महगें से महंगा बस्ता और
किताब-कापी हजारो में खरीदवाई !!
फिर स्कूल ड्रेस, जूतें, टाई
इस मंहगाई में तुम्हारें लिए बनवाई |
रिक्शा में तकलीफ होगी तुमको
हजारों में बस भी लगवाई !
स्कूल फ़ीस भरने में तो
नानी ही याद हमको आई |
ट्यूशन की तो पूछो नहीं
हर एक विषय लगवाते है
फिर भी तुम्हारें नंबर
इम्तहान में कम क्यों आते है?
ऊपर से रोज तुम्हें !
कुछ ना कुछ
रुपयें भी चाहिए होते है !!
परफ्यूम की बोतल भी
दस दिन में ख़त्म करते हो !
फिर भी पढ़कर जब
स्कूल से घर को आते हो
सब कुछ फेंक इधर-उधर
कुछ कहनें पर अहसान सा जताते हो |
पढ़कर जैसे हम पर ही
अहसान कर रहे हो
यह नहीं जानते मेहनत न करके
अपनी ही पैरो पर कुल्हाड़ी मार रहे हो |
मेहनत से पढ़ जब
कुछ बन जाओगें
तभी अच्छी सी
दुल्हन भी पोओगें |
हो सकता है तब यह माँ-बाप याद ना आयें तुमको
काट-काट पेट, पढाया है जिसने इतना तुमको |
'वाद- विवाद' कर, बिना हिचके यह कह जाओगें
पढ़ाकर, अहसान नहीं किया फर्ज था जो निभाया |
हमारा तो फर्ज था
हमने निभा दिया उसको
तुम ही शायद अपना फर्ज भूल गये,
याद रखना था जिसको |..सविता मिश्रा
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4 टिप्पणियां:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 09 मई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
दिली शुक्रिया😊🙏
आदरणीय, वर्तमान की गंभीर समस्या ! सुन्दर व आशान्वित करती रचना आभार। "एकलव्य"
बहुत सुन्दर....
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