कितनी बार बुलाया हमने प्रभु तुम ना आए
कितनों ने हम पर सितम ढाएं पर तुम ना आए |
हम चिखते-चिल्लाते रहें पर प्रभु तुम ना आए
कैसे द्रोपदी की एक पुकार पर तुम दौड़े आए थे |
इस युग में क्या तुम भी डर गए जो ना आए
हर युग में स्त्री का अस्तित्व हनन क्यों करवाए |
युग दर युग नारी पर अत्याचार क्यों बढ़ता जाता है
पहले था चिरहरण अब वहशी दरिंदा बन जाता है |
उस युग में बस चिरहरण कर लाज दुश्सासन ने लुटा
इस कलयुग में तो प्रभु देखो मानव गिद्ध ही बन बैठा |
प्रभु देखो हमको वह नोंच-खसोट रहा
हम बहुत चीखे-चिल्लाएं पर तू बैठा ही रहा |
हमारी यह दशा देख भी तुम क्यों ना अकुलाए
क्यों नहीं दुष्टों पर अपना सुदर्शन चक्र चलाए |
लाज लुटती रही हमारी, मानव बहशी हो गया
देखों ना प्रभु हमारी इज्जत को तार-तार कर गया |
अब तो जब तक सांस रहेगी मेरी तुझको ही कोसेंगे
बेटी क्यों बनाया हमको यही बात बस तुझसे पूछेंगे |
बनाया तो बनाया पर ऐसे कमजोर सी क्यों बनाया
आठ-दस को मार गिरायें ऐसी दुर्गा क्यों नहीं बनाया |
जब तुझे मालुम था तू भी डरकर रक्षार्थ नहीं आएगा
हमें शक्ति देता जिससे हम अपनी रक्षा आप कर पाते |
वह नारी बहुत किस्मत वाली है जिन पर दरिंदो की नजर नहीं पड़ती
कुछ ऐसी किस्मत सभी को देता तो बता प्रभु भला तेरा क्या जाता |
तू आ नहीं सकता था इस कलयुग में, डर गया था मालूम है हमें
बस तू हमें ही शक्ति दें दे यही प्रार्थना करतें हैं तुझसे तन-मन से |
हमारी शक्ति देख फिर तू हम क्या-क्या नहीं करते
गन्दी नजर से देखने वालों की आँख निकाल लेते |
गलत हरकत पर हाथ काटकर उसका मुहं काला करते
कोई नजर उठा ना देखता हमको फिर हम यूँ शान से चलते |
अदब से झुक जाती नजरें फिर तो नारी के सम्मान में
भय बिन प्रीति नहीं होती है प्रभु आजकल इस जहां में |...सविता मिश्रा
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"भय बिन प्रीती नहीं होती है प्रभु आजकल इस जहां में|"
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