी
जो हमें अपने सामने पा चेहरे पर जगी थी|
वरना अँधेरे में तो जीने की आदत है उन्हें
छोटी-छोटी खुशियों में ख़ुशी ढूढ़ ही लेते हैं|
हुनर बाज हैं !!
अपना हुनर बेचते हैं!
पर हुनर का
खरीदार कहाँ है यहाँ
सड़को पर हुनर बेचने वाला तो
दो जून की रोटी
को भी तरसता है
और हुनर शोरूमों में अनमोल हो बिकता है|
हुनर की कीमत यदि उनकी भी लगने लगे
तो हम उन्हें दया दृष्टि से नहीं बल्कि
वो हमें देखते नजर आयेंगे और एक कमरे का घर छोड़ों
महलों में हम उन्हें पायेंगे |
पर अफ़सोस उनकी कलाकृतियाँ
सड़को पर धूल चाटती हैं
या फिर कौड़ियों के दाम बिकती हैं
और वहीं, उन्ही की ही कलाकृतियाँ शोरूमों या माँल में अनमोल हो
हाथोंहाथ बिक जाती हैं |
अपने ही हुनर को अनमोल बिकते देख
खुद को ठगा हुआ सा पातें हैं
फिर भी हुनर बाज हैं जो
अपने हुनर और मेहनत का खाते हैं ||......सविता मिश्रा
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