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दिसंबर 11, 2017

देते हैं ...कुछ यूँ ही

भावों को हम शब्दों में पिरो देते हैं 
विचारों को वाक्यों में तिरो देते हैं
मेरे भावों को भाव देता है जब कोई
संबल मिलता जो लेखन में सिरो देते हैं |

सिरो...ध्यान, रचनात्मक |

"पांच लिंकों का आनन्द" ब्लॉग में सोमवार ११ दिसंबर २०१७ को कमेन्ट में लिखी |

हाँ! हाँ! क्या बात है 
शब्द शब्द लताड़ रहे न जाने किसको किसको 
सोच बैठे कहीं हमको कह के तो नहीं खिसको 
वाह वाह क्या बात है ! लगी कसके चमात है !! सविता ..

मन के हैं शब्द फूटे 
दिल आपका न टूटे 
छंद-बंद से दूर हैं हम 
भाव बस शब्दों में छूटे | किसी ब्लॉग पे लिखी

दिसंबर 07, 2017

कोई बात हो तभी लिखे

कोई बात हो तभी लिखे यह जरुरी तो नहीं
चोट खाए दिल तभी लिखे यह जरुरी तो नहीं
मन का गुबार निकल जाये यह बात जरुरी है
दिल में रखकर दिल जलाये यह जरुरी तो नहीं |..सविता
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कोई ख़ास नामचीन तो पहले भी ना थे पर अब तो हम गुमनाम होना चाहते हैं ! ........सविता मिश्रा
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जैसे ही साँसों  की डोर टूटेगी, अपनी किमत बढ़ जायेगी ! saविता miश्रा
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बेवकूफ पति अपनी पत्नी को घर की मुर्गी साग बराबर समझते हैं और दुखी रहते हैं  और उसे भी दुःख देते हैं  ...!
और समझदार पति अपनी पत्नी को हूर की परी समझते हैं, खुद भी खुश रहते हैं और उसे भी खुशियाँ ढेर सारी देते हैं |

सविता मिश्रा