चित भी उसकी पट भी उसकी
हमारा क्या था कुछ भी तो नहीं
वह जिधर कहता उधर चल पड़ते
जिधर कहता उधर ही बैठते
कठपुतली से बन गये थे
उसका हर इशारा ही शिरोधार्य था
अपना क्या था कुछ भी तो नहीं !
अस्तित्व भी अपना ना था
तन-मन सब तो उसका ही हो गया था
उसके बगैर खुद को बेजान पाते थे
उसकी आवाज भी सुन ले
तो जान में जान आती थी
वह भी जानता था हमारी कमजोरी
पर अहसान उसका कि
उसने फायदा ना उठाया
अपने अस्तित्व में भी उसने
हमारा ही होना बताया | ...सविता मिश्रा
हमारा क्या था कुछ भी तो नहीं
वह जिधर कहता उधर चल पड़ते
जिधर कहता उधर ही बैठते
कठपुतली से बन गये थे
उसका हर इशारा ही शिरोधार्य था
अपना क्या था कुछ भी तो नहीं !
अस्तित्व भी अपना ना था
तन-मन सब तो उसका ही हो गया था
उसके बगैर खुद को बेजान पाते थे
उसकी आवाज भी सुन ले
तो जान में जान आती थी
वह भी जानता था हमारी कमजोरी
पर अहसान उसका कि
उसने फायदा ना उठाया
अपने अस्तित्व में भी उसने
हमारा ही होना बताया | ...सविता मिश्रा
5 टिप्पणियां:
badhiya kavita di..
अहसान उसका कि उसने फायदा ना उठाया
अपने अस्तित्व में भी हमारा ही होना बताया
यह तो प्रेम में मिली सफलता है…
सविता मिश्रा जी
सुंदर रचना के लिए बधाई !
…आपकी लेखनी से सुंदर रचनाओं का सृजन ऐसे ही होता रहे, यही कामना है …
शुभकामनाओं सहित…
dhanyvaad @rohit bhaiya .....
dhanyvaad @rajendra bhaiya ...........
बहुत अच्छी रचना बहिन ..... फूले/के.के.पी
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