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जून 24, 2017

बोल ~

तुम्हारें
श्री मुख से
दो शब्द
निकले नहीं कि
मैंने कैद कर लिया
अपने हृदय उपवन में !!

अब हर रोज
दिल से निकाल
दिमाग तक लाऊँगी
फिर कंठ तक
फिर मुस्कराऊँगी
मेरे चेहरे पर
एक अलग सी
चमक बिखर जाएँगी
इसी क्रिया को
दुहराती रहूंगी

क्योंकि
अच्छी यादों को
 
बार-बार खाद-पानी
चाहिए ही होता है!
और तब जाके
एक दिन
तैर जायेंगी
सरसराहट सी
पूरे तनबदन में

फिर
बेकाबू हो
उड़ चलेगा
पूरा शरीर ही
हल्का-फुल्का हो
आकाश के उस पार!

फिर तुम्हारें ही
महज दो बोल
भारी कर जाएंगे
मन को

और तत्क्षण
ला पटकेंगे मुझे
धरती पर !

क्यों !
होता है न
ऐसा
 कभी कभी !

सविता मिश्रा 'अक्षजा'

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जून 02, 2017

हारा मन-

तमस था घिरा
मन में
तन भी था
कमजोर थका
कैसे लड़े बुराई से
वह था ताकतवर बड़ा

उठा पटक चलती रही
तन मन के बीच
मन हारा जब
तन तो था
पहले से ही हार गया

कमजोरी का अहसास
मन को भी मार गया |

||सविता मिश्रा 'अक्षजा'||

दरार- muktak

दोगलेपन की भरमार बहुत
दुश्मनों की खरपतवार बहुत
बहुत से लोग शर्तो पर ही जीते
दरो -दीवार में हैं दरार बहुत |
@सविता मिश्रा 'अक्षजा'यूँ ही