११
साल के बच्चे को ५० साल की सजा... बेवकूफ था
किसी की हत्या करने का पाकिस्तान में गुनाह किया हमारे देश में करता बाइज्जत बरी होता ..कई समाज सेवी
उसके पक्ष में आ जाते पुलिस पर कसीदे पढ़ते ..पुलिस वाले भी उसका केस कमजोर
करते ....पत्रकार लोग महीनो उसके फुटेज लेते ...जज के आँखों के सामने हुआ
यह अतः भारत में जज और वकील अपनी सेटिंग करते फिर दसियों साल केस चलता तब
तक वह जवान हो जाता.... खून से सने हाथ ले जिन्दगी के कुछ मजे ले ही लेता
फिर सजा होती तो नाबालिक ..नासमझी में हुआ क़त्ल कह एक दो साल की सजा हो
जाती फिर रहता ऐश से और अपने बच्चो को नैतिकता का पाठ पढाता आखिर अपना भारत
महान जो हैं सब को जीने का मौका देता हैं भारत वासी जिसका नमक खाते हैं
उसका कर्ज भी चुकाते हैं ....शुभ दोपहर आप सभी को
ऐसा कुछ लिखने की चाहत जो किसी की जिंदगी बदल पाए ...मन के अनछुए उस कोने को छू पाए जो इक कवि अक्सर छूना चाहता है ...काश अपनी लेखनी को कवि-काव्य के उस भाव को लिखने की कला आ जाये ....फिलहाल आपको हमारे मन का गुबार खूब मिलेगा यहाँ ...जो समाज में यत्र तत्र बिखरा है ..| दिल में कुछ तो है, जो सिसकता है, कराहता है ....दिल को झकझोर जाता है और बस कलम चल पड़ती है |
फ़ॉलोअर
दिसंबर 16, 2013
दिसंबर 11, 2013
ढोल की पोल
जबान संभाल बोल कहें कि
झट दिखा दिए औकात
वह गज भर लम्बी रखे जुबान
जिसकी दो पैसे की नहीं औकात|
लुपछुप करते अक्सर जब
जब खुद का काम हो अटका
भीगी बिल्ली बन फिरते
थूक भी गले में रहे अटका
शेर के बेस में छुपे होते सियार
पकड़ें जाये तो लगते मिमियाने
छूटते ही देखो अपना रूप दिखाते
खरी खोटी कह रहते अक्सर खिसियाने|
गिरेबान झांकते खुद का तो
मिलते अवगुण उनमें हजार
ढोल की पोल रखने के चक्कर में
यूँ फिर कीचड़ नहीं उछालते भरे बजार| सविता मिश्रा
झट दिखा दिए औकात
वह गज भर लम्बी रखे जुबान
जिसकी दो पैसे की नहीं औकात|
लुपछुप करते अक्सर जब
जब खुद का काम हो अटका
भीगी बिल्ली बन फिरते
थूक भी गले में रहे अटका
शेर के बेस में छुपे होते सियार
पकड़ें जाये तो लगते मिमियाने
छूटते ही देखो अपना रूप दिखाते
खरी खोटी कह रहते अक्सर खिसियाने|
गिरेबान झांकते खुद का तो
मिलते अवगुण उनमें हजार
ढोल की पोल रखने के चक्कर में
यूँ फिर कीचड़ नहीं उछालते भरे बजार| सविता मिश्रा
दिसंबर 09, 2013
बोलने की स्वतंत्रता का फायदा ना उठाइए~अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ~
बोलने की स्वतंत्रता का फायदा ना उठाइए ......
अरे यह सब क्या बकवास लिखती हैं| आप को समझ नहीं आता,न सर, न पैर| बकवास लिखकर आप अपने को कवियत्री समझने की भूल कर बैठती हैं| दो-चार लोग वाह-वाह कापी पेस्ट कर डाल गए तो आप तो हवा में ही उड़ने लगी| आप निहायत ही बकवास लिखती हैं| जो तारीफों के पुल बाँध रहे है, वह तारीफ़ झूठी है| वह आपके लेखनी को नहीं आपको देख बोल रहे है| हम दंग थे यह सब पढ़कर ...|
फिर नारी पर क्या लिख दिए, पुरुष के अहम् को ठेस पहुँचा दिए | शुरू चौतरफा आक्रमण| कुछ नारी की हमदर्द बता गए| कुछ हम पर ही कीचड़ उछाल गए| कुछ बोल गए कि लगता हैं बेचारी बहुत दुखी हैं, पति बहुत सताता हैं, बहुत प्रताड़ित की हुई महिला है, तभी तो ऐसा लिखती हैं| कई तो अभिव्यक्ति का फायदा उठा धमकी तक दे गए कि पुरुष के खिलाफ लिखोगी तो यहाँ टिकना मुश्किल हो जायेगा|
अब लो, कर लो बात| यही बात यदि सामने कहते, तो हम भी बताते कि धमकी का जबाब क्या होता हैं| सभी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भरपूर फायदा उठाया| हमने भी उनका जबाब इसी अधिकार के तहत दिया| बीच में यह ख्याल आया कि.....
हमें अब कुछ बोलना ही नहीं,
किसी की भी पोल खोलना ही नहीं,
अभिव्यक्ति का घोट गला चुप रहना हैं
इन्साफ के तराजू में तोलना ही नहीं|
पर कुछ अनुचित शब्दो को भी बोल गए| शायद इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत वह मर्यादा भी भूल गए| हमने भी अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का फायदा उठाया| खूब उल्टा सीधा सुनाया, हाथ पैर चला ना पाये, अतः ब्लाक कर सफ़ेद कफ़न ओढा दिए|
यही आमने-सामने होते अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करते तो तू-तू--मैं-मैं होते होते, पता नहीं कब लाठी-डंडे चल जाते| ना लाठी डंडे तो दो-चार हाथ मारा-मारी तो हो ही जाती|
संवैधानिक रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जो हैं, जो मन में आया वह बोलेगे| पर इस तरह से हमें सामाजिक या व्यावहारिक रूप से बोलने की स्वतंत्रता नहीं हैं| समाज में लोग इस तरह बोलें, तो एक दूजे का मुहं तोड़ देते है, और हमारी संवैधानिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता धरी की धरी रह जाएगी| लो लड़ो एक स्वतंत्रता का प्रयोग करने के बाद दुसरे अधिकार यानि क़ानूनी अधिकार के लिए|
अतः सभी से अनुरोध हैं अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग भी बड़ा सोच समझ कर करें| अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का फायदा ना उठाये|
अपनी ही चार लाइनें कहना चाहेंगे .....
लोग दूसरों पर कीचड़ उछालने से बाज क्यों नहीं आते
पहले अपना ही गिरेबान झाँक क्यों नहीं आते
यकीं हैं हमें खुद को दूसरों से बुरा ही पायेंगे
भूलें से फिर किसी पर टिप्पड़ी करके नहीं आयेंगे|...सविता मिश्रा
अरे यह सब क्या बकवास लिखती हैं| आप को समझ नहीं आता,न सर, न पैर| बकवास लिखकर आप अपने को कवियत्री समझने की भूल कर बैठती हैं| दो-चार लोग वाह-वाह कापी पेस्ट कर डाल गए तो आप तो हवा में ही उड़ने लगी| आप निहायत ही बकवास लिखती हैं| जो तारीफों के पुल बाँध रहे है, वह तारीफ़ झूठी है| वह आपके लेखनी को नहीं आपको देख बोल रहे है| हम दंग थे यह सब पढ़कर ...|
फिर नारी पर क्या लिख दिए, पुरुष के अहम् को ठेस पहुँचा दिए | शुरू चौतरफा आक्रमण| कुछ नारी की हमदर्द बता गए| कुछ हम पर ही कीचड़ उछाल गए| कुछ बोल गए कि लगता हैं बेचारी बहुत दुखी हैं, पति बहुत सताता हैं, बहुत प्रताड़ित की हुई महिला है, तभी तो ऐसा लिखती हैं| कई तो अभिव्यक्ति का फायदा उठा धमकी तक दे गए कि पुरुष के खिलाफ लिखोगी तो यहाँ टिकना मुश्किल हो जायेगा|
अब लो, कर लो बात| यही बात यदि सामने कहते, तो हम भी बताते कि धमकी का जबाब क्या होता हैं| सभी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भरपूर फायदा उठाया| हमने भी उनका जबाब इसी अधिकार के तहत दिया| बीच में यह ख्याल आया कि.....
हमें अब कुछ बोलना ही नहीं,
किसी की भी पोल खोलना ही नहीं,
अभिव्यक्ति का घोट गला चुप रहना हैं
इन्साफ के तराजू में तोलना ही नहीं|
पर कुछ अनुचित शब्दो को भी बोल गए| शायद इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत वह मर्यादा भी भूल गए| हमने भी अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का फायदा उठाया| खूब उल्टा सीधा सुनाया, हाथ पैर चला ना पाये, अतः ब्लाक कर सफ़ेद कफ़न ओढा दिए|
यही आमने-सामने होते अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग करते तो तू-तू--मैं-मैं होते होते, पता नहीं कब लाठी-डंडे चल जाते| ना लाठी डंडे तो दो-चार हाथ मारा-मारी तो हो ही जाती|
संवैधानिक रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जो हैं, जो मन में आया वह बोलेगे| पर इस तरह से हमें सामाजिक या व्यावहारिक रूप से बोलने की स्वतंत्रता नहीं हैं| समाज में लोग इस तरह बोलें, तो एक दूजे का मुहं तोड़ देते है, और हमारी संवैधानिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता धरी की धरी रह जाएगी| लो लड़ो एक स्वतंत्रता का प्रयोग करने के बाद दुसरे अधिकार यानि क़ानूनी अधिकार के लिए|
अतः सभी से अनुरोध हैं अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग भी बड़ा सोच समझ कर करें| अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का फायदा ना उठाये|
अपनी ही चार लाइनें कहना चाहेंगे .....
लोग दूसरों पर कीचड़ उछालने से बाज क्यों नहीं आते
पहले अपना ही गिरेबान झाँक क्यों नहीं आते
यकीं हैं हमें खुद को दूसरों से बुरा ही पायेंगे
भूलें से फिर किसी पर टिप्पड़ी करके नहीं आयेंगे|...सविता मिश्रा
दिसंबर 06, 2013
आत्मशक्ति ~
लड़कियां कपड़ें
पहनती है छोटे-छोटे
पुरुष अपने अहम को
संतुष्ट करते यह कह के|
बच्चियों का क्या कसूर
क्या उनके तन भी कपड़े नहीं होते
ऐसे दरिंदें तो शिशु को भी
कहीं का नहीं छोड़ते|
भेड़ियों की उपाधि तो
फालतू का ही दिए जा रहे
भेड़ियें भी शर्मशार हो
आजकल नजर नहीं आ रहे|
जानवर भी डरे सहमे है
इन बहशी दरिंदो से
किसी के छज्जें पर
नहीं बैठने वाले
पूछों उन उड़ते परिंदों से|
बिना आराम किये वह
आसमान की बुलंदिया छूता है
क्योंकि आदमी नामक
बला से वह भी बहुत डरता है|
उड़ जा री ओ गौरिया
अब नहीं है तेरा ठौर !
तेरी माँ हो गयी है
बहुत ही कमजोर |
नहीं चाहती तेरा हस्र भी
कुछ ऐसा हो !
नज़र ना पड़े तुझ पर
जो बहशी दरिंदा हो |
तुझे ताकत हिम्मत दे रहे हैं
जानती है किस लिए
विपरीत परिस्थितियों में तू
लड़ सकें हिम्मत से इस लिए|
गिद्ध सी जो तुझ पर
कभी कहीं नजर गड़ाये
तू चंडी है यह कह
अपनी आत्मशक्ति को जगाये |
देखना तेरी आत्मशक्ति जब जाग जाएगी
मन में बसी कमजोरी कहीं दूर भाग जाएगी |
नन्ही गौरया तू थोड़ा जब हिम्मत जुटाएगी
तो गिद्ध जैसे को भी परास्त कर जाएगी...|| ..सविता मिश्रा
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पहनती है छोटे-छोटे
पुरुष अपने अहम को
संतुष्ट करते यह कह के|
बच्चियों का क्या कसूर
क्या उनके तन भी कपड़े नहीं होते
ऐसे दरिंदें तो शिशु को भी
कहीं का नहीं छोड़ते|
भेड़ियों की उपाधि तो
फालतू का ही दिए जा रहे
भेड़ियें भी शर्मशार हो
आजकल नजर नहीं आ रहे|
जानवर भी डरे सहमे है
इन बहशी दरिंदो से
किसी के छज्जें पर
नहीं बैठने वाले
पूछों उन उड़ते परिंदों से|
बिना आराम किये वह
आसमान की बुलंदिया छूता है
क्योंकि आदमी नामक
बला से वह भी बहुत डरता है|
उड़ जा री ओ गौरिया
अब नहीं है तेरा ठौर !
तेरी माँ हो गयी है
बहुत ही कमजोर |
नहीं चाहती तेरा हस्र भी
कुछ ऐसा हो !
नज़र ना पड़े तुझ पर
जो बहशी दरिंदा हो |
तुझे ताकत हिम्मत दे रहे हैं
जानती है किस लिए
विपरीत परिस्थितियों में तू
लड़ सकें हिम्मत से इस लिए|
गिद्ध सी जो तुझ पर
कभी कहीं नजर गड़ाये
तू चंडी है यह कह
अपनी आत्मशक्ति को जगाये |
देखना तेरी आत्मशक्ति जब जाग जाएगी
मन में बसी कमजोरी कहीं दूर भाग जाएगी |
नन्ही गौरया तू थोड़ा जब हिम्मत जुटाएगी
तो गिद्ध जैसे को भी परास्त कर जाएगी...|| ..सविता मिश्रा
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दिसंबर 04, 2013
भ्रष्टाचार की जड़ शायद
सोचे और बताएं जरा तो सहीं ..
वोट उन्ही को देना चाहिए जो इनकी कीमत समझे और सही व्यक्ति हो ..वैसे जैसे हल्के से जनता के विरोध पर सरकारी कर्मचारी का ट्रांसफर या निलम्बित कर दिया जाता हैं यह जानते हुए कि वह गलत नहीं हैं, वैसे ही नेताओं को भी जब हम चुनते हैं तो हम ही बीच में उनके काम सही ढंग से ना करने पर हटा क्यों नहीं सकते, जबकि सरकारी कर्मचारी हम नहीं चुनते वह अपनी मेहनत के बलबूते आते हैं यह भी नियम होना चाहिए हैं न कि नेता को भी हम हटा सकें| .यदि हटा सकते तो भ्रष्टाचार की जड़ शायद समाप्त करने में सबसे बड़ा योगदान होता|....आप सब की क्या सोच हैं ......सविता मिश्रा
वोट उन्ही को देना चाहिए जो इनकी कीमत समझे और सही व्यक्ति हो ..वैसे जैसे हल्के से जनता के विरोध पर सरकारी कर्मचारी का ट्रांसफर या निलम्बित कर दिया जाता हैं यह जानते हुए कि वह गलत नहीं हैं, वैसे ही नेताओं को भी जब हम चुनते हैं तो हम ही बीच में उनके काम सही ढंग से ना करने पर हटा क्यों नहीं सकते, जबकि सरकारी कर्मचारी हम नहीं चुनते वह अपनी मेहनत के बलबूते आते हैं यह भी नियम होना चाहिए हैं न कि नेता को भी हम हटा सकें| .यदि हटा सकते तो भ्रष्टाचार की जड़ शायद समाप्त करने में सबसे बड़ा योगदान होता|....आप सब की क्या सोच हैं ......सविता मिश्रा
नवंबर 30, 2013
+++भ्रष्टाचार है ऐसी बीमारी +++
कौन नहीं है भ्रष्टाचारी ,
जरा हमें भी बतलाओ |
स्वयं को नेक कहने वाले ,
जरा अपने गिरेबान में झांक के आओ |
भ्रष्टाचारी है ऐसी बीमारी ,
जो सभी को लगती है एक बारी |
कोई तो बतायें हमें व्यक्ति ऐसा ,
जिसने कभी ना काम किया हो ऐसा -तैसा |
कभी ना कभी तो लिया है ,
या फिर किसी को दिया है |
क्या करे देश में फैली है यह महामारी ,
जनता की भी है यह लाचारी |
सभी है यहाँ एक से बढ़कर एक भ्रष्टाचारी ,
अपने अंदर से ही खत्म करना होगा बारी बारी |
तब जाके कही खत्म होगी यह बीमारी ,
वर्ना दीमक की तरहचाट जायेगी यह इंसानियत हमारी | ..सविता मिश्रा
जरा हमें भी बतलाओ |
स्वयं को नेक कहने वाले ,
जरा अपने गिरेबान में झांक के आओ |
भ्रष्टाचारी है ऐसी बीमारी ,
जो सभी को लगती है एक बारी |
कोई तो बतायें हमें व्यक्ति ऐसा ,
जिसने कभी ना काम किया हो ऐसा -तैसा |
कभी ना कभी तो लिया है ,
या फिर किसी को दिया है |
क्या करे देश में फैली है यह महामारी ,
जनता की भी है यह लाचारी |
सभी है यहाँ एक से बढ़कर एक भ्रष्टाचारी ,
अपने अंदर से ही खत्म करना होगा बारी बारी |
तब जाके कही खत्म होगी यह बीमारी ,
वर्ना दीमक की तरहचाट जायेगी यह इंसानियत हमारी | ..सविता मिश्रा
नवंबर 25, 2013
~हर बार नया ~
एक चेहरे पर दसियों चेहरे निकले
देखा गौर से तो ना जाने कितने निकले
परत दर परत हटती रही चेहरों से उसके
जितनी बार देखा हमने उसे पलट के
हर बार एक नया शक्स नजर आया
पल पल भरमाया भटकाया उसने हमें
सोचते थे उड़ती चिड़िया के पर गिन लेते हैं
पर इंसानो ने ही ज्यादा भरमाया है हमें
अपना ही दावा खोखला निकला यहाँ
इंसानों को पहचानने में धोखा खाया
इंसानी दिमाक इतना शातिर हुआ
आँख में धूल झोंकने में माहिर हुआ||...सविता
देखा गौर से तो ना जाने कितने निकले
परत दर परत हटती रही चेहरों से उसके
जितनी बार देखा हमने उसे पलट के
हर बार एक नया शक्स नजर आया
पल पल भरमाया भटकाया उसने हमें
सोचते थे उड़ती चिड़िया के पर गिन लेते हैं
पर इंसानो ने ही ज्यादा भरमाया है हमें
अपना ही दावा खोखला निकला यहाँ
इंसानों को पहचानने में धोखा खाया
इंसानी दिमाक इतना शातिर हुआ
आँख में धूल झोंकने में माहिर हुआ||...सविता
नवंबर 14, 2013
++बस यूँ ही ++
1...प्यार से समझाती है डांटती है ,
भला हो हमारा जिसमें हर वह काम करती है |
दुनिया के दिए जख्म भी ह्रदय में छुपा ,
बच्चे को उस ताप से दूर ही रखती है |सविता मिश्रा
2...सो जाये जमीर को अपने सुला कर
या खो जाये नींद में खुद को भुला कर
सभी अपने एक एक कर बेगाने हुए
सोचने पर हुए मजबूर हम क्या
हम में ही है कांटे लगे हुए| ...सविता मिश्रा
3...माँ तो माँ ही होती है ...
सपने में भी खरोंच ना लगने दे ....
मौत भले आ जाएँ पर .
...अपने ममत्व को ना झुकने दे| ....सविता
4....दुःख के बाद जो सुख आता हैं
वह पिपरमेंट सा होता हैं
उड़ जाएँ भले ही नामो निशाँ न रहे
पर बड़ी ठंडक हमें दे जाता हैं| ..सविता मिश्रा
5....बादल भी अब अटखेलिया करता हैं
घेरता कही और कही बरसता हैं
बदलिया बहा ले जाती हैं मुई हवाए
चल यहाँ क्यों बरसे यहाँ रहती हैं बेवफाये| ...............सविता .बस यूँ ही
भला हो हमारा जिसमें हर वह काम करती है |
दुनिया के दिए जख्म भी ह्रदय में छुपा ,
बच्चे को उस ताप से दूर ही रखती है |सविता मिश्रा
2...सो जाये जमीर को अपने सुला कर
या खो जाये नींद में खुद को भुला कर
सभी अपने एक एक कर बेगाने हुए
सोचने पर हुए मजबूर हम क्या
हम में ही है कांटे लगे हुए| ...सविता मिश्रा
3...माँ तो माँ ही होती है ...
सपने में भी खरोंच ना लगने दे ....
मौत भले आ जाएँ पर .
...अपने ममत्व को ना झुकने दे| ....सविता
4....दुःख के बाद जो सुख आता हैं
वह पिपरमेंट सा होता हैं
उड़ जाएँ भले ही नामो निशाँ न रहे
पर बड़ी ठंडक हमें दे जाता हैं| ..सविता मिश्रा
5....बादल भी अब अटखेलिया करता हैं
घेरता कही और कही बरसता हैं
बदलिया बहा ले जाती हैं मुई हवाए
चल यहाँ क्यों बरसे यहाँ रहती हैं बेवफाये| ...............सविता .बस यूँ ही
नवंबर 07, 2013
रिश्तों
में अब गुड की मिठास कम करेले की कड़वाहट ज्यादा हो रही हैं वैसे करेला भी
अब उतना कड़वा नहीं हैं जितना कि रिश्ते में मिल जायेगा ..मुहं पर मिठास
घोलने वाले पीठ पीछे ना जाने क्या क्या कह जाते हैं बल्कि यह कहिये कि
रिश्ता भी नहीं मानते बस लोकलाज में निभा रहे हैं ...ऐसे रिश्तों को तो
ख़त्म कर देना चाहिए पर जान कर भी मज़बूरी में निभाया जा रहा हैं महज लोकलाज
बस ...सच में कितनी कडवाहट है यह देख अचंभित हैं हम ..ना जाने समाज घर देश
कहा किस ओर जा रहा हैं|...सविता मिश्रा
मिलना बिछड़ना नियति का हैं यह खेल
खून के रिश्तों में भी जमने लगी अब मैल |
सविता मिश्रा
मिलना बिछड़ना नियति का हैं यह खेल
खून के रिश्तों में भी जमने लगी अब मैल |
सविता मिश्रा
अक्टूबर 15, 2013
++काम प्यारा होता है चाम नहीं ++
काम प्यारा होता है, चाम नहीं
हर वक्त माँ चिल्लाती थी
जब डांट लगाती
यही कुछ बड़बड़ाती थी!
बड़े लाड-प्यार से पाला था
चार लड़कों के साथ हमें भी दुलारा था
पर जब हम होने लगे बड़े
रसोई के आस-पास भी नही होते खड़े
तब गुस्से में आ कभी -कभी
खूब झाड़ पिलाती थी
काम प्यारा होता है
चाम नहीं होता प्यारा|
ससुराल में शक्ल नहीं देखेंगे
काम ही करवा कर दम लेंगे|
थोड़ा तो कुछ काम सीख लो
लड़कों सी पल रही हो
नाज नखरे सब जो कर रही हो
शादी कर जब दूजे घर जाओगी
नहीं यह सब कर पाओगी!
शक्ल देख कोई नहीं जियेगा
अपनी भाभी की तरह
तुम्हें भी वहाँ पर
यहीं सब कुछ करना पड़ेगा!
सुन्दरता लेकर नहीं चाटना है
अभी काम तुम्हें बहुत सीखना है
सब काम सीख लोगी तो हाथों-हाथ रहोगी
वरना सास हमेशा कोसती ही रहेगी!
काम प्यारा होता है, होता नहीं है चाम प्यारा
अच्छा होगा सीख लो तुम, घर का काम सारा |
++++सविता मिश्रा ++++
काम ही करवा कर दम लेंगे|
थोड़ा तो कुछ काम सीख लो
लड़कों सी पल रही हो
नाज नखरे सब जो कर रही हो
शादी कर जब दूजे घर जाओगी
नहीं यह सब कर पाओगी!
शक्ल देख कोई नहीं जियेगा
अपनी भाभी की तरह
तुम्हें भी वहाँ पर
यहीं सब कुछ करना पड़ेगा!
सुन्दरता लेकर नहीं चाटना है
अभी काम तुम्हें बहुत सीखना है
सब काम सीख लोगी तो हाथों-हाथ रहोगी
वरना सास हमेशा कोसती ही रहेगी!
काम प्यारा होता है, होता नहीं है चाम प्यारा
अच्छा होगा सीख लो तुम, घर का काम सारा |
++++सविता मिश्रा ++++
अक्टूबर 13, 2013
क्यों नारी ही दुःख पाती है-
राम बने कोई, चाहे बने रावण
हैं दोनों मेरी दृष्टि में महान
लेकिन एक नादाँ सा है मेरा सवाल
क्यों हर हाल में
नारी ही दुःख पाती है ?
रावण की मृत्यु हो
इस कारण
सीता ही क्यों वन को जाती है ?
लेकिन एक नादाँ सा है मेरा सवाल
क्यों हर हाल में
नारी ही दुःख पाती है ?
रावण की मृत्यु हो
इस कारण
सीता ही क्यों वन को जाती है ?
लक्ष्मण की पत्नी क्या
नारी नहीं कहलाती है !
चौदह साल जो बिना विरोध किये
पति-विछोह को सह जाती है
बिन पानी मछली की तरह
हर दुःख को वह पी जाती है
सास की सेवा में रहकर वह
अपना जीवन व्यतीत कर जाती है !
नारी नहीं कहलाती है !
चौदह साल जो बिना विरोध किये
पति-विछोह को सह जाती है
बिन पानी मछली की तरह
हर दुःख को वह पी जाती है
सास की सेवा में रहकर वह
अपना जीवन व्यतीत कर जाती है !
मेघनाथ को मिला वरदान जहाँ
उर्मिला के लिए श्राप बन जाता है
दशरथ का अनुचित कर्म भी वहाँ
कैकेयी को ही अपयश दिलाता है
यूँ हर हाल में क्यों..नारी ही दुःख पाती है |
रावण की मृत्यु हो !
इस कारण सीता ही क्यों वन को जाती है ?
उर्मिला के लिए श्राप बन जाता है
दशरथ का अनुचित कर्म भी वहाँ
कैकेयी को ही अपयश दिलाता है
यूँ हर हाल में क्यों..नारी ही दुःख पाती है |
रावण की मृत्यु हो !
इस कारण सीता ही क्यों वन को जाती है ?
मंदोदरी का था क्या अपराध ?
जिसके पति-परमेश्वर के
था अमृत नाभि के पास
मार सकता था उसे कोई खासमखास
करता था वह भीषण अट्टहास
देवता भी जिसकी मुट्टी में थे
जिसका पति हो इतना बलसाली
उसकी भी मिट गयी सिंदूर की लाली
भेदिया विभीषण ने कहानी सारी कह डाली
सारी की सारी लंका उसने जला डाली
विभीषण ने तो गद्दारी करके गद्दी पा पाली
लेकिन यहाँ भी दुखी भई एक निरपराध नारी |
जिसके पति-परमेश्वर के
था अमृत नाभि के पास
मार सकता था उसे कोई खासमखास
करता था वह भीषण अट्टहास
देवता भी जिसकी मुट्टी में थे
जिसका पति हो इतना बलसाली
उसकी भी मिट गयी सिंदूर की लाली
भेदिया विभीषण ने कहानी सारी कह डाली
सारी की सारी लंका उसने जला डाली
विभीषण ने तो गद्दारी करके गद्दी पा पाली
लेकिन यहाँ भी दुखी भई एक निरपराध नारी |
सार यह है कि हर हाल में
नारी ही क्यों मारी जाती है
नियति मंथरा से ही क्यों चाल चलवाती है
कैकेयी ही क्यों कोपभवन को जाती है
एक औरत ही क्यों होनी के वास्ते
अपने हाथों अपनी मांग उजाड़ती है
सुर्पनखा की ही क्यों नाक काटी जाती है
कैकेयी ही क्यों माता से कुमाता बन जाती है
द्रोपदी ही क्यों अपना चीर हरण करवाती है
दुर्योधन के अहंकार को वह क्यों ठेस पहुंचाती है
नियति क्यों हर बार नारी को ही मुहरा बनाती है
निष्कपट-निष्कलंक नारी से ही चाल चलवाती है ?
नारी ही क्यों मारी जाती है
नियति मंथरा से ही क्यों चाल चलवाती है
कैकेयी ही क्यों कोपभवन को जाती है
एक औरत ही क्यों होनी के वास्ते
अपने हाथों अपनी मांग उजाड़ती है
सुर्पनखा की ही क्यों नाक काटी जाती है
कैकेयी ही क्यों माता से कुमाता बन जाती है
द्रोपदी ही क्यों अपना चीर हरण करवाती है
दुर्योधन के अहंकार को वह क्यों ठेस पहुंचाती है
नियति क्यों हर बार नारी को ही मुहरा बनाती है
निष्कपट-निष्कलंक नारी से ही चाल चलवाती है ?
हर हाल, हर युग में नारी ही क्यों मारी जाती है
कुपरिस्थितियों के भेंट नारी ही क्यों चढ़ जाती है ?
सवाल हैं बहुत तंज से भरे, जवाब हमें अब चाहिए
नारी विरोधी परिस्थितियों को अब सुधारना चाहिए
नारी को ही युगों-युगों से क्यों-कर दुःख दिया जाए ?
सम्मान देकर क्यों न अब इसका प्रायश्चित किया जाए !
कुपरिस्थितियों के भेंट नारी ही क्यों चढ़ जाती है ?
सवाल हैं बहुत तंज से भरे, जवाब हमें अब चाहिए
नारी विरोधी परिस्थितियों को अब सुधारना चाहिए
नारी को ही युगों-युगों से क्यों-कर दुःख दिया जाए ?
सम्मान देकर क्यों न अब इसका प्रायश्चित किया जाए !
सवाल पेचीदा अब यह निरुत्तर नहीं छोड़िए
नारी के सम्मान में अब एकजुट हो लीजिए |
क्यों हर हाल में नारी ही दुःख पाती है ?
रावण की मृत्यु हो इस कारण
सीता ही क्यों वन को जाती है ?
--००---
नारी के सम्मान में अब एकजुट हो लीजिए |
क्यों हर हाल में नारी ही दुःख पाती है ?
रावण की मृत्यु हो इस कारण
सीता ही क्यों वन को जाती है ?
--००---
सविता मिश्रा 'अक्षजा'
~घर उनके जाना छोड़ दिया~
जो खटखट करने पर भी पट नहीं खोलतें
हमने उनके घर जाना छोड़ दिया
बात करनी तो दूर, नजर उठा भी नहीं देखतें
हमने अब से घर उनके जाना छोड़ दिया |
स्वाभिमान हमारा जहाँ चोटिल होता
दिल भी बहुत ही ज्यादा दुखता हैं
मन का मिलना नहीं होता जहाँ
ऐसे घर को जाना कब का हमने छोड़ दिया|
जो खटखट......
जिसको देखो मार जाता है ताने
तेरा अपना कोई कैसे नहीं होता हैं
क्या करें ! कैसे दिल को समझाए
फिलहाल दिल को बरगलाना हमने सीख लिया हैं|जो खटखट......
अब दिल पर जब कोई दस्तक भी देता है
दिल कपाट अपना भी अब नहीं खुलता है
यह भी पराया होने से अब तो डरता है
दिल में अब सब को जगह देना हमने छोड़ दिया हैं |जो खटखट......
कभी सभी दिल में रहतें थे हमारेहम अपने पराएँ का भेद ना करतें थे
नन्हें-मुन्हे, बूढ़े-जवान सब को
खूब देंते थे हम मान सम्मानपर अब हमने भी दिखावा करना सीख लिया|जो खटखट......
अब हमने भी मन को मारना सीख लिया हैं|
जिस ने दिल दुखाया उनके घर जाना छोड़ दिया हैं|| सविता मिश्रा
अक्टूबर 10, 2013
##जिद ##
जिद थी अपनी कि जिद छोड़ देगे,
जिद्दी मन कों अपने मोड़ देगे|
पर यह हो ना सका कभी ,
जिद से ही "जिद" कर बैठी|
खुद कों बदलते-बदलते,
अपना ही वजूद खो बैठी |
अब जिद है कि "जिद"को,
अपने अंदर कैद कर लू |
जिद से ही "जिद"कों भूल जाऊ,
पर "जिद" है जिद्दी बहुत ही कैसे भुलाऊ |
||सविता मिश्रा ||
१५ /२/२०१२
जिद्दी मन कों अपने मोड़ देगे|
पर यह हो ना सका कभी ,
जिद से ही "जिद" कर बैठी|
खुद कों बदलते-बदलते,
अपना ही वजूद खो बैठी |
अब जिद है कि "जिद"को,
अपने अंदर कैद कर लू |
जिद से ही "जिद"कों भूल जाऊ,
पर "जिद" है जिद्दी बहुत ही कैसे भुलाऊ |
||सविता मिश्रा ||
१५ /२/२०१२
अक्टूबर 08, 2013
.....आकाश तुम धरती बन जाओ.....
हे आकाश कुछ दिन तुम धरती बन जाओ
देखो कितना कुछ धरती सहती है
तुम दूर बैठ हँसते हो
नजदीक आ कहर ढाते हो
साथ मिलते हो जिस छोर
तो अंत होता हैं धरती का
हे आकाश कुछ दिन ही सही
तुम धरती बन जाओ....
धरती आकाश बन जाएगी
सबको अपने में समेट लेगी
दूरियाँ नजदिकिया बन जाएगी
धरती में सहने की आपर क्षमता हैं
सब के दुःख सह जाएगी
दुःख को सुखों में बदल
अमृत वर्षा कर जाएगी
हे आकाश कुछ दिन ही सही
धरती को आकाश बनने दो ....
आकाश तुम दूर क्षितिज तक फैले हो
देखो फिर भी कितने अकेल हो
तुहारी सतह तक पंक्षी उड़ते हैं
पर वह भी धरती पर आ सुकून पाते हैं
घर अपना आकाश में नहीं
धरती पर ही बनाते हैं
हे आकाश धरती सा धैर्य धर लो ....
बेवजह बादलों को चंचल ना होने दो
धरती को तोड़ने की साजिस में ना फंसने दो
बादल फट कभी भी धरती को ना मिटा पायेगा
बस कुछ शरारती बालक की तरह उत्पात ही कर जायेगा
धरती सहनशील हैं सब सह जाएगी
फिर से प्रफुल्लित और पुष्पित हो जाएगी
फिर से आकाश को झुकने को मजबूर कर जाएगी
हे आकाश तुम बहुत विशाल हो
अपनी बिशालता को अहम में ना फंसने दो
कुछ दिन ही सही धरती सा बन कर देखो ||...सविता मिश्रा
अक्टूबर 02, 2013
हमारा इसमें क्या कुसूर था
अपना उसूल-
काटों पर ही चलना,
अपना जुनून था,
नफरत को प्यार से,
जीत कर आया सुकून था |
क्रोध के अग्नि पर,
प्रेम की बौछार करना,
अपना तो ध्येय था,
निरर्थक नहीं यह व्यय था |
सत्य का आह्वान,
असत्य का विनाश करना,
अपना तो यही उसूल था,
काटों पर ही चलना,
अपना जुनून था,
नफरत को प्यार से,
जीत कर आया सुकून था |
क्रोध के अग्नि पर,
प्रेम की बौछार करना,
अपना तो ध्येय था,
निरर्थक नहीं यह व्यय था |
सत्य का आह्वान,
असत्य का विनाश करना,
अपना तो यही उसूल था,
सितंबर 14, 2013
====ककहरा बनाम अलजेब्रा ===
ककहरा था कभी सभी की जुबान
अलजेब्रा हो गयी अब अपनी आन
ककहरा के थे कभी हम सभी पुजेरी
अलजेब्रा के हो गये अब तो नशेणी |
अम्मा बाबू आज
मम्मी पापा हो गये
भैया-बहिनी को तो
ब्रदर-सिस्टर कह गये
इतना ही नहीं और भी
फैन्शी अंग्रेजी आ गयी
अब तो बच्चे मम्मी को माम
डैडी को पाप्स कहने लग गये |
आंटी झट से आंट बन गयी
अंकल तो शुक्र है अंकल ही रहे
बहन सिस्टर फिर सिस हो गयी
ब्रदर तो अचानक ही ब्रो हो गये
हिंदी भाषा भाषी को गंवार कह गये
अंग्रेजी फर्राटे से बोले तो स्मार्ट कह गये
मातृभाषा को अपनी मदरटंग कह गये
दफ्तर में भी हम अंग्रेजियत सह गये |
कैसा ये जमाना गया नया आ
अंग्रेजियत का नशा सा गया छा
उदण्ड लोग सड़को पर डोल रहे
गलती करके सॉरी बेफिक्री से बोल रहे
अंग्रेजियत का ही फूहड़पन रहे झेल
अपनी मातृभाषा को पीछे रहे ढकेल|
ककहरा को छोड़ सब अलजेब्रा के हो गये
हम भी इसी रंग में रगने को विवश हो गये
जब से हम अंग्रेजियत के रंग में रंग गये हैं
यकीन मानिये शर्म से पानी-पानी हो गये हैं || सविता मिश्रा
सितंबर 02, 2013
शबनमी बूँदें ---
रातें गुमसुम सी थीं
बातें कुछ भी ना हुई थीं
सिलसिला यही चलता रहा गर्मियों में कहाँ कुछ सुनने को मिला
जाड़े की ठिठुरन भरी रात
बागीचे की हरी चटाई पर
गुपचुप हुई कई बात
सुनगुन हमने भी सुनी
खिड़की खोलकर बाहर
देखने की हिम्मत ना हुई
सुबह होते ही खिड़की खोली
हरी हरी चटाई भीगी मिली
मैंने सोचा-
आज कितना रोई होगी चांदनी
चाँद से जब यूँ अरसे बाद मिली
महीनों के उसने ग़म बांटे होंगे
ख़ुशी से भी आँखें छलकी होंगी
चाँद नहीं भर पाया होगा अंजुली में
वह भी इस दुःख में रो ही दिया होगा
प्रिय चांदनी की आँखों का आँसू
हरी चादर ने जमीं में न गिरने दिया होगा
दोनों के प्यार भरे वार्तालाप को
कुछ यूँ ही उसने
अपनी झोली में संजोया होगा
देख शबनमी बूँदें
कुछ इस कदर मैं भी खोयी
कि चढ़ते सूरज की किरणों से ही जागी
देखा-
देखते-देखते ओस की बूँदें
आँखों से ओझल हुईं
सूरज की तपिश को
प्यार भरी ओस की बूँदें
भला कैसे सह पातीं
सूरज की लाल लाल आँखों में
समाहित जैसे वो हों गयीं |..सविता मिश्रा
बातें कुछ भी ना हुई थीं
सिलसिला यही चलता रहा गर्मियों में कहाँ कुछ सुनने को मिला
जाड़े की ठिठुरन भरी रात
बागीचे की हरी चटाई पर
गुपचुप हुई कई बात
सुनगुन हमने भी सुनी
खिड़की खोलकर बाहर
देखने की हिम्मत ना हुई
सुबह होते ही खिड़की खोली
हरी हरी चटाई भीगी मिली
मैंने सोचा-
आज कितना रोई होगी चांदनी
चाँद से जब यूँ अरसे बाद मिली
महीनों के उसने ग़म बांटे होंगे
ख़ुशी से भी आँखें छलकी होंगी
चाँद नहीं भर पाया होगा अंजुली में
वह भी इस दुःख में रो ही दिया होगा
प्रिय चांदनी की आँखों का आँसू
हरी चादर ने जमीं में न गिरने दिया होगा
दोनों के प्यार भरे वार्तालाप को
कुछ यूँ ही उसने
अपनी झोली में संजोया होगा
देख शबनमी बूँदें
कुछ इस कदर मैं भी खोयी
कि चढ़ते सूरज की किरणों से ही जागी
देखा-
देखते-देखते ओस की बूँदें
आँखों से ओझल हुईं
सूरज की तपिश को
प्यार भरी ओस की बूँदें
भला कैसे सह पातीं
सूरज की लाल लाल आँखों में
समाहित जैसे वो हों गयीं |..सविता मिश्रा
सितंबर 01, 2013
हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया
हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया
कैसे लिख गये कोई महान कवि
हमें तो आज नहीं कल की फ़िक्र पड़ी
कल की छोड़िये जनाब सालो-साल की है पड़ी |
छ: सिलेंडर में साल भर कैसे निभायेंगे
साग -सब्जी, दाल-रोटी, नमक को महंगा कर
क्या कलेजे को ठंडक नहीं मिली
अब सिलेंडर-केरोसिन में भी आग लगी|
सोच रहे हैं -
बच्चों को और ज्यादा संस्कारवान बनायें
खुद के साथ-साथ उनकी भी पूजा-पाठ में रूचि बढ़ायें |
सोम-शिव, मंगल-हनुमान , बुध को बस खाए-खिलायें
बुहस्पति-बृहस्पति गुरु ,शुक्र-संतोषी,
शनि को शनि भगवान का व्रत रखवायें
रविवार को सब मिल थोड़े में ही पिकनिक मनायें |
घर बनवाने की हिम्मत न जुटे तो
कही सड़क किनारे ही कुटी छवायें
आते-जाते लोगो को इस महंगाई से परिचित करवायें
बस भोजन कम, भजन ही करते हुए जिन्दगी बितायें |
जिस तरह महंगाई की रफ़्तार बढ़ रही है
जनाब उसी तरह तनख्वाह भी तो बढ़वाइयें
हर फिक्र को धुएं में भला कैसे उड़ायें
जब खुद को ही धुयें में हम खोता पायें|....सविता मिश्रा
==== अब कुछ मजे के लिए सजा तो झेलनी ही पड़ेगी ===
आगरा में कौन सी सड़क सही हैं यदि कोई ऐसी सडक मिल जाये किसी इलाके में तो
आठवा अजूबा ही होगा| कभी मेनहोल खुले कभी सिबर लाइन पड़ने को खुदी कभी
टोरंटो वालो ने खोद डाली कुछ ना कुछ करके सड़क तो खस्ताहाल करनी ही करनी|
कहने को जो अच्छी लोक्लटी हैं वह बरसात में गाँवकी पगडण्डी से भी ख़राब ज्यादा हो जाती हैं| बरसात में पोखर बनी सड़को का नजारा आप यत्र-तत्र देख सकतें हैं और गड्ढों में फंसी गाड़ियो के सवार दूसरो की तरफ आस भरी निगाहें करें निरीह से नजर आ जायेगें हर कही|
गंदगी और नालाओं के पानी से लबालब सड़के बेचैन करे घर जल्दी पंहुचने केलिए| ...सविता मिश्रा

कहने को जो अच्छी लोक्लटी हैं वह बरसात में गाँवकी पगडण्डी से भी ख़राब ज्यादा हो जाती हैं| बरसात में पोखर बनी सड़को का नजारा आप यत्र-तत्र देख सकतें हैं और गड्ढों में फंसी गाड़ियो के सवार दूसरो की तरफ आस भरी निगाहें करें निरीह से नजर आ जायेगें हर कही|
गंदगी और नालाओं के पानी से लबालब सड़के बेचैन करे घर जल्दी पंहुचने केलिए| ...सविता मिश्रा
अगस्त 31, 2013
++कैसे जिए++
कभी-कभी बेगानी सी लगती हैं यह दुनिया,
कभी-कभी बड़ी जानी पहचानी सी लगती हैं|
झूठ को जब-जब जिया अपनी सी लगी,
आइना सच का दिखाया तो बेगानी हुई|
फरेब जब करने चले बड़ी सुहानी लगी,
अच्छाई करने पर बड़ी हैरानी सी हुई|
बदनीयती की जब हमने सब ने हाथों हाथ लिया,
कभी-कभी बड़ी जानी पहचानी सी लगती हैं|
झूठ को जब-जब जिया अपनी सी लगी,
आइना सच का दिखाया तो बेगानी हुई|
फरेब जब करने चले बड़ी सुहानी लगी,
अच्छाई करने पर बड़ी हैरानी सी हुई|
बदनीयती की जब हमने सब ने हाथों हाथ लिया,
नियत जब साफ़ रक्खी हमने हंसी का पात्र हुई ।
धोखा देना जब तक ना आया हमको,
जीना हुआ था बहुत ही दुश्वारअपना|
जैसे ही यह गुर भी सीख लिया,
बखूबी जीना हमने सीख लिया||..... सविता मिश्रा
धोखा देना जब तक ना आया हमको,
जीना हुआ था बहुत ही दुश्वारअपना|
जैसे ही यह गुर भी सीख लिया,
बखूबी जीना हमने सीख लिया||..... सविता मिश्रा
अगस्त 30, 2013
“”रक्षा-बंधन””
शुभ कामनाएं आप सभी को “”रक्षा-बंधन”” त्योहार की ..
कोई भूला ...कोई याद रहा .....किसी ने हमें याद किया कोई भुला गया......:)
कवच राखी
रिश्ता भाई बहन
स्नेह बंधन| सविता मिश्रा
इसे मायावी कहे या आभासी कहे ! फेसबुक पर बहुत से अपने मिले, जो हमें बहन जैसा ही मानते हैं| बहुत वो लोग भी हैं जिन्हें हम संबोधित करतें हैं| पर कहते हैं ना ताली दोनों हाथों से बजती है, एक हाथ से तो बस चुटकी ही बजाई जा सकती है |.....
उन सभी स्नेहिल भाइयो को! जो छोटे हैं, ढेर सा स्नेह के साथ आशीष -इस बहन की तरफ से, और हमारे बड़े भाइयो को! ढेर सारी दुआओं के साथ सादर नमस्ते पहुँचे ...|
हम जानते हैं, जिन्होंने कहा राखी कहाँ हैं ? उन्हें उम्मीद होगी, कि हम राखी भेजेंगे| हम उन्हें जरुर कहना चाहेगें कि.. माना राखी का धागा एक रिश्ते को और भी प्रगाढ़ बनाता है | पर संभव ना हो सका उस धागे को आप तक पहुँचाना | लेकिन दिल है कि प्रगाढ़ता महसूस करता है, यह दिल मानता कब है यह तो सामने वाले के व्योहार का गुलाम बन जाता है हमेशा | और शायद तभी धोखे भी खाता है | खैर रिश्ता और धोखा दोनों एक सिक्के के दो पहलु की तरह है जो साथ साथ रहने की कसम खाए हुए है | वैसे हम इस पावन त्यौहार पर यह बकवास क्यों करने लगे | हम तो स्नेह की बात करेंगे, भाई बहन के पवित्र रिश्तें की बात करेंगे|
इसी आभासी दुनिया के जरिये ही हम, आप सभी को भाव से राखी बाँध यह वचन लेना चाहते हैं कि आप भारत की बहनों की रक्षा में कभी भी पीछे नहीं हटेगें और ना ही भूले से भी किसी की बहन का अपमान करेगें ....|
जो दुसरे के साथ करता है, वही उसके साथ हो तब उसे अपनी गलती का अहसास होता है, यदि ऐसी गलती करने से पहले ही अहसास कर लें सब तो कुछ तो सुधार हो ही जायेगा......|
>हम कई बार कह चुके हैं जरुरी नहीं है, खून के रिश्ते ही सब कुछ हों | कभी कभी दिल के रिश्ते भी उतने ही मजबूत और करीब होते हैं जितने खून के ...|
जहाँ तक राखी का इतिहास पढ़ा गैरों को ही इस पवित्र बंधन में बांध अपना बनाया गया ..|
.बलि-लक्ष्मी, सिकंदर की पत्नी और पुरु, कृष्ण और द्रोपदी, राखी और हुमायूँ ...|
दो लाइन अधूरी सी कहना चाहेगें ....
दिल से इतना अधिक लगा लिया ..
खून के रिश्ते से भी अधिक बना लिया |..........सविता मिश्रा....
राखी का त्यौहार एक पवित्र त्योहार है | भाई बहन के रिश्तों को और भी मजबूत करने वाला त्यौहार है | पर आज के ज़माने में भाई कि यह वाणी कि "दो पैसे की राखी लायी हो" दिल को चीर कर रक्ख देती है ....बहन भी भाई को राखी बाँध भाई के प्यार से दिए हुए उपहार को जब पैसो में तौल देती है ..कितना दुख होगा भाई को | ....................मुख से निकली वाणी दिल को कितना आघात पहुंचाती है ...किसी को क्या पता जब तक वह खुद ही भुक्त-भोगी न बने |...............यह वही समझेगा जो इस परिस्थिति से गुजर चूका होगा कभी ...........
लाख टके की हो या हो दो टके की
प्यार भरा है इसमें अनमोल भैया
कलाई पर जब यह सज जाती है
सब रिश्तों पर भारी पड़ जाती है |
भले ही भौतिकतावाद का युग है | रिश्ते बेमानी से हो गए है| पर दिल के एक कोने में कहीं आज भी मानवता जिन्दा है| उसे झकझोरियें और अपने आप को पहचान कर रिश्तों को मान सम्मान दीजिए | वर्ना हममें और जानवरों में क्या फर्क रह जायेगा .....! अवश्य ही सोचियेगा हमारे भाइयों -बहनों और बच्चों ............!
बुजुर्गो को नहीं कहेंगे क्योंकि वही तो हमारी प्रेरणा है ..हमारे मार्गदर्शक है ...पथप्रदर्शक को ही रास्ता दिखाने कि मूर्खता हम बिलकुल नहीं करना चाहेंगे .............................| :)
सविता धागा प्यार का लो तुम कलाई पर अपनी बधाय
करेगी तुमरी रक्षा राखी, बहना लेगी तुमरी हर बलाय | सविता मिश्रा
प्रेम का राग अलापा ऐसा आज
बुझ गई नफरत की देखा आग | सविता उवाच ...कुछ ऐसा राग आप सब भी छेड़िए मेरे प्यारे भारतवासियों :) :)
कवच राखी
रिश्ता भाई बहन
स्नेह बंधन| सविता मिश्रा
इसे मायावी कहे या आभासी कहे ! फेसबुक पर बहुत से अपने मिले, जो हमें बहन जैसा ही मानते हैं| बहुत वो लोग भी हैं जिन्हें हम संबोधित करतें हैं| पर कहते हैं ना ताली दोनों हाथों से बजती है, एक हाथ से तो बस चुटकी ही बजाई जा सकती है |.....
उन सभी स्नेहिल भाइयो को! जो छोटे हैं, ढेर सा स्नेह के साथ आशीष -इस बहन की तरफ से, और हमारे बड़े भाइयो को! ढेर सारी दुआओं के साथ सादर नमस्ते पहुँचे ...|
हम जानते हैं, जिन्होंने कहा राखी कहाँ हैं ? उन्हें उम्मीद होगी, कि हम राखी भेजेंगे| हम उन्हें जरुर कहना चाहेगें कि.. माना राखी का धागा एक रिश्ते को और भी प्रगाढ़ बनाता है | पर संभव ना हो सका उस धागे को आप तक पहुँचाना | लेकिन दिल है कि प्रगाढ़ता महसूस करता है, यह दिल मानता कब है यह तो सामने वाले के व्योहार का गुलाम बन जाता है हमेशा | और शायद तभी धोखे भी खाता है | खैर रिश्ता और धोखा दोनों एक सिक्के के दो पहलु की तरह है जो साथ साथ रहने की कसम खाए हुए है | वैसे हम इस पावन त्यौहार पर यह बकवास क्यों करने लगे | हम तो स्नेह की बात करेंगे, भाई बहन के पवित्र रिश्तें की बात करेंगे|
इसी आभासी दुनिया के जरिये ही हम, आप सभी को भाव से राखी बाँध यह वचन लेना चाहते हैं कि आप भारत की बहनों की रक्षा में कभी भी पीछे नहीं हटेगें और ना ही भूले से भी किसी की बहन का अपमान करेगें ....|
जो दुसरे के साथ करता है, वही उसके साथ हो तब उसे अपनी गलती का अहसास होता है, यदि ऐसी गलती करने से पहले ही अहसास कर लें सब तो कुछ तो सुधार हो ही जायेगा......|
>हम कई बार कह चुके हैं जरुरी नहीं है, खून के रिश्ते ही सब कुछ हों | कभी कभी दिल के रिश्ते भी उतने ही मजबूत और करीब होते हैं जितने खून के ...|
जहाँ तक राखी का इतिहास पढ़ा गैरों को ही इस पवित्र बंधन में बांध अपना बनाया गया ..|
.बलि-लक्ष्मी, सिकंदर की पत्नी और पुरु, कृष्ण और द्रोपदी, राखी और हुमायूँ ...|
दो लाइन अधूरी सी कहना चाहेगें ....
दिल से इतना अधिक लगा लिया ..
खून के रिश्ते से भी अधिक बना लिया |..........सविता मिश्रा....
राखी का त्यौहार एक पवित्र त्योहार है | भाई बहन के रिश्तों को और भी मजबूत करने वाला त्यौहार है | पर आज के ज़माने में भाई कि यह वाणी कि "दो पैसे की राखी लायी हो" दिल को चीर कर रक्ख देती है ....बहन भी भाई को राखी बाँध भाई के प्यार से दिए हुए उपहार को जब पैसो में तौल देती है ..कितना दुख होगा भाई को | ....................मुख से निकली वाणी दिल को कितना आघात पहुंचाती है ...किसी को क्या पता जब तक वह खुद ही भुक्त-भोगी न बने |...............यह वही समझेगा जो इस परिस्थिति से गुजर चूका होगा कभी ...........
लाख टके की हो या हो दो टके की
प्यार भरा है इसमें अनमोल भैया
कलाई पर जब यह सज जाती है
सब रिश्तों पर भारी पड़ जाती है |
भले ही भौतिकतावाद का युग है | रिश्ते बेमानी से हो गए है| पर दिल के एक कोने में कहीं आज भी मानवता जिन्दा है| उसे झकझोरियें और अपने आप को पहचान कर रिश्तों को मान सम्मान दीजिए | वर्ना हममें और जानवरों में क्या फर्क रह जायेगा .....! अवश्य ही सोचियेगा हमारे भाइयों -बहनों और बच्चों ............!
बुजुर्गो को नहीं कहेंगे क्योंकि वही तो हमारी प्रेरणा है ..हमारे मार्गदर्शक है ...पथप्रदर्शक को ही रास्ता दिखाने कि मूर्खता हम बिलकुल नहीं करना चाहेंगे .............................| :)
सविता धागा प्यार का लो तुम कलाई पर अपनी बधाय
करेगी तुमरी रक्षा राखी, बहना लेगी तुमरी हर बलाय | सविता मिश्रा
प्रेम का राग अलापा ऐसा आज
बुझ गई नफरत की देखा आग | सविता उवाच ...कुछ ऐसा राग आप सब भी छेड़िए मेरे प्यारे भारतवासियों :) :)
मौत से नहीं घबरातें थे हम अपने ही
आगोश में सुलातें थे उसे .....
पर जब से प्रिय ने प्यार से पुकारा है
हम मौत से ही डरने से लगें है| .............सविता मिश्रा
ताकीर हुई आने में हमारे
वह हमसे नाराज से रहने लगे
जा पास बैठे थे जब हम उनके
वह निगाहों से ही बस शिकवा करने लगें|...सविता मिश्रा
यूँ नाजो अदा से ना मुस्कराया करो
बेचारों पर ना कहर ढया करो
हो अप्सरा सी खुबसूरत आप
रोज हमारे लिए जमी पर उतर आया करो| ...सविता मिश्रा
आईने झूठ कभी बोला नहीं करतें
दिलको हम ही सही से टटोला नहीं करतें
चेहरे की देख बाह्य रौनक फंस जाते हैं
अन्दर कभी गिरेबान में देखा नहीं करतें| .....सविता मिश्रा
दर्द दे जब मरहम लगाओगें
अपने दिल को यूँ मनाओगे
उन्हें क्या पता है कि हाथों में तेरे
मरहम ही है या फिर नमक लगाने आये| .....सविता मिश्रा
बस यूँ ही
१ ...हम ही मगरूर थे या ये दुनिया वाले ही गुरुर में थे
ना हमरा कोई हुआ ना ही हम किसी के हो सकें| ..सविता मिश्रा
२ ...जो दुःख दे ऐसे मोती बिखर ही जाएँ तो अच्छा ..
दुःख में हम तप कर निखर जाये तो अच्छा|...सविता मिश्रा
३ ...डूबता हुआ सूरज को देख मत समझ डूबा हमेशा के लिए
कल फिर निकलेगा फैलेगी रोशनाई चारों तरफ सविता| .....सविता मिश्रा
४.....भुजंग विष हटत नहीं कितना भी करि साधू- सत्संग
उत्तम कोई नहीं रही जात कुसंग में सब बहि जात है| ..सविता मिश्रा
५ ...चाल ऐसी ना चलो की जिन्दगी पर पड़ जाय भारी
नजदीकिया बनाने के लिए रखना होता है बात जारी| ...सविता मिश्रा
६ ...भूल जाये यह फितरत है जमाने की सविता
आज के दौर में कौन किसको याद रखता है| .....सविता मिश्रा
७ ...हद में रहतें हुए हमने ना जाने कब हद खो दी अपनी
तुम कुछ हमारे दिल में यूँ ही पैठ बनातें गये बन अपने| .....सविता मिश्रा
८...किसने कहा कि मुसाफिरों से दिल लगाया हमने
दिल है आ ही जाता कम्बक्त मानता ही कब है|... सविता मिश्रा
९....खंजर रखतें है हम भी बड़े नजाकत से
दिल जब आये किसी पर तो उतार ही देते है| ... सविता मिश्रा
१०...वाह वाह कर ना यु सर पर चढाओं
मालूम है हमें हम कोई शायर तो नहीं| ....सविता मिश्रा .....बस यूँ ही
ना हमरा कोई हुआ ना ही हम किसी के हो सकें| ..सविता मिश्रा
२ ...जो दुःख दे ऐसे मोती बिखर ही जाएँ तो अच्छा ..
दुःख में हम तप कर निखर जाये तो अच्छा|...सविता मिश्रा
३ ...डूबता हुआ सूरज को देख मत समझ डूबा हमेशा के लिए
कल फिर निकलेगा फैलेगी रोशनाई चारों तरफ सविता| .....सविता मिश्रा
४.....भुजंग विष हटत नहीं कितना भी करि साधू- सत्संग
उत्तम कोई नहीं रही जात कुसंग में सब बहि जात है| ..सविता मिश्रा
५ ...चाल ऐसी ना चलो की जिन्दगी पर पड़ जाय भारी
नजदीकिया बनाने के लिए रखना होता है बात जारी| ...सविता मिश्रा
६ ...भूल जाये यह फितरत है जमाने की सविता
आज के दौर में कौन किसको याद रखता है| .....सविता मिश्रा
७ ...हद में रहतें हुए हमने ना जाने कब हद खो दी अपनी
तुम कुछ हमारे दिल में यूँ ही पैठ बनातें गये बन अपने| .....सविता मिश्रा
८...किसने कहा कि मुसाफिरों से दिल लगाया हमने
दिल है आ ही जाता कम्बक्त मानता ही कब है|... सविता मिश्रा
९....खंजर रखतें है हम भी बड़े नजाकत से
दिल जब आये किसी पर तो उतार ही देते है| ... सविता मिश्रा
१०...वाह वाह कर ना यु सर पर चढाओं
मालूम है हमें हम कोई शायर तो नहीं| ....सविता मिश्रा .....बस यूँ ही
अगस्त 29, 2013
मेरे कृष्ण कन्हैया
29 December 2013 ·
कन्हैया की अदाओं में मैं खोयी रही
कान्हा राधा के संग है क्यों रास रचाये
कन्हैया की अदाओं में मैं खोयी रही
कान्हा राधा के संग है क्यों रास रचाये
हम तरसे हुलसे सुनता ही नहीं है वह
राधा संग रसिया हमको है क्यों लुभाये
दिन भर तेरे भजन ही करती रही हूँ मैं
तू भी मुझको रह रह है क्यों आँख दिखाये
देता है धन उन पापियों को क्यों इतना
जो तुझको न माने न ही वह मंदिर जाये
देख सब बहुत ही अकुलाई मैं कृष्णा
तू तो पापियों का ही है साथ निभाये
इस कलयुग में क्या नहीं हो रहा है कन्हैया
फिर भी तू बैठा चैन की बंसरी है क्यों बजाये
पाप बढेगा तो तू आएगा धरती पर
मोहन तू अब तक है क्यों नहीं आये
हुई है अब तो अंधेर ओ मेरे रास रचैया
अब तो आ जा मेरे प्यारे कृष्ण कन्हैया ...| | सविता मिश्रा 'अक्षजा '
राधा संग रसिया हमको है क्यों लुभाये
दिन भर तेरे भजन ही करती रही हूँ मैं
तू भी मुझको रह रह है क्यों आँख दिखाये
देता है धन उन पापियों को क्यों इतना
जो तुझको न माने न ही वह मंदिर जाये
देख सब बहुत ही अकुलाई मैं कृष्णा
तू तो पापियों का ही है साथ निभाये
इस कलयुग में क्या नहीं हो रहा है कन्हैया
फिर भी तू बैठा चैन की बंसरी है क्यों बजाये
पाप बढेगा तो तू आएगा धरती पर
मोहन तू अब तक है क्यों नहीं आये
हुई है अब तो अंधेर ओ मेरे रास रचैया
अब तो आ जा मेरे प्यारे कृष्ण कन्हैया ...| | सविता मिश्रा 'अक्षजा '
++नहीं समझते हम गणित ++

गिर रहा है!रुपया !
गिर रहा हैं !
क्यों सब चीख रहे हैं
हमें तो याद हैं
रुपया तो कुछ सालों में
४० से बढ़ ६५ हो रहा!
फिर भला कैसे गिर रहा हैं
यह तो हर पल ऊपर उठ रहा हैं |
यह सुन
हमारे ही सामने
बैठे हुए लोग
माथा पिट लिए!
हमारी बुद्धि को भी
जरा सा कोस लिए!
पढ़ी लिखी हैं या
ठहरी मंदबुद्धी!
हम बोले पड़े
फिर बन ज्ञानी
रुपया तो ज्यादा
गिनती का हो रहा हैं
फिर कैसे यह घट रहा!
चीख-चीख हम सब कोक्यों मुरख बना रहे
अर्थशास्त्री बैठे हैं
कुछ तो कमा रहे
अपना नुकसान होता देख तो
गुंगा भी बोल पड़ता हैं
उन्हें भी बढ़ने में ही
फायदा नजर आ रहा
तभी तो वो कुछ भी
नहीं है बोल रहें|
तुम सब मुरख हो
चिल्ला चिल्ला फाड़ो गला
कोई फर्क नहीं पड़ने वाला
और ना ही हैं उन्हें कोई गिला|
उठने को गिरना हमको समझा रहें
सभी हमें मुरख कहतें हो
वस्तुएं सब विदेशी खरीदते हो
हम तो देशी हैं देशी में ही मस्त हैं
समझ नहीं आती हमें यह
उठने गिरने की गणित !
रुपया हो या फिर हो इंसानियत
कम होती जा रही मालकियत | ..सविता मिश्रा
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