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सितंबर 30, 2016

~तकनीकि के जाल में फँसता साहित्य~



साहित्य तकनीकि के जाल में फंस रहा है, इससे हम बिलकुल भी सहमत नहीं है | बल्कि तकनिकी माध्यम से तरह तरह के फूलों वाले बगीचें में गुंथा हुआ है साहित्य |
जिस तरह का साहित्य आपको चाहिए , एक क्लिक करते ही उपलब्ध हो जाता है|

आप जितना चाहे, जैसा चाहे, उस तरह का साहित्य पढ़ सकते है | तकनीकीकरण ने तो साहित्य को और भी सुलभ बना दिया हमारे लिए | कहाँ साहित्य के कद्रदान ही साहित्य के बारे में जानते थे परन्तु अब ऐसा नहीं है | हर कोई जानता है अब साहित्य के विषय में | बल्कि हम यह कहें कि अंजान व्यक्ति को भी साहित्य को पढ़ने और लिखने का भी माध्यम मिल रहा है तो अतिश्योक्ति न होगी |

कक्षा में जो विषयांतर पढ़ाया जाता था हम उन्हीं साहित्यकारों को बस जानते थे | जानते क्या मज़बूरी में रट लिया करते थे | यदि तकनीकी से दूर रहने वालों से उन साहित्यकारों की तस्वीरें दिखा, आप पूछिये कौन है ये ? तो हमें पूरी उम्मीद है दस में से शायद ही एक बता पायेगा |

लेकिन जो तकनीकी से कदम से कदम मिला चल रहे है उन्हें ज्यादातर साहित्यकारों के बारे में तकनीकि ने ही जानकारियाँ उपलब्ध कराई है | साहित्य तकनीकि में फंस नहीं रहा बल्कि तकनीकि ने तो साहित्य के लिए पतवार का काम किया है | और शायद नैया पार भी लगा ही रहा है धीरे-धीरे |


हिन्दी साहित्य तो जैसे डूबने के कगार पर था | अंग्रेजी साहित्य की स्थिति तो ठीकठाक है | आधी आबादी तो इससे बहुत दूर हो गई थी| परन्तु अब देखिये यही आधी आबादी घर-गृहस्थी को सम्भालते हुए लेखन में भी जोर आजमाइश कर रही है | यहाँ तक की कई नौकरी पेशा माहिलायें भी घर की जिम्मेदारी के साथ साथ लेखन की ज़िम्मेदारी बखूबी निभा रही है |


तकनीकि न होती तो कहाँ ऐसे समय निकलता कि हम एक दूजे से सीख सकतें | एक के पास समय होता तो दुसरे के पास नहीं | पर तकनीकि ने लाखों- हजारों को एक दूजे से जोड़कर रखा हुआ है | जिससे एक दुसरे को सिखने-सिखाने और पढ़ने-का क्रम भी बदस्तूर जारी है |

तकनीकि के जाल में तो फँसता हुआ हमें कहीं भी नहीं दिख रहा साहित्य | बल्कि उबर रहा है | सब के जरिये सब तक पहुँच रहा है | बड़े बड़े लेखकों को पढ़ने का मौका दे रहा है |

हम यह बेखटक कह सकते है कि तकनीकि के जाल में साहित्य नहीं बल्कि साहित्य के जाल में हम सब फँसते चले जा रहें है |

निराला, दिनकर, अज्ञेय, राहुल सांकृत्यायन, रामचंद्र शुक्ल, नागार्जुन, महादेवी, रामनरेश त्रिपाठी, सुभद्राकुमारी चौहान आदि इत्यादि बड़े बड़े साहित्यकार जो सिर्फ विषय के अंतर्गत पढ़े गए थें, उनके सिवा हमें किसी के बारे में कोई जानकारी नहीं थीं | तकनीकि ने तो बहुत सारे साहित्यकारों से हमारा परिचित ही नहीं कराया बल्कि सरलता से उनका लिखा हुआ हमें उपलब्ध भी कराया |


अभिव्यक्ति, अनुभूति, हिन्दी कोष, हिन्दी साहित्य नामक अनेकानेक ऐसे साइट है जिन पर साहित्यदर्शन का लाभ ये नेत्र उठा सकते हैं | और पढ़ कर रोमांचित भी हो सकते है | साहित्य से जुड़े लोगों की फेसबुक वाल और कई ग्रुप भी हमारी साहित्य की तुष्टि करते ही है| हमें उम्मीद है आप तकनीकि माध्यम से साहित्य के जाल में फँस मकड़ी की तरह सुकून पाएंगें |

जिनकी रूचि जैसी हो वह वैसा साहित्य खोजे और पढ़े | यहाँ तक की गृहणियों के लिए भी पकवान से लेकर कढ़ाई -बुनाई तथा बागवानी से लेकर गृह सज्जा का भी साहित्य तकनीकि उपलब्ध करा रहा है| तकनीकि के जाल में प्रवेश कर अभिभूति हुए बिना नहीं रह पाएंगे |
अतः यह कहना सर्वथा अनुचित है कि तकनीकि के जाल में साहित्य फँसता जा रहा | तकनीकि तो अंधकार के जाल में फंसे हुए साहित्य को उबार रहा है | प्रकाशमान कर रहा हैं|..सविता मिश्रा

3 टिप्‍पणियां:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "भाखड़ा नंगल डैम पर निबंध - ब्लॉग बुलेटिन“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

प्रतिभा सक्सेना ने कहा…

टेक्नीक ने साहित्य को जनता से जोड़ दिया है -वह सुलभ होकर और व्याप्ति पा गया है.

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

आभार आपका तहेदिल से |