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अगस्त 20, 2013

~प्याज तो रुलाती ही थी~

गरजे सब नर-नारी कांदा हुआ इस पल दबंग
आलू को ठोकर मार तोड़ रहा अपने सम्बन्ध|

सब्जी थैला काख दबा छुपते-छुपाते घर भाग

टमाटर हुआ सस्ता प्याज में लगी है अब आग|

लगी है आग अब घर में कही नहीं दिख रहा

प्याज छोड़ मानुस शुद्ध शाकाहारी बन रहा|

सात्विक भोजन कर बुद्धि उसकी है जागी

देश पर शासन करेगा अब तो कोई वैरागी|

महंगाई से निजात दिलाये ऐसा अब कोई आये

अर्थशास्त्री फेल हुए समाजशास्त्री अब तो भाये|

मार-मार महंगाई ऐसा हमको मार गयी

रिश्ते भी है भार यह जल्दी ही समझा गयी|

त्यौहार भी बेमतलब के कुछ ऐसा मन में समाये

देख कही
प्रभु तुझसे भी मानुस  रिश्ता ना छुड़ाये|

बड़ी मुश्किल से अब पाई -पाई है जुटती

प्रभु नाम से तो भीड़ हमेशा से ही है लुटती|

सब सम्बन्ध तोड़-ताड़ मानव कही ना रोये

अपना-पन छोड़ कही खुद में ही ना खोये|

रह जाए हर हाल में अकेला ऐसा जीवन पाये

                       प्याज तो रुलाती ही थी अब जीवन उसे रुलाये|.....सविता मिश्रा

1 टिप्पणी:

सविता मिश्रा 'अक्षजा' ने कहा…

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