ऐसा कुछ लिखने की चाहत जो किसी की जिंदगी बदल पाए ...मन के अनछुए उस कोने को छू पाए जो इक कवि अक्सर छूना चाहता है ...काश अपनी लेखनी को कवि-काव्य के उस भाव को लिखने की कला आ जाये ....फिलहाल आपको हमारे मन का गुबार खूब मिलेगा यहाँ ...जो समाज में यत्र तत्र बिखरा है ..| दिल में कुछ तो है, जो सिसकता है, कराहता है ....दिल को झकझोर जाता है और बस कलम चल पड़ती है |
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अगस्त 27, 2014
अगस्त 23, 2014
दिल की सच्चाई
हे प्रभु, सुन !
कर दें अँधेरा
चारों तरफ.. .
उजाले काटते हैं / छलते है !
लगता है अब डर
उजालें से
दिखती हैं जब
अपनी ही परछाई -
छोटी से बड़ी
बड़ी से विशालकाय होती हुई.
भयभीत हो जाती हूँ !
मेरी ही परछाई मुझे डंस न ले,
ख़त्म कर दे मेरा अस्तित्व !
जब होगा अँधेरा चारों ओर
नहीं दिखेगा
आदमी को आदमी !
यहाँ तक कि हाथ को हाथ भी.
फिर तो मन की आँखें
स्वतः खुल जाएँगी !
देख सकेंगे फिर सभी...
/ और मैं भी /
दिल की सच्चाई !
सविता मिश्रा
कर दें अँधेरा
चारों तरफ.. .
उजाले काटते हैं / छलते है !
लगता है अब डर
उजालें से
दिखती हैं जब
अपनी ही परछाई -
छोटी से बड़ी
बड़ी से विशालकाय होती हुई.
भयभीत हो जाती हूँ !
मेरी ही परछाई मुझे डंस न ले,
ख़त्म कर दे मेरा अस्तित्व !
जब होगा अँधेरा चारों ओर
नहीं दिखेगा
आदमी को आदमी !
यहाँ तक कि हाथ को हाथ भी.
फिर तो मन की आँखें
स्वतः खुल जाएँगी !
देख सकेंगे फिर सभी...
/ और मैं भी /
दिल की सच्चाई !
सविता मिश्रा
अगस्त 15, 2014
बलिदान / शहादत / त्याग
माना होते हैं फौजी शहीद
जब विदेशियों से युद्ध होता हैं
हम अपनों से ही लड़ शहीद हुए
क्यों नहीं कोई कभी भी रोता हैं
बाल बच्चें सब दूर रहते हमसे
याद करके दिल बेबस सा होता हैं
दूजों की करते रक्षा रात दिन हम
अपनों की फिक्र में दिल तड़पता है
जर्जर मकानों में रह परिवार अपना
अब गिरे तब गिरे चिंता मन ढोता हैं
बात भी कभी-कभी कर नहीं पातें बीबी बच्चों से
याद में दिल अपना कभी-कभी खूब रोता हैं
ऐसे पढ़ते ऐसे खेलते होंगे बच्चें
ख्यालों में बस सोचा करते हैं
नहीं देता कोई भी अपनापन हमें
हेय दृष्टि से देखा जाता हैं हर पल
अपने बच्चें भी नहीं किसी से संभाले जाते
गुनाह हम पर ही फट से थोप जाते हैं
हमारी त्याग तपस्या नहीं समझते कोई
कीचड़ उछालने लगते हैं देखो हर कोई
फौजी भी करते बारी-बारी रक्षा देश की
यहाँ एक पर ही सारा का सारा बोझा होता हैं
कितने हाथ पैर हो हर दूजा अपराधी हैं यहाँ
हर कोई समझ के भी नासमझ हो जाता हैं
मदद करने को कोई जल्दी बढ़ता नहीं कभी
अपराधी पकड़ा जाय जल्दी बस चाहता यही
पुलिस के पास तो हैं जैसे कोई जादुई छड़ी
घुमाये झट और हाजिर मुजरिम कर दे यही
अपराध होते भी देख अनदेखी कर देते सभी
पुलिस पर ही बस दोशारोपड़ करते जाते हैं
खुद चाहे सर से नख तक हो भ्रष्टाचार में डूबा
पुलिस पर तानाकसी ना करे तो यह आठवाँ अजूबा| ...सविता मिश्रा
जब विदेशियों से युद्ध होता हैं
हम अपनों से ही लड़ शहीद हुए
क्यों नहीं कोई कभी भी रोता हैं
बाल बच्चें सब दूर रहते हमसे
याद करके दिल बेबस सा होता हैं
दूजों की करते रक्षा रात दिन हम
अपनों की फिक्र में दिल तड़पता है
जर्जर मकानों में रह परिवार अपना
अब गिरे तब गिरे चिंता मन ढोता हैं
बात भी कभी-कभी कर नहीं पातें बीबी बच्चों से
याद में दिल अपना कभी-कभी खूब रोता हैं
ऐसे पढ़ते ऐसे खेलते होंगे बच्चें
ख्यालों में बस सोचा करते हैं
नहीं देता कोई भी अपनापन हमें
हेय दृष्टि से देखा जाता हैं हर पल
अपने बच्चें भी नहीं किसी से संभाले जाते
गुनाह हम पर ही फट से थोप जाते हैं
हमारी त्याग तपस्या नहीं समझते कोई
कीचड़ उछालने लगते हैं देखो हर कोई
फौजी भी करते बारी-बारी रक्षा देश की
यहाँ एक पर ही सारा का सारा बोझा होता हैं
कितने हाथ पैर हो हर दूजा अपराधी हैं यहाँ
हर कोई समझ के भी नासमझ हो जाता हैं
मदद करने को कोई जल्दी बढ़ता नहीं कभी
अपराधी पकड़ा जाय जल्दी बस चाहता यही
पुलिस के पास तो हैं जैसे कोई जादुई छड़ी
घुमाये झट और हाजिर मुजरिम कर दे यही
अपराध होते भी देख अनदेखी कर देते सभी
पुलिस पर ही बस दोशारोपड़ करते जाते हैं
खुद चाहे सर से नख तक हो भ्रष्टाचार में डूबा
पुलिस पर तानाकसी ना करे तो यह आठवाँ अजूबा| ...सविता मिश्रा
अगस्त 12, 2014
~रहा है कौन~
गम को मुस्करा कर कौन छुपा रहा
रो के अपनी कमजोरी कौन बता रहा
सुख के समुन्दर में ना कोई गोते लगा रहा
उथले पानी में ना कोई उतरा ही रहा
प्यार के समुंदर में ना कोई नहा रहा
नफ़रत का ही दिया ना कोई जला रहा
वादें जो निभा ना सकें वह कौन कर रहा
हर वादा भी अब कौन यहाँ निभा रहा
मुस्कराहट पर किसी के कौन अपनी जान लुटा रहा
अपनी थाली का भोजन कौन किसको बाँट रहा
दुसरे के मुहं से निवाले ही तो छीन रहा
कौन किसके लिए यहाँ अब मर मिट रहा
किसी के गम में अब कौन आंसू बहा रहा
दुसरे की ख़ुशी में इंसान है रो रहा
जानवर सा हर इंसान यहाँ बन रहा
जानवर भी देख शर्मसार है यहाँ
इंसान वह हर कर्म है कर रहा |...सविता मिश्रा
दूसरा रूप यह हैं .......
२ .... गम को मुस्करा कर कौन छुपा रहा,
रो के अपनी कमजोरी कौन बता रहा|
सुख के समुन्दर में ना कोई गोते लगा रहा,
उथले पानी में ना कोई उतरा ही रहा|
प्यार के दरिया में ना कोई नहा रहा,
ना कोई नफ़रत का ही दिया जला रहा|
वादें जो निभा ना सकें वह कौन कर रहा,
हर वादा भी अब यहाँ कौन निभा रहा|
मुस्कराहट पर किसी के कौन अपनी जान लुटा रहा,
दूसरे की आँखों में आंसू ही तो बाँट रहा|
दुसरे के मुहं से तो छीन रहा हैं निवाले,
अपनी थाली का भोजन कोई क्यों किसी से बाँट ले|
कौन किसके लिए यहाँ अब मर मिट रहा,
बल्कि मार-काट पर ही तो आमदा हो रहा|
किसी के गम में अब कौन आंसू बहा रहा,
दुजे की ख़ुशी देख इंसान है बस रो रहा|
जानवर सा हर इंसा अब तो यहाँ बन रहा,
जानवर भी देख यह सब शर्मसार हो रहा|
इंसान अब हर वह गलत कर्म है कर रहा,
जिससे उसमे इंसानियत का तो ह्रास हो रहा|...सविता मिश्रा
फिर तीसरी बार रोशन भैया द्वारा मार्गदर्शन करने के पश्चात्
३.....
गम को हंस कर छुपा रहा है कौन
रो के कमजोरियां बता रहा है कौन|
उथले पानी में ना कोई उतरा है,
सुख के दरिया में नहा रहा है कौन|
अब यकीं आता नहीं वादों पर,
वादा भी अब निभा रहा है कौन|
आंसू ही बांटता है आँखों में,
मुस्कराहट पर जान लुटा रहा है कौन|
दुसरे के मुख से छीन रहा हैं निवाले,
अपनी थाली का भोजन बाँट रहा हैं कौन|
हर कोई मार-काट पर आमदा हुआ,
किसी के लिए मर मिट रहा हैं अब कौन|
दूजे की ख़ुशी देख इंसा है बस रो रहा,
किसी के गम में अब आंसू बहा रहा हैं कौन|
जानवर सा हर इंसा बन रहा हैं अब यहाँ,
इंसा बनने की जहमत अब उठा रहा कौन|
हर किसी में इंसानियत का ह्रास हो रहा,
इंसा जैसा बन्दा मिल रहा हैं अब कौन| सविता मिश्रा
हमारी भावनायें (सविता मिश्रा)
अगस्त 10, 2014
राखी भेजा है
रक्षा सूत्र में पिरोकर अपना प्यार भेजा है
भैया तुझे मैंने स्व रक्षार्थ का भार भेजा है|
माना मन में तेरे राखी का सम्मान नहीं
बड़े मान से हमने अपना दुलार भेजा है|
रिश्ता भाई बहन का हैं एक अटूट बंधन
होता जार जार जो सब जोरजार भेजा है|
ढुलक गया मोती जो मेरी नम आँखों से
पिरोकर मोती हमने उपहार भेजा है|
गिले शिकवे भूल सारे फिर एक बार
सहेज कर यादें लिफ़ाफ़े में मधुर भेजा है|
राखी दो पैसे की हो या हजारों की भैया
चंद धागों में लिपटा प्यार बेशुमार भेजा है|
मतलब के हो गये सारे ही रिश्तें नाते
हो मधुर रिश्तें सन्देश दें मधुकर भेजा है|
माना होता प्रगाढ़ बहुत खून का रिश्ता
स्नेह अपार निहित राखी का तार भेजा है|
क्रांति चेहरे की भैया हो ना फीकी कभी
हरने सारे गम माँ का प्यार विधर भेजा है|
.सविता मिश्रा
भैया तुझे मैंने स्व रक्षार्थ का भार भेजा है|
माना मन में तेरे राखी का सम्मान नहीं
बड़े मान से हमने अपना दुलार भेजा है|
रिश्ता भाई बहन का हैं एक अटूट बंधन
होता जार जार जो सब जोरजार भेजा है|
ढुलक गया मोती जो मेरी नम आँखों से
पिरोकर मोती हमने उपहार भेजा है|
गिले शिकवे भूल सारे फिर एक बार
सहेज कर यादें लिफ़ाफ़े में मधुर भेजा है|
राखी दो पैसे की हो या हजारों की भैया
चंद धागों में लिपटा प्यार बेशुमार भेजा है|
मतलब के हो गये सारे ही रिश्तें नाते
हो मधुर रिश्तें सन्देश दें मधुकर भेजा है|
माना होता प्रगाढ़ बहुत खून का रिश्ता
स्नेह अपार निहित राखी का तार भेजा है|
क्रांति चेहरे की भैया हो ना फीकी कभी
हरने सारे गम माँ का प्यार विधर भेजा है|
.सविता मिश्रा
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