ऐसा कुछ लिखने की चाहत जो किसी की जिंदगी बदल पाए ...मन के अनछुए उस कोने को छू पाए जो इक कवि अक्सर छूना चाहता है ...काश अपनी लेखनी को कवि-काव्य के उस भाव को लिखने की कला आ जाये ....फिलहाल आपको हमारे मन का गुबार खूब मिलेगा यहाँ ...जो समाज में यत्र तत्र बिखरा है ..| दिल में कुछ तो है, जो सिसकता है, कराहता है ....दिल को झकझोर जाता है और बस कलम चल पड़ती है |
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मई 23, 2017
भूली नहीं हूँ-(do line)
भूली नहीं हूँ कुछ भी मैं दिले नादान से याद नहीं करना चाहती तुम्हें बस दिमाग से। ||सविता मिश्रा 'अक्षजा'।।
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