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मार्च 05, 2015

लंगूर बन के --

भर उमंग मन में हम नारियाँ जहाँ फटके
भाग जाओगे तुम सब वहां से बन्दर बनके।

गुझियाँ पापड़ और पकवान बना-बना करके
थक हार चुप बैठे हैं हुड़दंगी मन को परे धरके |

चुप्पी जो तोड़ दी हमने, रह जाओगे हक्के-बक्के
रंग चढ़ा, तो होली खेलेंगे हम फिर खूब ही छक के |

जो मचल रहे हो यहाँ-वहाँ तुम सब तन-तन के
भागोगे फिर भीगी बिल्ली तुम सब बन-बन के |

बच्चों-सी पिचकारी लिए इधर-उधर हो फिरते
दम नहीं है किसी में रंग लगाये गाल पे मल के |

भंग के नशे में जो आ रहे हो उछल-उछल के
भंग उतरते ही मिलोगे सारे के सारे कहीं दुबके |

होली खेलना सभी हमसे जरा संभल-संभल के
वरना सब मिलोगे फिर लाल-पीले-लंगूर बन के |...सविता मिश्रा 'अक्षजा'

3 टिप्‍पणियां:

शिव राज शर्मा ने कहा…

हा हा हा

शिव राज शर्मा ने कहा…

हा हा हा

KAHKASHAN KHAN ने कहा…

बहुत अच्‍छी और सुंदर रचना प्रस्‍तुत की है आपने।