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नवंबर 26, 2012

संस्कार-

पुरानी पीढ़ी ने हमें कंधो पर बैठाया
सच्चे-बुरे का सभी फर्क समझाया|
पर हम तो भागती दुनिया के पीछे ही भागे
कब अपने बच्चों को कंधो पर बैठा बढ़े आगे|

उन में संस्कार नहीं है अब चीख -चिल्ला रहें हैं
क्या हम अपनी पीढ़ी से मिले संस्कार
सच्ची में अपनी नयी पीढ़ी को दे पा रहें हैं ?

फिर भी गनीमत है
वह अभी भी हमारी कद्र करते हैं
शायद कन्धा नहीं, हमारी ऊँगली
पकड़कर चलने का मान करते हैं |

पर आज की पीढ़ी तो
कुछ इस तरह मार्डन हो गयी है
कन्धा -उंगली दोनों छोड़
नवजात शिशु को
टोकरी में रखकर चल रही हैं |

क्या टोकरी-ट्राली में पलने वाले वे शिशु
हमारे संस्कार पा रहे हैं ?
अपनी माँ-बाप के छुवन के अहसास को भी
सही से महसूस नहीं वो कर पा रहे हैं |

आगे चलकर यह शिकायत ना करना कभी
अपनी अगली पीढ़ी से आप सभी
कि तुम संस्कार विहीन और
मार्डन हुए जा रहे हों |

जब वह तुम्हें ट्राली में बैठाकर कहीं घूमाएँ
गनीमत समझना की निर्जन रास्ते पर
तुन्हें वह लावारिस नहीं छोड़ आ रहें हैं |

छोड़ भी आयें
यदि वृद्धाश्रमों में तो भी
आश्चर्य नहीं करना तनिक भी
क्योंकि
तुम भी तो कमाने की होड़ में
छोड़ जाते थे आया की गोद में |....सविता मिश्रा

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना बहिन ..... शुभ सन्ध्या वा नमन

........... फूले उर्फ के.के.पाण्डेय