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सितंबर 09, 2014

~फूल की चीख~

गुड्डी दौड़ी दौड़ी झट फूल तोड़ लाई
माली को भी अपने पीछे पीछे भगाई|

गुड्डी नन्हें नन्हें पाँव से हारी
माली पड़ गया उस पर भारी|

गुड्डी का पकड़ कान उमेठा ही कि
दर्द से गुड्डी खूब तेज चीखी चिल्लाई|

माली बोला देख इतना दर्द तुझे हो आई
सिर्फ कान पकड़ने भर से तू इतना चिल्लाई|

फूल की सोच जिसको तूने बेदर्दी से तोड़ा
डाल से तोड़, यूँ रौंद करके उसको छोड़ा|

गुड्डी ने मानी गलती और बोली
आगे से कभी फूल नहीं तोडूगी|

अब तो दूजो को भी दूंगी यह सीख
फूल तोड़ उसकी निकालो ना चीख|....सविता मिश्रा

6 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

achchi

कविता रावत ने कहा…

सार्थक व प्रेरक प्रस्तुति ..

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

शुक्रिया आपका कविता sis

Unknown ने कहा…

Savitji aap Meri Kahani "Kahaniya Unwarat.com" me "Peela phol" padiye kuch ap ki kvitaa jaise hI bhav milega.
Give your comments.
Vinnie

Unknown ने कहा…

Savitji aap Meri Kahani "Kahaniya Unwarat.com" me "Peela phol" padiye kuch ap ki kvitaa jaise hI bhav milega.
Give your comments.
Vinnie

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

vinnie sis shurkiya apka ....bilkul ho skta hai ...padhte hai aaj hi