सीधा सा सवाल फेसबुक पर पूछा था हमने! औरतें मेकअप क्यों करतीं हैं ?? कइयों ने बड़े रोचक जबाब दिए| कईयों की कुंठा दिखी जबाब में|
हर किसी के द्वारा सवाल पूछने का कारण अलग अलग होता है। और जबाब भी आदमी अपने मनःस्थिति के अनुसार देता है| सवाल-जबाब करते वक्त आदमी के मन में क्या चल रहा हैं यह कोई न जान सकता! ख़ासकर सवाल के सन्दर्भ में | हाँ उत्तर कई मजे में देतें, कई गंभीर होकर| कईयों को ऐसे वैसे सवाल पर गुस्सा आता तो वो धो भी देते| उत्तर पढ़ते ही समझ आ जाता क्या कहना चाह रहा कहने वाला| किन्तु प्रश्न का प्रयोजन प्रायः नहीं समझ आता|
जैसे हमने देखा इसी सवाल के साथ किसी दुसरे की पोस्ट को | वहां अलग तरह के आंसर थे|
फ़िलहाल हम सोचे थे अपनी फेसबुक फ्रेंड लिस्ट वालो का मंतव्य जाने इस सवाल से। 😊इसी लिए लिखे भी कि ओन रिश्क पर जबाब दें | पर शायद कई ओन रिश्क लिखने का मतलब न समझे, या फिर उसे ध्यान से न पढ़े! लापरवाही अक्सर घातक होती है! यही हुआ यहाँ भी |
कइयो ने जबाब दिया कि पुरुषों को लुभाने के लिए करती हैं | बड़ी अजीब बात लगी, क्रोध भी खूब आया | जबाब पढ़ के लगा आदमी ने अपनी सोच न बदली, जमाना भले इतना बदल गया | वह खुद घंटो मेकअप करने लगा| पार्लर में जाकर संवरने भी लगा| लाली लिपस्टिक भी पाए तो लगाने से चुके न | पर औरतें सजे तो वह लुभाने के लिए या सिर्फ पति के लिए सजे | वरना पागल जैसी टहले !!
भई वाह ! कंघी करके सलीके से कपड़े भी पहन ले तो सजना समझ बैठते लोग| फिर वह व्यूटी पार्लर में भारीभरकम मेकअप को क्या कहेंगे ?
हमें तो लगता है आदमी जलता है कि औरतों के लिए इतने सारी प्रसाधन सामग्री आखिर क्यों बनी? इतने सारी वैराइटी कपड़ों की क्यों है| उसके लिए नाममात्र की ही क्यों?
हर किसी के द्वारा सवाल पूछने का कारण अलग अलग होता है। और जबाब भी आदमी अपने मनःस्थिति के अनुसार देता है| सवाल-जबाब करते वक्त आदमी के मन में क्या चल रहा हैं यह कोई न जान सकता! ख़ासकर सवाल के सन्दर्भ में | हाँ उत्तर कई मजे में देतें, कई गंभीर होकर| कईयों को ऐसे वैसे सवाल पर गुस्सा आता तो वो धो भी देते| उत्तर पढ़ते ही समझ आ जाता क्या कहना चाह रहा कहने वाला| किन्तु प्रश्न का प्रयोजन प्रायः नहीं समझ आता|
जैसे हमने देखा इसी सवाल के साथ किसी दुसरे की पोस्ट को | वहां अलग तरह के आंसर थे|
फ़िलहाल हम सोचे थे अपनी फेसबुक फ्रेंड लिस्ट वालो का मंतव्य जाने इस सवाल से। 😊इसी लिए लिखे भी कि ओन रिश्क पर जबाब दें | पर शायद कई ओन रिश्क लिखने का मतलब न समझे, या फिर उसे ध्यान से न पढ़े! लापरवाही अक्सर घातक होती है! यही हुआ यहाँ भी |
कइयो ने जबाब दिया कि पुरुषों को लुभाने के लिए करती हैं | बड़ी अजीब बात लगी, क्रोध भी खूब आया | जबाब पढ़ के लगा आदमी ने अपनी सोच न बदली, जमाना भले इतना बदल गया | वह खुद घंटो मेकअप करने लगा| पार्लर में जाकर संवरने भी लगा| लाली लिपस्टिक भी पाए तो लगाने से चुके न | पर औरतें सजे तो वह लुभाने के लिए या सिर्फ पति के लिए सजे | वरना पागल जैसी टहले !!
भई वाह ! कंघी करके सलीके से कपड़े भी पहन ले तो सजना समझ बैठते लोग| फिर वह व्यूटी पार्लर में भारीभरकम मेकअप को क्या कहेंगे ?
हमें तो लगता है आदमी जलता है कि औरतों के लिए इतने सारी प्रसाधन सामग्री आखिर क्यों बनी? इतने सारी वैराइटी कपड़ों की क्यों है| उसके लिए नाममात्र की ही क्यों?
...सोचे थे ऐसे माथा ठनकाने वाले जबाब वालों को उड़ा देंगे| फिर सोचे सब का अपना अपना दिमाग, अपनी अपनी सोच |
सच, और मन की बात बोलने के लिए क्यों हटाये किसी को| हो सकता है जो ऐसा न बोले हों, पर सोच ऐसी ही हो उनकी भी तब !! कपड़े और मेकअप पर आदमी की सोच अक्सर औरतों की सोच से टकरा जाती ही है|
औरतें सज ले, मुस्करा दें, छज्जे पर खड़ी हो जाये तो आदमी को खल जाता क्यों भई ? क्या वह जीव न, क्या उन्हें बंद घर में घुटन न होती? क्या उन्हें आपकी तरह स्वछन्द न सही पर स्वतन्त्र रहने की आजादी न !
भगवान के लिए ऐसी मानसिकता से बाहर निकले| यदि आप लुभाने क लिए सजते हैं तो आप हम औरतों के लिए भी सोच सकते हैं , क्योकि सब कुछ बदला जा सकता पर सोच अचानक से किसी की न बदली जा सकती|
वो जमाना गया जब दो साड़ी में दादी, ताई, चाची की जिन्दगी बीत जाती थी| अब जमाना अलग है अब औरतें घर के बाहर निकल रहीं और पागल की तरह बाहर नहीं निकल सकतीं | उनसे उनकी सुन्दरता के आयाम छिनने से अच्छा है आप अपनी कुंठित सोच अपने मन व दिलो-दिमाग से छीन लीजिए| सविता
सच, और मन की बात बोलने के लिए क्यों हटाये किसी को| हो सकता है जो ऐसा न बोले हों, पर सोच ऐसी ही हो उनकी भी तब !! कपड़े और मेकअप पर आदमी की सोच अक्सर औरतों की सोच से टकरा जाती ही है|
औरतें सज ले, मुस्करा दें, छज्जे पर खड़ी हो जाये तो आदमी को खल जाता क्यों भई ? क्या वह जीव न, क्या उन्हें बंद घर में घुटन न होती? क्या उन्हें आपकी तरह स्वछन्द न सही पर स्वतन्त्र रहने की आजादी न !
भगवान के लिए ऐसी मानसिकता से बाहर निकले| यदि आप लुभाने क लिए सजते हैं तो आप हम औरतों के लिए भी सोच सकते हैं , क्योकि सब कुछ बदला जा सकता पर सोच अचानक से किसी की न बदली जा सकती|
वो जमाना गया जब दो साड़ी में दादी, ताई, चाची की जिन्दगी बीत जाती थी| अब जमाना अलग है अब औरतें घर के बाहर निकल रहीं और पागल की तरह बाहर नहीं निकल सकतीं | उनसे उनकी सुन्दरता के आयाम छिनने से अच्छा है आप अपनी कुंठित सोच अपने मन व दिलो-दिमाग से छीन लीजिए| सविता
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