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जनवरी 20, 2014

++कुछ यूँ ही ++

बचाव
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ओठों को सिल लिया है अब हमने
कि कहीं जख्मों का राज खोल ना दूँ
 कर लिया है  सुनी आँखों को अब हमने
कि कहीं गम के समुन्दर का ना दीदार हो
कानो पर डाल दिए है परदे अब  हमने
कि कही किसी के व्यंग से ना आहत और हो |
++सविता मिश्रा ++

जख्म
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जख्म कौन सा कितना गहरा था
कैसे हिसाब बैठाये
जिस भी जख्म को याद किया
उसी को सबसे गहरा पाया |
++सविता मिश्रा
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नाम की इज्जत
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भस्मीभूत हो जायेगा एक दिन
यह निरीह शरीर मेरा
नहीं चाहती करें कोई बखान
पर इज्जत से नाम ले मेरा |
++सविता मिश्रा++

2 टिप्‍पणियां:

Satish Saxena ने कहा…

पास रक्खोगे तो जिल्लत पाओगे,
यार, इस ईमान का सौदा करो !

-अज्ञात शायर !

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

सतीश भैया धन्यवाद आपका