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नवंबर 29, 2014

"सुनहले ख़्वाब बस"


दिल में तो धड़कती ही हूँ मैं
पर! साँसों में भी तेरे
फ़ैल जाना चाहती हूँ मैं 

किसी ने तीसरी बटन
किसी ने दूसरी
किसी ने सिर्फ बटन कहकर ही
ख्याली पुल कर लिया तैयार
अपने पति का सानिध्य पाने को........

मैंने भी सोचा ...तोड़ दूँ मैं भी
तुम्हारे शर्ट की पहली बटन
क्योंकि मैं साँसों में तुम्हारे
बस जाना चाहती थी
टांकने को बटन जब तुम कहो
तुम्हारी साँसों को
बिलकुल पास आकर
महसूस कर सकूँ मैं

तुम्हारी आँखों में झांक सकूँ प्यार
तुम्हारी साँसों से अपनी साँस को
मिलाकर साँसों की प्यारी सी
करूँ एक खूबसूरत डोर तैयार
साँसों में मेरे बस जाओ तुम
अपने साँसों के जरिये
तुम्हारे दिल की धड़कन
महसूस करूँ मैं करीब से
जिसमें बसती हूँ
शायद ! सिर्फ मैं !

बटन हाथो में लिए
तुम तक पहुँचने के
खयाली पुल बना रही थी मैं
तभी एक झटका सा लगा
तुम्हारे गुस्से का शिकार हो गया
सपना मेरा प्यार भरा
टूटी है बटन वर्दी की
कैसे पहनू मैं ?
गूंजी कानो में एक तीखी आवाज !

तुम्हारी लापरवाही के कारण
समय पर नहीं पहुँच पाउँगा
मोबाईल फोन कान खा रहा है
ऊपर से अधिकारी सिर चढ़ रहे हैं
बड़बड़ा रहे थे जब तलक वो
जल्दी से रात जो धोयी थी वर्दी
बहाते-बहाते आँसू झट प्रेस करके
उनके हाथो में थमा दी

आँसुओ को पास जाने से पहले ही
जब्ज कर लिया आँखों में ही मैंने
क्योंकि पता है यह मुझे
तुम्हारें लिए इन आँसुओ की
कोई भी कीमत नहीं
तुम्हें अपनी नौकरी से ज्यादा
कोई और चीज प्यारी भी नहीं !

रोज ही ऐसे कई सपनें
चकनाचूर हो जाते हैं
तुम्हारी मजबूरियों को समझती हुई मैं
अपने इन सपनों को
सुनहले ख्बाब की
अपनी छोटी सी पिटारी में
बंद करके रख देती हूँ मैं टांड पर |

सपनों की अपनी बगिया में जो
नन्हें- सुंदर फूल सजाये होते हैं
वो समयाभाव में अक्सर ही तो
असमय ही मुरझा जाते हैं | सविता मिश्रा

प्रेम पर भी लिखने चलो तो अंत जाके ना जाने कहाँ का कहाँ हो जाता है उफ़ मेरी कलम तू क्यों नहीं चलती मेरे ही इशारे पर..... हमारी भावनायें (सविता मिश्रा)

2 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर और सटीक रचना...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

हकीकत औ ख्वाबोब की बातों में कितना फर्क होता है ...
मज़ा आया रचना पढ़ कर ...