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नवंबर 10, 2016

सामयिक घटनाक्रम पर व्यंग्यात्मक टिप्पणी-(नोट की चोट)

मोदी भैया यहाँ दो दिन सब की ढ़ोल बजाने के बाद टोक्यो में बड़ी ख़ुशी से ड्रम बजा रहे हैं | देख के लगा कि उन्हें इस तरह बड़ा मजा आ रहा है| और यहाँ विरोधी से लेकर भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाले तक...अरे इस बात से याद आया कि कहाँ हैं हमारे अन्ना चाचा .. बहुत दिनों से दिखे नहीं ..? हम तो समाचार घंटो देखे |

देश में इतनी उथल-पुथल हो गयी| और वह बाल्मीकि की तरह बिलकुल शांत हैं| तपस्या रत हैं लगता है| जो शांत थे वह दुर्वाषा रूप में दिख रहें हैं | दो दिन में न जाने कितनी गृहणियां दुर्वाषा बनकर मोदी भाई पर अपने मुख से अग्निवाण बरसा चुकी हैं| एक जन विश्वामित्र बनने की कोशिश में थे दो दिनों से, लेकिन आज वह भी मुखर हुए| कह रहे थे कि उन्हें समझ ही नहीं आया कि 2000 के नोट चलाकर भ्रष्टाचार कैसे रोका जा सकता है|

सबकी राजनीतिक बहनजी कह रही हैं कि श्री मोदी जी अपने 100 साल के खर्चे के लिए पैसे विदेश में छुपा आए| हमें भी अफ़सोस है। मोदी भैया को ख्याल रखना चाहिए अपने भाई बन्धुओं का भी|

हम जनता का क्या है, किसी न किसी तरह तोड़-मोड़कर अपनी जुगाडू राह निकाल ही लेंगे| परन्तु चुनाव आ रहें| आप अपने खर्च का इंतजाम तथाकथित ही सही, कर लिए और सब अपने संगी-साथियों को मौका ही न दिए| इतनी बड़ी नाइंसाफ़ी कर कैसे सकते भई आप !

हम सोच रहें है और विनती भी कर रहें प्रभु से, सिर्फ़ अपने लिए ही नहीं आप सभी के लिए भी कि वहीं टोक्यो में ही बजा लीजिए। अरे बाबा ड्रम, फालतू ही न सोच लिया करें आप सभी | अधूरी लाइन पढ़ना सोच के लिए घातक हो सकती है|

मतलब जितना मन करे, उतना ड्रम जोश से वहीं बजाइए। फिर आकर अपने देश में मत बजा डालियेगा सबकी| बड़ी मुश्किल से लोग तोड़ निकाल रहें हैं आपके सुर-संगीत की| भ्रष्टाचार से उबरने के आपके इस अभियान में कितनी बेतुकी राहें अपनाए हैं लोग, आप न जानेंगे| अपने ही करारे नोटों को घाटे में देकर तुड़े-मुड़े से सौ-पचास के नोट लेकर अपने लाकर में रखने का दर्द आप क्या जानें| समचार पढ़-सुनकर आप जान भी गए होंगे, पर समझेगें नहीं|

दो हजार के नोट के रूप में मंजिल तो आपने सबकी तय कर दी है एक महीने समय देकर| अब तो मंजिल पर पहुँचना मज़बूरी है सबकी| रास्ते में ही अटक भी गए यदि मंजिल समझ, तो वह रद्दी बन कर रह जाएगी ३० दिसम्बर तक | अतः सब भले ही संकरे, छोटे, कांटे भरे रास्ते चुनें लेकिन मिलेंगे आपकी बनाई मंजिल पर ही| उसके लिए अपनी ब्लैक में से व्हाईट के लिए जरा कुर्बानी भी देंगे ही|

आपने स्वच्छ भारत का सपना नोटों के लिए भी साकार कर ही दिया हैं | यकीन करिए, जनता हर हाल में चाहती है कि यह स्वछता कायम रहें | जनता से अलग हटकर जैसे ही आदमी कुरता पायजामा पहनकर नेता बन जाता है, वह स्वछता भूलकर ब्लैक होने लग जाता है| उसके काले होते ही उसकी परछाई जिस जिस पर पड़ती है वह भी उन्ही के रंग में रंगता जाता है| जबकि सब देशवासियों का दिल कहता है कि रे नेता, न कर, न कर, गंदा तन-मन-धन! पर दिमाग़ है कि इस भ्रष्टाचार के खेल में रंगता हुआ देश की धरती को अस्वच्छ कर देता है | #सविता

3 टिप्‍पणियां:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

जय हो ।

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

आभार सुशील भैया ..सादर नमस्ते |

Alaknanda Singh ने कहा…

बहुत सही कहा सविता जी, नकारात्‍मकता ढूंढ़ने वालों के बयान पढ़ने के बाद, आपकी पोस्‍ट ने वह काम कर दिया जो भ्रष्‍टाचार को उखाड़ने वाले हौसलों को पस्‍त नहीं होने देगा।