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अप्रैल 28, 2014

खुद्दारी भूल जा-

नौकरी करने यदि चला है, तब तो खुद्दारी भूल जा
किसी तरह कनिष्ठों के लगड़ी फंसा खुद्दारी भूल जा |

काना फूसी कर-करके मैनेजर को तू पटा के रख
नमक मिर्च लगा खबर को पेशकर खुद्दारी भूल जा |

इंसानियत छोड़ हमेशा के लिए, रख दें ताक पर अब
बनना है यदि किसी का ख़ासम-ख़ास खुद्दारी भूल जा |

चमचमाती कार से उतरने से पहले ही खोल दरवाजा
तू चमचागिरी की कर सब हदें पार खुद्दारी भूल जा |

साहब के हर हाँ में हाँ मिलाकर खूब कर चमचागिरी
समझ के नासमझ बन बंद रख के मुँह खुद्दारी भूल जा |

आँख-कान लगाये रह हरदम अपने अधिनस्तों पर
बॉस के आते ही भर कान उसका खुद्दारी भूल जा |

हर वक्त जी हुजूरी में अपना सर झुकाए रह खड़ा
घर पर भी बॉस निगाहें उठाये तो खुद्दारी भूल जा |

हदों से भी हद तक गुजरता चला चल मन को मार
राह तरक्की की बढ़ना है गर तो खुद्दारी भूल जा |

जब घृणा से भरा दिल तेरा ही कभी धित्कारे तुझको
आँसुओ को पीकर तू हँसता चल खुद्दारी भूल जा |

गिरगिट की तरह रंग बदलना बना फितरत अपनी
अपनी ही धुन में मस्त चलता चल खुद्दारी भूल जा |

हँस रहा है गर कोई तुझ पर निकल जा कर उसे अनदेखा
लड़खड़ा गिरा गर उठ फिर चल संभल के खुद्दारी भूल जा |

खुद्धारी भी लगे सर उठाने जब खुद्दारी भूल जा
तू दिल पर रख पत्थर अपने और खुद्दारी भूल जा | 
==००==सविता मिश्रा 'अक्षजा'

मन में आता गया लिखते गये शायद फिर बड़ी हो गयी ज्यादा ही ...:D

अप्रैल 09, 2014

हाँ अहिल्या तो हूँ -


हाँ अहिल्या
ही तो हूँ
प्रस्तर सरीखी
पर हमें नहीं किसी
राम की तलाश
खुद ही हरिवाली पाने की
भरपूर कर रही हूँ चेष्टा !
या खोज रही हूँ
घर बाहर

अपनी निष्ठां लगन से एक सुन्दर बगिया
बसाने की जद्दोजहद करती
कोई मेहनत कस महिला |
वह आकर अपने
खून पसीने से
भर जाएगी नया जीवन
और मैं प्रस्तर से
हरीभरी कन्दरा हो जाऊंगी |
राम नहीं सीता
की हैं आज हमें
तलाश जो चुपचाप
बिना किसी शोर शाराबे के
कर जाती है
ना जाने
कितने नेक काम | सविता